"पांँव रखिएगा संभलकर ये अंँधेरों का समय है"-जय चक्रवर्ती, 'संवेदनात्मक आलोक' पटल की नवगीत गोष्ठी सम्पन्न
कटनी ( प्रबल सृष्टि - निजी प्रतिनिधि) खिरहनी, गौर मार्ग, दुर्गा चौक स्थित रामकिशोर दाहिया के निज निवास पर व्हाट्सएप एवं फेसबुक नवगीत समूह 'संवेदनात्मक आलोक' की प्रथम नवगीत-कविता गोष्ठी देश के अप्रतिम नवगीत हस्ताक्षर राम सेंगर कटनी की अध्यक्षता एवं वीरेन्द्र आस्तिक कानपुर एवं रायबरेली से पधारे जय चक्रवर्ती के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुई। इस नवगीत गोष्ठी में सागर, उमरिया, कटनी जिले के नवगीत कवियों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। गोष्ठी के प्रारम्भ में देश के ख्यातिनाम नवगीत कवि राम सेंगर, वीरेन्द्र आस्तिक, जय चक्रवर्ती का स्वागत-सम्मान रोली तिलक लगाकर, साल श्रीफल भेंटकर किया गया।
नवगीत गोष्ठी का शुभारम्भ कटनी के युवा कवि अजय प्रताप सिंह बघेल ने स्वयं पर लिखीं काव्य पंक्तियों से किया- "मैं जो दिखता हूंँ तुमको/केवल दुनियाबी ढांचा है/नपा-तुला लहजा मेरा/सच कहता हूंँ धोखा है।"
विगत दो तीन दशकों से हिन्दी नवगीत में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे राजकुमार महोबिया ने अपने चिर परिचित प्रतिरोधी अंदाज में अपनी रचना पढ़ीं- "मन से टेरीलीन/ किन्तु है/हथकरघे की तन पर खादी/प्रतिरोधों की गली रोककर/धमकी की जबरन परसादी।"
उमरिया से गोष्ठी में पधारे शम्भु सोनी पागल ने अपनी बात कुछ इस तरह से रखी- "मिट्टी में है/सिताबदियारा/पोरबन्दर जैसी अकुलाहट/साबरमती और वर्धा जैसी/है कई जगह गर्माहट/सिर्फ विचार फेंकते रहिए/धरती बाँझ नहीं है पागल/लूथर किंग, बिनोवा,/गांँधी, जेपी फिर/दे रहे आहट।"
गोष्ठी का संचालन कर रहे अनिल मिश्रा ने रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रही एक जीवट महिला का चित्र प्रस्तुत करते हैं- "प्रबल दुपहरी/हार न मानती/ पांँव पकड़ रिखियाये/रामरती रहती है अक्सर/सूरज को धकियाये।"
गोष्ठी में सागर से पधारे नवगीत के उभरते युवा कवि ईश्वर दयाल गोस्वामी ने अपनी कविता में सामाजिक सरोकारों को कुछ इस तरह प्रस्तुत किया- "स्वर कटुक हैं/आरती के औ' अजानों के/खुल गई हैं फिर दुकानें/ यज्ञ हवनों औ' कथाओं की/प्रार्थना,अरदास पूजा औ' नमाजों की दुआओं की/मूल घटते सरोकारी जन बयानों के।"
नवगीत-कविता में जीवन की अनुभूतियों विसंगतियों को शब्दों की झांकी प्रस्तुत करने वाले देश के प्रतिष्ठित कवि आनंद तिवारी ने अपनी बात कुछ इस तरह रखी- "गीत प्रणय के क्या गाऊँ मैं/ सुलग रहा है मन/विडंबनाओं की लपटों में/झुलस रहा जीवन/पूछ हिलाते हुए जीविका पाना न आया/ औरों की दी हुई नसेनी/ चढ़ना न भाया/इसीलिए भीतर ही भीतर/होता रहा हवन।"
जीवन की अनुभूतियों को अपने अंदाज में सबके समक्ष रखने वाले कटनी के वरिष्ठ कवि राजेन्द्र सिंह ठाकुर कुछ इस तरह लिखते हैं- भाग्य तो मुट्ठी में/नयन मगर फूटे हैं/मन तो मनचला है पांँव मगर खूटे हैं।"
नवगीत कविता में अपनी कीर्ति पताका फहराने वाले प्रतिरोध के प्रखर एवं मुखर हस्ताक्षर रामकिशोर दाहिया स्वयं को कुछ इस तरह प्रस्तुत करते हैं- "मैं पीतल औरों का चिंतन/मुझे बनाए सोना/मैं तो केवल/चाह रहा हूंँ/अपने जैसा होना/मैंने उलटी दिशा चुनी है/ पद चिह्नों से हटकर/हवा रोकती बढ़ना मेरा/स्वर लहरी को रटकर/केवल कोरे आदर्शों को/कंधों पर क्या ढोना।"
देश के प्रख्यात नवगीत हस्ताक्षर, कविता में प्रतिरोधी स्वर के उदाहरण कहे जाने वाले रायबरेली उत्तर प्रदेश से नवगीत गोष्ठी में पधारे जय चक्रवर्ती अपनी कविता में आमजन को कुछ इस तरह सतर्क करते दीखते हैं-"पांँव रखिएगा संभलकर/ये अंँधेरों का समय है/फन निकाले हर दिशा से/एक डर पुकारता है/आदमी का आदमीपन ही यहांँ अब हारता है/नज़र रखिएगा चतुर्दिक/ये लुटेरों का समय है/साजिशें पहने हुए हैं/ओंठ पर शुभकामनाएंँ/मछलियांँ तालाब की/कैसे बचाएंँ अस्मिताएँ। क्या पता फाँसे किसे कब,/ये मछेरों का समय है।"
कानपुर से पधारे नवगीत के ख्यातिलब्ध कवि वीरेन्द्र आस्तिक अपनी जीवनानुभूतियों को कविता में कुछ इस तरह अभिव्यक्त करते हैं- "बाजारें हैं रिश्तों की/खुशियांँ हैं मृग जल/भेज रही कम्पनी/सोनिया को अमरीका/ खुश पापा हैं धड़क रहा है दिल मम्मी का/हो पाएंँगे कैसे/पीले उसके करतल/खुशियांँ हैं मृग जल।"
नवगीत में कहन, प्रतीक, बिम्ब के साथ कथ्य को अपनी तरह रेखांकित कर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने वाले अप्रतिम हस्ताक्षर राम सेंगर की एक नवगीत कविता का कुछ अंश देखें- "खुले मोर्चे साथ सुबह के/चली भटकने नीड़ छोड़ असुरक्षित गौरैया/रहा घूमता हर पल मन में/ कोल्हू का पहिया/दुखती आंँख थपेड़े लू के श/रिस रिस दर्प चुआ/ क्या होना/इस उससे कहे के/खुले मोर्चे साथ सुबह के।" नवगीत गोष्ठी में पधारे कटनी नगर के वरिष्ठ कवि रामखेलावन गर्ग ने भी काव्य पाठ कर खूब तालियांँ बटोरीं।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में राम सेंगर ने नई पीढ़ी के रचनाकारों को अपना आशीष प्रदान करते हुए उनके लेखन से अपनी आश्वस्ति जाहिर की और सभी को हृदय से बधाइयांँ दीं। गोष्ठी के अन्त में समस्त साहित्य मनीषियों सुधी पाठकों का आभार प्रदर्शन संवेदनात्मक आलोक के संचालक रामकिशोर दाहिया द्वारा किया गया। कार्यक्रम का सफल संचालन उमरिया से पधारे वरिष्ठ कवि अनिल मिश्रा ने किया।
लेख़क - श्री राजेन्द्र सिंह ठाकुर कटनी।
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