यही आशीर्वाद आ रहे हैं कि विस्तार असीम की ओर, गुरुसिख इस निरंकार को हृदय में बसाके रखता है, ज्ञान पर विश्वास मजबूत रखता है, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में महात्मा विजय रोहरा जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) सतगुरु की कृपा से सतगुरु के रहमों करम से यहां मिल बैठकर इस निरंकार पारब्रह्म परमेश्वर का यशोगान कर रहे हैं जो असीम हैं बार-बार यही आशीर्वाद आ रहे हैं कि विस्तार असीम की ओर। जो असीम है इसके साथ नाता जोड़ करके इन संतों के चरणों में बैठ करके इस परमात्मा का यशोगान कर रहे हैं। ये गुरु की कृपा है गुरु का रहम होता है गुरु का तरस होता है तो यह ब्रह्म ज्ञान जीवन में मिलता है यह ऐसे ही नही मिल जाता। ब्रह्म ज्ञान उसे कहते हैं जो ब्रह्म सारी दुनिया को चला रहा है सारी कायनात की पालना कर रहा है सत्य है शिव है सुन्दर है उसे ब्रह्म ज्ञान कहते हैं जो हर जगह है। यह तो मेरे साथ खड़ा है इसका बार बार शुकराना स्वांस स्वांस शुकराना कि सचे पातशाह ने इस पारब्रह्म परमेश्वर के साथ जोड़ दिया है। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में हरदेव वाणी के शब्द पर महात्मा विजय रोहरा जी ने उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
गुरुसिख गुरु की आंख से देखता है गुरुसिख समर्पण करता है यह जो ज्ञान मिला है उसके बड़े ऊंचे भाग्य होते हैं। बड़े ऊंचे भाग्य कैसे ? यह पूर्ण सतगुरु निरंकार से जोड़ देता है पल पल इसका सहारा लेकर पल पल इसका अहसास बनाकर हृदय में गुरुसिख जब जीवन जीता है तो बाबा हरदेव सिंह महाराज अपने आशीर्वादों में फरमाते हैं कि जो गुरुसिख इस निरंकार को हृदय में बसाके रखता है निरंकार उसे आध्यात्मिक सुख और भौतिक सुख प्रदान करता है उसे सब्र आता है इसके अहसास से ऊपर कुछ नहीं है। गुरु ने विशाल परमेश्वर के साथ जोड़ा है जितने भी जीवन में भरम भुलेखे थे जिस दिन से मुझे ज्ञान दिया उस दिन से समाप्त हो गए।
गुरुसिख ज्ञान पर विश्वास मजबूत रखता है पूरे सतगुरु का मिलना और ज्ञान पर अटूट विश्वास रखना संसार में इससे बड़ी इंसानी जन्म के लिए कोई चीज नहीं है इससे बड़ी कोई दौलत नहीं है कि इस ज्ञान पर अटूट विश्वास आ जाए। इस दरबार पर अटूट विश्वास आ जाए कोई काम जीवन में रुकेगा ही नहीं। ये मेरे साथ प्रभु परमात्मा ही है जो मेरे साथ रहता है, मेरे साथ चलता है मेरे साथ बैठता है। अभी महात्माओं ने समागम की जो बातें आपके चरणों में साझा करी उनके हृदय की भावना बता रही थी कि रोम रोम उनका इस निरंकार में रमा हुआ है। हुजूर की शोभायात्रा जब निकल रही थी सुबह काफी संगत आगे खड़ी थी। एक परिवार काफी पीछे खड़ा था एक थाल भी सजाया हुआ था उसमें चुनरी भी थी काफी दूर वह परिवार खड़ा है शांति से कि पता नहीं मौका लगेगा कि नही। गुरु पल पल पत्त रखता है यदि एक कदम हमने विश्वास का आगे बढ़ाया है तो सौ कदम यह आगे बढ़ाता है। यह देख सतगुरु ने राजपिता जी की ओर इशारा किया तो राजपिता जी ने उन्हें आगे बुलाकर उनसे थाल लेकर सतगुरु को दिया तो सतगुरु ने थाल से चुनरी खोल कर उन्हें वापस देकर कहा इसे अपनी बच्ची को ओढ़ा दें।
हमें अंधकार से निकल कर विस्तार असीम की ओर करना है एक-एक महात्मा में एक-एक संत में निरंकार प्रभु परमात्मा के दर्शन करो कि यह मेरे सतगुरु का गुरसिख जा रहा है जीवन खुशहाल हो जाता है जीवन आनंदमय हो जाता है। इस ज्ञान पर पकड़ मजबूत रखो इस ज्ञान पर अकीदा विश्वास मजबूत रखो तेरा अकीदा विश्वास मजबूत होगा सतगुरु किसी के भी घट में बैठ कर तेरा काम कर देंगे। संगत में आने से ही हमें सेवा की समझ आती है संतों का सत्कार करना संतों की इज्जत करना यह सारे के सारे गुण जो है हमें इस मां रूपी साध संगत में प्राप्त होते हैं। जिस ताकत के साथ आपको जोड़ा जा रहा है इससे बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने समागम से जुड़े अपने हृदय के भाव भी साझा किए इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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