महिला संत समागम का आयोजन संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में सम्पन्न हुआ, प्रयागराज से पधारीं बहन सारिका नारंग जी ने विचारों में कहा - किस तरह से समाज में रहना है, किस तरह से घरों में स्वर्ग का वातावरण बनाकर रखना है, किस तरह से हर एक परिवार में प्रेम की गंगा बहे, यह आज निरंकारी मिशन चाहता है
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) साधसंगत, प्रेम से कहना धन निरंकार जी। आप सभी के बीच में सम्मिलित होकर आप सभी के सुंदर भाव श्रवण करने का अवसर मिला। बहुत ही प्रसन्नता दिल को हो रही है। सतगुरु की कृपा से इस महिला समागम के रूप में आप सभी ने सतगुरु की शिक्षाओं को साझा किया। इस निराकार का यशोगान किया। बहुत ही सुंदर प्रस्तुतियां, गीत रूप में, कविता रूप में, विचार रूप में, कव्वाली रूप में, बहुत ही अच्छे तरीके से आप सब ने यहां रखी और अनेकों उसमें गुरु मत के पहलुओं को भी छुआ। ऐसा महसूस हो रहा था कि जो हमारी पवित्र मिशन की पुस्तकें हैं, बहुत अच्छे तरीके से उनका भी यहां पर पठन-पाठन होता है, जिस हिसाब से यहां उन पुस्तकों की बातें रखी गईं। जो हमारे मिशन का इतिहास है और हमारी पूज्यनीय राज वासुदेव जी, अभी जो ब्रह्मलीन हुए कल, तो उन्होंने कितने जतन से और कई पुस्तकें भी लिखी हैं, जिनका आज हम सभी ने यहां उनमें से कुछ न कुछ अंश भी श्रवण किए। और यह इतिहास कितना ज़रूरी है हमारे मिशन के लिए, एक-एक बच्चे के लिए, क्योंकि यह एक मैप का काम करते हैं। जब हम मैप लगाते हैं और उसके अकॉर्डिंग डायरेक्शंस फॉलो करते हैं, तो हम अपनी मंज़िल पे पहुँच जाते हैं। ठीक इसी प्रकार से यह जो संतों-महात्माओं की जीवनियाँ हैं, वो भी एक मैप का काम करते हैं। और जब हम उन पुस्तकों को खोलकर और पढ़ते हैं, तो हमें वो राह दिखाते हैं, रास्ता दिखाते हैं, सही मार्ग पे चलने का। तो फिर हम भी अपनी मंज़िल तक पहुँच जाते हैं, जो सतगुरु चाहते हैं।उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार 14 सितंबर को आयोजित महिला संत समागम में प्रयागराज से पधारीं बहन सारिका नारंग जी ने उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
सतगुरु ने बहुत कृपा करके हम सभी की झोली में ये ब्रह्म ज्ञान की दात डाली है। हम सब के ऊपर सतगुरु की विशेष कृपा है। यह अमोलक ब्रह्म ज्ञान जो हमें मिला। दुनिया की कितनी भी जानकारियाँ हैं, वो आज हर एक इंसान रखना चाहता है। चाहे वो कोई नए आविष्कार हों, चाहे वो कोई भी न्यू इन्वेंशन, कुछ न्यूज़ ऐसी हो, चाहे कोई भी फैशन का ट्रेंड हो, चाहे कोई भी टेक्नोलॉजी न्यू आई हो। हर एक चीज़ की जानकारी इंसान आज रखता है। लेकिन जब हम बात करते हैं इस प्रभु की जानकारी की, तो बहुत कम ही लोग हैं जो इसको पाना चाहते हैं, इसको जानना चाहते हैं। यह प्रभु का ज्ञान है, सत्य का ज्ञान है जो सबसे इम्पोर्टेन्ट एक महत्वपूर्ण मानव जीवन का लक्ष्य है। और यह लक्ष्य आज सतगुरु की कृपा से ही पूरा हुआ है। साधसंगत, लेकिन सतगुरु बाबा जी हमें यही समझाया करते थे कि केवल ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त कर लेने से ही हम मुक्ति के हक़दार नहीं हो जाते। तब तक, जब तक हम अंत श्वासों तक इस निराकार को वास्तव में महसूस करके जीवन जीते हैं और सतगुरु के दिखलाए मार्ग पर चलते रहते हैं, तभी यह मुक्ति का मार्ग भी हमें मिलता है।
सतगुरु ने ब्रम्ह ज्ञान की दात देकर हमारी सोच, हमारी विचार धारा को बदल दिया है: किस तरह से समाज में रहना है, किस तरह से घरों में स्वर्ग का वातावरण बनाकर रखना है, किस तरह से हर एक परिवार में प्रेम की गंगा बहे। यह आज निरंकारी मिशन चाहता है, क्योंकि प्रेम एक ऐसी शक्ति है जिससे किसी के भी दिल को जीता जा सकता है। पूज्य राजमाता जी भी हमें यही समझाया करते थे कि भक्ति घर से शुरू होती है और घर में सुधार करने के लिए भी उन्होंने यही समझाया कि अगर हर एक मेंबर घर का अपने फर्जों को याद रखता है और फर्ज को बखूबी निभाता है, तो फिर उस घर में कलह-कलेश नहीं होते, अशांति नहीं होती और स्वर्ग सा वातावरण होता है। साध संगत, हम सत्संग में भी आते हैं तो बहुत ही संतों के अच्छे शब्द हमको सुनने को मिलते हैं, अच्छी शिक्षाएं सुनने को मिलती हैं, लेकिन मन को जब तक हम संगत में नहीं बिठाते, केवल तन के बैठने से वो बातें हमारे अंदर नहीं जाती। क्योंकि मन को ही आज कंट्रोल में करना बहुत जरुरी है। अगर हम विज्ञान की मानें, तो जो लाइट है, उसकी गति सबसे तेज होती है। लेकिन अगर हम ज्ञान की मानें, तो मन की गति सबसे तेज होती है। 1 मिनट यहां बैठे हैं और कहां-कहां तक पहुंच जाता है। तो हम अरदास करके बैठे कि मेरा मन भी संगत में बैठ पाए, जो भी इस शब्द दासी के मुख से निकल रहे हैं, यह मेरा मन भी सुन पाए, मेरे अंदर वो बदलाव आ पाए। इसीलिए हमें सत्संग बक्शा है।
शुक्र है इस परमात्मा का, सतगुरु का कि उन्होंने हमें यह दिया। जितना-जितना हम सत्संग करते चले जाते हैं, उतना-उतना यह संसार हमारे मन से निकलता चला जाता है और निराकार धीरे-धीरे हमारे मन के अंदर भरता चला जाता है। कहने का भाव यही है कि जितना ज्यादा हम सत्संग करते हैं, उतना ज्यादा हम इस का एहसास, इस निराकार का एहसास हमें बना रहता है। जब एहसास बना रहता है, तो अपनी गलतियां भी फिर जल्दी ही महसूस हो जाया करती हैं। केवल भक्ति इसलिए ना हो कि वह दिखावा लगे। यह प्रेम इसलिए न हो कि वह दिखावा हो। वह वास्तव में हो, जिस तरह से हम कोई भी चीज ऑनलाइन आर्डर करते हैं। तो हम मोबाइल में देखते हैं, ऐप पे कि वह कितनी सुंदर दिखाई जाती है और कई बार इस सुन्दर भी आ भी जाती है। लेकिन ऐसा भी होता है कि जो चीज, जो क्वालिटी हमें दिखाई गई, कभी-कभी वह क्वालिटी जब वह डिलीवरी होता है सामान तो वह फैब्रिक, वह क्वालिटी वह बात नहीं होती जो हमें दिखाई गई होती है, जो हमने देखी होती है। तो उस टाइम बहुत डिसेप्वाइंटमेंट होता है कि जो हमने देखा वह तो हमें जब वह चीज मेरे करीब, मेरे नजदीक आई, तो वह बात नहीं दिखी। तो कहीं मेरा भी ऐसा किरदार ना हो कि अगर शब्द तो बहुत अच्छे निकल रहे हैं कि दूर से सुनने वाला, देखने वाला कहे कि ये बहुत अच्छा है। लेकिन अगर वो हमसे थोड़े समय के लिए मिलता है, बात करता है, या समय गुजारता है, तो ये ना हो कि उसका ऑपोजिट ही महसूस करे। कि वो बात कर्मों में नहीं है। तो साध संगत, ऐसा भाव मन में कभी भी कोई दिखावे में ना हो। जो है, जो मुख से निकल रहा है, वही मन के भी भाव, वही मेरा व्यवहार भी हो।
साध संगत, सत्संग में एक बार एक बहन गई। तो उन्होंने सुना सत्संग में जाकर कि कभी भी हम अगर कोई इंसान को देखते हैं कि उससे कोई गलती हो गई है, तो उस गलती को हम, अगर ये सोच लें कि ये मुझसे भी गलती हो सकती थी, और उस गलती को माफ कर देते हैं, कुछ नहीं कहते। तो फिर बात वहीं की वहीं खत्म हो जाती है। और उन्होंने यही कहा कि मुस्कुराकर टाल दो हर एक बात। बात तो बात है, बात की क्या बात है। जब वो बहन सुनकर के अपने घर पे आई, और उसने घर में कुछ महात्माओं का लंगर प्रसाद का भोजन था, और वो अपने परिवार में मिलकर के साथ में खाना बनाने लगी। तो उनकी बहू ने कहा कि, आज जो भी बन रहा है, तो आज ये कस्टर्ड मैं बना लेती हूं। तो उन्होंने कहा, ठीक है बेटा, आप बना लो। अब जब वो कस्टर्ड बनाती है, तो कहीं ना कहीं बाद में पता चलता है कि वो दूध जल जाता है। और वो आकर अपनी माँ से कहती हैं कि माँ मुझसे ये गलती हो गई, और ये थोड़ा दूध जल गया और कस्टर्ड खराब हो गया है। तो वो जो माँ थी उन्होंने अपनी बहू से, जब ये बात सुनी, तो एक पल के लिए तो उनके मन में आया कि अब दूध भी गया, चीनी भी खराब हुई, और गैस भी खराब हो गई। ये सब वेस्ट हो गया, लेकिन ये बोलने से पहले ही उनको ये बात, वही जो संगत में सुनी थी, वो ध्यान आ गई कि कोई भी गलती किसी से भी हो जाती है। तो वो गलती मुझसे भी तो हो सकती थी, और अगर हम मुस्कुराकर उस बात को टाल देते हैं, कोई बात नहीं कह देते, तो फिर वो वहीं पर बात खत्म हो जाती है। तो उस माँ ने यही अपनी बहू को कहा, कोई बात नहीं बेटा। ये चीज़ फिर से दोबारा, दूध आ जाएगा, फिर बन जाएगा, और अगर नहीं बनेगा तो कुछ भी मंगवा लेंगे बाहर से। तो साध संगत, वहीं माहौल भी खुशनुमा बना रहा, और वो स्वर्ग सा माहौल कायम रहा, और बात वहीं खत्म हो गई।
तो मेरे मन में ये भाव हमेशा बना रहे कि मैं ऐसे थोड़ी ना कि मुझसे कभी गलती ही नहीं होगी। ये तो इंसान, इंसान का शरीर मिला है, इंसान से थोड़ी-थोड़ी ऐसी भूलें तो होती ही रहती हैं। पर साध संगत, वहां पर ये, ब्रह्म ज्ञान को अगर हम, अपनी उस लाइफ की सिचुएशन में इस्तेमाल करते हैं, और उस विज़डम को जो हमें निराकार ने विवेक बक्शा, जो उस ज्ञान को पाने के बाद जो सोझी दी, उसको जब हम अपने घर की इन सिचुएशन में फौरन ले आते हैं तो वहीं पर बात भी सही हो जाया करती है। लेकिन अगर कहीं वही हम बहुत घुस करके, उस बात को और ज्यादा उसमें घुसते चले जाते हैं, तो फिर वही बात होती है, कि जिस तरह से हम अगर एक फोटोग्राफ क्लिक करते हैं, और हम वैसे बहुत सुंदर लगती है, लेकिन हम जब बहुत ज़ूम करते-करते उसको देखते चले जाते हैं, तो फिर वो चेहरे की छोटी-छोटी कुछ कमियां भी नज़र आने लगती हैं। तो साध संगत, इसलिए, जितना हम चीजों को खत्म करने का प्रयास करते हैं, जितना भी हम उस बात को वहीं के वहीं, बहुत अंदर उसको ज़ूम कर-कर के नहीं परेशान होते, तो फिर वह वहीं पर बात भी सुलझ जाया करती है, क्योंकि हम सब जानते हैं। हम महिलाएं, जब घर में अगर हम कहीं नींबू पानी बनाते हैं, तो अगर कहीं वह पानी पीने पर थोड़ा खट्टा ज्यादा लगता है, तो हम उसमें थोड़ा और पानी ऐड कर देते हैं ताकि उसकी खटास कम हो जाए, बैलेंस हो जाए। तो इसी प्रकार से हम हमारे ऊपर घरों, परिवारों, उनकी जिम्मेदारियों, प्यार से रहने की होती है। तो अगर कहीं रिश्तों में इसी किसी छोटी बात पर कोई खटास महसूस होने लग भी जाती है, तो अगर हम उसमें और प्यार ऐड कर देते हैं, तो खटास खत्म हो जाती है, बैलेंस हो जाते हैं रिश्ते, क्योंकि इस कार्य को सतगुरु माता जी भी हमें अपने प्रवचन में हमें यही समझाते हैं कि हमें छोटी सी बात को लेकर के उसको खींचकर बहुत बड़ा नहीं बना देना, उसके लिए जजमेंटल नहीं हो जाना कि यह इंसान ऐसा है, इसने मुझे ऐसे बोल दिया। उसे हमें बेनिफिट ऑफ डाउट देना है कि हो सकता है कि उस टाइम उस इंसान का मूड किसी वजह से खराब हो कि उसने मुझे यह बात इस लहजे में कही। हो सकता है कि कोई उसकी तबीयत खराब हो, उसका बीपी हाई हो, तो हम अगर उसको बेनिफिट ऑफ डाउट देते चले जाते हैं, तो वही मेरा मन भी शांत हो जाता है और बेचैन नहीं होता। हमेशा ही हमें यह ध्यान हमारा रहे कि यह निरंकार मेरे अंग संग हैं और यह मेरे दिल की जानता है। तो मुझे कोई भी ऐसा भाव भी अपने दिल में नहीं लाना और हमेशा यही भाव लाना है जो कि पॉजिटिव हो, अच्छा हो। किसी के लिए अगर हमने कोई नेगेटिव चीज देख भी ली है, सुन भी ली है, तो यही समझाया जाता है कि बहुत सी चीजें हैं जिनको अगर हम अनसुना कर देते हैं, तो ही वह मेरे भले के लिए होता है, इग्नोर कर देते हैं, तो वह मुझे वहां मेरा मन भी शांत रहता है। हम इससे हर वक्त खुद को जोड़कर रखते हैं। सिमरण के माध्यम से अपनी गलतियां बख्शवाते रहते हैं। तो साधसंगत, फिर यह हमें उन सिचुएशंस को डील करने की समझ भी बख्शता रहता है। बात जुड़े रहने की है।
जिस तरह से पतझड़ का मौसम जब भी आता है, तो उस टाइम सारे पेड़ की टहनियां, पत्तियां सूखने लगती हैं, लेकिन वापिस कुछ ही टाइम के बाद, कुछ महीने के बाद फिर से वह पेड़ हरा-भरा हो जाता है। क्यों ऐसा होता है ? क्योंकि वह अपने मूल से जुड़ा है, अपनी रूट्स के साथ जुड़ा है। ऐसे ही जब हम सभी कभी-कभी के जीवन में कोई ऐसे पल भी आ जाते हैं जिसको हम कह देते हैं कि यह मेरे अकॉर्डिंग नहीं हो रहा। जैसे मैंने सोचा था वैसा नहीं हो रहा, तो वहां पर भी अगर हम हमेशा इसपे संतों का संग करते हैं, इसका सहारा बनाए रखते हैं, इस मूल के साथ जुड़े रहते हैं, तो वहां फिर मेरे मन में भी वापस से हरियाली धीरे-धीरे आने लग जाती है। यह जो मेरा मन है, यह मन हमेशा अच्छे भाव इस मन में आएं, क्योंकि सतगुरु माता जी ने भी एक बार अपने प्रवचनों में बख्शीश की थी कि यह मेरा जो मन है, यह जो हम अगर किसी से प्यार कर रहे हैं, कल किसी से भी मेरे मन में सेवा का भाव है, तो वह देखा-देखी ना हो, ठीक है। हम देखा देखी से सीख तो जरूर जाते हैं, लेकिन जो दूसरे महात्मा का भाव होता है, वह भाव भी मेरे अंदर होना जरूरी है, क्योंकि भाव की ही सेवा परमान होती है। हम बहनों को बहुत सी छोटी-छोटी चीजें होती हैं जो परिवारों में भी बहुत ध्यान रखनी पड़ती हैं। जहां घर में छोटे बच्चे होते हैं तो बच्चे भी बहुत सी चीजें अपने माता-पिता से सीखते हैं। अपने घर के बड़े बुजुर्गों से सीखते हैं। महिला संत समागम में आसपास के कई जिलों से पहुँची बहनों ने भी अपनी सहभागिता दर्ज कराई इस अवसर पर संयोजक महात्मा राजकुमार हेमनानी, संचालक शंकर भाषानी सहित सेवादल के समस्त भाई बहनों ने भी बढ़ चढ़कर कार्यक्रम को सुंदर रूप प्रदान किया। सत्संग कार्यक्रम समाप्त होने के पश्चात सभी ने लंगर प्रसाद ग्रहण किया।
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