किसने यह पिंड दिया ? उसमें प्राण दिए ? सोचो, सतगुरु से इसकी कर पहचान, 'गुरु प्रसादी जब मन विच बसे तब फल पावे कोए' संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में महात्मा नोतनदास केवलानी जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) सतगुरु के द्वारा ही यह जो परम शक्तिमान, सर्वशक्तिमान परमपिता परमात्मा ईश्वर, जिनका निरंकार नाम है का ज्ञान होता है, ब्रह्म सर्व्यापक है। ब्रह्म का साकार सर्वश्रेष्ठ रूप सतगुरु होता है। ज्ञान आपको चाहिए साकार में होगा जो ज्ञान देगा, ज्ञान आपको इस समय मिल सकता है इंसानी जोनि में ही मिल सकता है, जोनि चली गई तो ज्ञान नहीं मिल सकता। किसने यह पिंड दिया ? उसमें प्राण दिए ? सोचो, सतगुरु से इसकी कर पहचान। यह जो सर्वज्ञ है निराकार ब्रह्म है, आप इसकी पहचान कर लेते हो, इसका अहसास मन में बसा लेते हो, जिस प्रकार मछली के चारों तरफ पानी होता है। मछली का खाना पीना रहना बच्चे पैदा करना पानी में ही होता है इसी प्रकार इंसान का भी खाना-पीना, रहना, बच्चे पैदा करना सब कुछ इसमें होता है। हमारे चारों तरफ भी परमपिता परमात्मा निराकार अविनाशी है इसको कोई लेप नहीं लगता है, यह हमारे चारों तरफ है। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में पवित्र अवतारवाणी के शब्द पर महात्मा नोतनदास केवलानी जी ने उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
उन्होंने कहा, कहे नानक गुरु बिन नही सूझे हरि साजन सबके निकट खड़ा। गुरु ग्रंथ साहिब में लिखा है 'बाणी गुरु, गुरु है बाणी, विच बाणी अमृत सारे', 'गुरुबाणी कहे सेवक जन माने, प्रथक गुरु निस्तारे' परमात्मा विशाल है, जमीं जमां विच एक ज्योत है जिसमे न घाट है न वाध होत है। आज इंसान भ्रमों में पड़ा हुआ है भ्रमों से ऊपर उठो आपका कोई नुकसान ब्रह्म नहीं करेगा। आप सर्वशक्तिशाली परमपिता परमात्मा का संग करो कोई भ्रम संशय आपका नुकसान नहीं करेंगे, आपके जीवन से अन्य को मिसाल आएगी।
अपने मालिक की पहचान अनिवार्य रूप से करनी है फिर सत्संग सिमरन सेवा इन तीनों में सारा सुख समाया हुआ है। कोई भी बात हो आपके मन में कितने प्रश्न हों, आप सतगुरु से प्रश्न करेंगे आपको उत्तर मिल जाएगा। हम सर्वव्यापी निराकार के अंश हैं इसकी पहचान जरूरी है, अपने मूल की पहचान करो। शब्द आया है 'अपना लाया प्यार न लगे, रब लाए तो लगदा है। गुरु प्रसादी जब मन विच बसे तब फल पावे कोए'। ज्ञान हमारी आत्मा को मिलता है 'नाना शास्त्र पठेन लोके नाना देवत पूजयनं आत्म ज्ञान बिना पार्थ-सर्व कर्म निर्रथकम' संसार के चाहे जितने शास्त्रों को पढ़ा जावे, चाहे जितने देवताओं का पूजन किया जावे परन्तु आत्मज्ञान के बिना यह सभी कर्म व्यर्थ है। तो इनकी पहचान आपको सतगुरु ही करा सकते हैं।
विश्वरूपा श्री कृष्ण भगवान को कहते हैं, विश्व रूपा जग में पूरे में समाया हुआ हूँ, कोई जगह खाली नहीं। विश्व रूपा जपों से, तपों से, वेद आदि के पढ़ने से मेरी पहचान नहीं हो सकती, मेरी पहचान तत्व ज्ञानी, ब्रह्म ज्ञानी, ब्रह्म वेता, सतगुरु के द्वारा ही की जा सकती है। पूरे सतगुरु बिना अज तक कोई होया पार नही। बगैर पति के नारी का श्रृंगार नहीं है, जेड़ा केवल मंतर देवे गुरु अधूरा होता है। मेरी बात मानों जिन्हें इस परमात्मा का ज्ञान नहीं है इसको प्राप्त कर लें और इसका सिमरन करो, इसको अपना लो इसका अहसास मन में बसा लो। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने गीत - विचार के माध्यम से अपने भाव प्रकट किए इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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