सबर सिदक दा चोला होवे तेरा इक सहारा रहे, गुरसिख इस सत्य को जानता है अगर इसकी मर्जी है तो होके रहेगी, गुरसिख मन वचन कर्म से एक होता है, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में सतना से पधारे संयोजक एवं ज्ञान प्रचारक महात्मा डॉ जगदीश शेवानी जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) सबर सिदक दा चोला होवे तेरा इक सहारा रहे। शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी महाराज अवतारवाणी के शब्द के माध्यम से एक गुरसिख, एक भक्त के जीवन को प्रकट कर रहे हैं, हमारे सामने जाहिर कर रहे हैं इंसान को एक जागृति दे रहे हैं कि इंसान भी इन गुणों को अपना ले और सुख पूर्वक आनंद पूर्वक इस जीवन को जिए। जो इंसान सतगुरु की शरण में आकर के शरणा गत्वों करके गुरु की कृपा को प्राप्त करके अर्थात इस सत्य निराकार पार ब्रह्म परमात्मा का ज्ञान प्राप्त कर लेता है परम ज्ञान की प्राप्ति कर लेता है वो उसी क्षण गुरसिख की श्रेणी में आ जाता है गुरसिख कहलाता है और जिस गुरसिख का इस सत्य निराकार प्रभु पर इस ईश्वर पर अटूट विश्वास होता है वो गुरसिख एक सच्चा भक्त होता है यह शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी महाराज शब्द के माध्यम से समझा रहे हैं। जिसने ज्ञान प्राप्त किया है गुरु की शरण में आकर गुरु की कृपा को प्राप्त किया है, हर कार्य में भक्ति भाव में रह करके केवल सतगुरू का सहारा लेते हैं इस सत्य निराकार पार ब्रह्म परमात्मा का सहारा, गुरसिख के दस सहारे नहीं हुआ करते हैं तेरा एक सहारा रहे केवल इस एक सहारे पर सतगुरू के सहारे पर गुरसिख पूरा जीवन गुजार देता है। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में अवतार वाणी के शब्द पर सतना से पधारे संयोजक एवं ज्ञान प्रचारक महात्मा डॉ जगदीश शेवानी जी ने उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
उन्होंने कहा एक गुरसिख के मन में कैसा चल रहा होता है, गुरसिख के मन की अवस्था क्या होती है उसकी सोच क्या होती है शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी महाराज सम्पूर्ण अवतारवाणी में एक स्थान पर इस बात का खुलासा करते हैं कि हर वेले हर हाल दे अंदर जुड़ी गुरु से तार रहे। सतगुरु की मूरत गुरसिख के मन में बसती है दिल में परोपकार की भावना होती है किसी का काम बन जाए गुरसिख कभी किसी का बुरा नहीं करता जो किसी का बुरा करता है बाबा हरदेव सिंह जी महाराज कहा करते थे वो गुरसिख नहीं हुआ करता। हर वेले हर हाल दे अंदर का मतलब होता है हर समय। आठ पहर होते हैं चार पहर दिन के चार पहर रात के, उठते बैठते चलते फिरते खाते पीते सोते जागते हर कर्तव्य की पालना करते समय हर परिस्थिति में दुख में सुख में विकट से विकट विपरीत परिस्थिति में जुड़ी गुरु से तार रहे। मन का नाता इस सत्य निराकार प्रभु से सतगुरू से, सतगुरू की शिक्षाओं से जुड़ने का भाव होता है उसकी सोच हुआ करती है सबका भला करो भगवान सबका सब विधि हो कल्याण।
उन्होंने कहा बाबा हरदेव सिंह जी महाराज कहा करते थे गुरसिख अंदर बाहर से एक होता है, गुरसिख मन वचन कर्म से एक होता है जैसे उसके मन में वैसे उसके बोलों में वैसा ही उसके कर्मों में। कबीर कसौटी राम की जो रमा हुआ है सृष्टि के कण कण में निरंकार प्रभु बसा है। जो अपनी हस्ती को अपने वजूद अपनी पहचान को मिटा करके मैं यह हूं मैं वह हूं अपनी पहचान को मिटा करके इस परमसत्ता के आगे समर्पित हो गया है वो टिकेगा। बाबा हरदेव सिंह जी महाराज परमाया करते थे असली जीवन को जीना चाहते हो तो पहले मरण कबूल कर, गुरसिख गुरू का मिटा हुआ मरा हुआ भक्त होता है। गुरसिख कहते ही उसी को है जो अंग के संग रमे को इस सत्य निराकार प्रभु को जानता है जिसको इस ज्ञान का ध्यान है वो गुरसिख है कि ये मेरे अंग संग है, मेरे अंदर, मेरे बाहर, मेरे चारों तरफ़।
उन्होंने कहा गुरसिख नम्रता में रहता है अहंकार का त्याग करता है सीधी सच्ची नेक राह पर चलने वाला एक नेक इंसान इस पर एतबार करता है, इस पर भरोसा करता है। बाबा हरदेव सिंह जी महाराज कहा करते थे कि इसको देखते तो बहुत है लेकिन समझते कुछ-कुछ हैं, सब नहीं समझ पाते। बड़े बड़े शहरों में सत्संग के आयोजन होते हैं और प्रेणाएं दी जाती हैं कि ईश्वर का बोध जिसको हासिल करना हो, इस ब्रह्म की प्राप्ति करना हो वो आ जाए। देखा-देखी बहुत से बैठ जाते हैं लेकिन समझते कुछ-कुछ हैं, सब नहीं समझ पाते कि यही निरंकार है, कुछ समझ भी लेते हैं कि कण कण में रत्ती- रत्ती में, पत्ती-पत्ती में, जड़ में, चेतन में, आप में, सब में यह समाया हुआ है तो इसके सिवा कौन हो सकता है, इसके सिवा तो कोई और हो नहीं सकता, कुछ समझ भी लेते हैं लेकिन स्वीकारते कुछ-कुछ हैं सब नहीं स्वीकार कर लेते, यही भगवान है, यही ईश्वर है, यही ब्रह्म है, यही खुदा है, सब नहीं स्वीकार कर लेते, कुछ स्वीकार भी कर लेते हैं कि गुरू कह रहा है, सतगुरु ने दिखाया है यही है निरंकार।
हमारे घरों में परिवारों में बड़े-बड़े फंक्शन हो रहे होते हैं ओपनिंग हो रही होती है रिंग सेरेमनी हो रही होती है और भी ना जाने कितने फंक्शन होते हैं यह परमात्मा यह प्रभु याद नहीं आता लेकिन जो सच्चा और पक्का गुरसिख होता है जो भक्त होता है पहले जयकारा लगाता है फिर सुमिरन करता है और फिर आगे कदम को बढ़ाता है। प्रभु की रजा में जीवन जीने का एक ही अर्थ होता है शुकर शुकर करके जीवन जीना, कोई शिकायत नहीं, ये नहीं मिला वो नहीं मिला, ऐसा नहीं हुआ वैसा नहीं हुआ। भाणा मने मीठा बोलता है कड़वा नहीं बोलता नफरत की भाषा नहीं बोलता व्यंग्य की भाषा नही बोलता ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करता जो खंजर बन करके चुभे। अंधों की औलाद अंधी होती है इतना ही तो कहा था द्रोपदी ने और महाभारत हो गई।
उन्होंने कहा गुरसिख अरदास करता है अरदास करना तो उसका अधिकार बनता है, सुमिरन तो कर्तव्य है उसको करना ही करना है। सेवा भी करनी है सत्संग भी करना है गुरसिख मांगे इसी को और कोई आधार न ले। गुरसिख इस सत्य को जानता है कि अगर इसकी मर्जी है तो होके रहेगी ये बात और इसके न होने में ही अगर मेंरी भलाई है तो फिर ये बात कैसे होगी इस सत्य को स्वीकार कर लेता है। जिस दे दिल निरंकार दा वासा होंदा नहीं वो बे सबर कहे अवतार हर हाल दे अंदर करदा रब दा शुकर शुकर। सिदक अर्थात भरोसा, सतगुरू पर विश्वास करके गुरसिख सब कुछ प्रात कर लेता है। मुर्शद सतगुरू को कहते हैं, जिनको मुर्शद पे है यकीन उनके बेड़े तूफ़ां से पार होते, सारे कारज रास होते हैं।
साध संगत प्रार्थना दिखावा नहीं है यह अंतर्मन के भाव हैं जो प्रभु से कहते हैं आपको पता है कि मुझे क्या चाहिए, क्या मेरे लिए हितकर है, क्या मेरे लिए नुकसान दायक है, जो मेरे लिए ठीक हो आप कृपा करना मुझे वही देना मुझे उसी रास्ते पर चलाना जिसमें आपकी रजा हो। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने गीत और विचार के माध्यम से अपने विचार रखे इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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