अगर जीरो के साथ एक लगा दिया जाए तो कीमत पड़ जाती है, ज्ञान के बगैर हमारी कोई कीमत नहीं है, मन का नाता इस परमात्मा से जुड़ा रहे, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में बहन पूनम लालवानी जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) शुकराना सतगुरु माँ का और आप जैसे ज्ञानी संतों का हर पल शुकराना आप संतों से कुछ सीखने के लिए ही मिला। यही भाव हमेशा बने होते हैं कि एक गुरसिख भक्त से कुछ सीख पाए क्योंकि सचे पातशाह का रहमो करम ही है जो अपने गुरसिख को यहां बठाकर कोई भी सेवा ले ले। कहते हैं सतगुरु की एक नजर ही पढ़ जाए तो खुशियों के अंबार लग जाते हैं, साध संगत आप ऐसे ब्रह्मज्ञानी जन हैं जिनको सतगुरु ने नवाजा है जब आपकी मुस्कान बिखरती हैं तो आशीर्वाद प्राप्त हो जातें हैं। यही मन के भाव होते हैं कि सचे पातशाह एक एक गुरसिख भक्त की झोलियां सुखों से भरना क्योंकि जब हम सतगुरू के साथ जुड़ते हैं हमारे मन का नाता इस परमात्मा के साथ जुड़ जाता है तो सारे सुख हमारी झोली में आ जाते हैं और अगर मन ही नहीं जुड़ा फिर कोई फायदा नहीं होता। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में अवतार वाणी के शब्द पर बहन पूनम लालवानी जी ने उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
उन्होंने कहा पावन पवित्र अवतार वाणी के ये शब्द हमें चेतन कर रहे हैं कि संत जना की संगत करके रब दी सोच विचार करो, शब्द गुरुदा रख के दिल विच एके दा आधार करो। सबसे पहले जीवन में संतों का संग जरूरी है। जब जीवन में सतगुरु आ जाते हैं संतों का संग प्राप्त होता है तो हमारा जीवन सहज और सरल होता चला जाता है। यह अवस्था गुरु सिखी की साध संगत संतों के बीच रहकर हमें प्राप्त होती है क्योंकि संत न होते जगत में तो जल मरता संसार। भगवान श्री राम जी ने भी नवधा भक्ति में यही उपदेश शबरी को दिया प्रथम भक्ति संतन कर संगा यही हमारे जीवन को तारते हैं। शब्द गुरू का रख के दिल विच एके दा आधार करो। यह शब्द जो ध्यान मालिक ने हमें बक्शा है यह जो अनमोल खजाना हमारे हिस्से में आया है इसको अगर हम अपने जीवन में उतारते हैं इस एक प्रभु परमात्मा का आसरा लेकर जीवन को सुंदर बना लेते हैं फिर तो सुख ही सुख है दुख नहीं है।
सुख मालिक ने बक्शे है इंसान सिर्फ अपनी करनी से दुख उठा लेता है फिर वह दुखी हो जाता है। संत भक्त तो हमेशा परोपकारी होते हैं वह हर एक के लिए सुख मांगते हैं कि सचे पातशाह जैसा हमें सुखी किया है सब को कर दे। एक बार शहंशाह जी बैठे हुए थे उनसे एक बन्दा कहने लगा कि सचे पातशाह उसने मुझे एक गाली निकाली तो आगे से शहंशाह जी चुप रहते हैं फिर वो आगे से कहता है कि मैंने भी उसको तीन चार गालियां निकाली फिर शहंशाह जी कहते हैं अच्छा तूने तीर चार गालियां निकाल दी, फिर आगे से वो बन्दा शहंशाह जी को कहता है कि उस इंसान से रहा न गया उसने मुझे एक दो थप्पड़ लगा दी, मैं भी कौन सा कम था मैंने भी उसको नीचे गिरा दिया कि वो जिन्दगी भर याद रखेगा। तो आगे से शहंशाह जी कहते हैं कि फिर तू मेरे पास क्या लेने आया है ? क्या मांगने तू मुझसे आया है ? तूने तो अपना हिसाब किताब वहीं पूरा कर लिया फिर मुझसे क्या लेने आया है। ये चेतनता सतगुरु हमें देते हैं कहने का भाव कि जब ज्ञान जीवन में बस जाता है, हृदय में रच बस जाता है तो हमें समझ आ जाती है कि हमें कैसे अपने जीवन को चलाना है। हर एक संत से हमें प्यार करना है, हर एक संत का हमें सत्कार करना है क्योंकि शहंशाह जी ने तो हमें चेतन किया कि हम कई वर्षों से संगत कर रहे होते हैं ये निरंकार का ज्ञान बक्श दिया सतगुरू तो बक्शन हार होता है।
सतगुरु कहते हैं अगर आपने एक दूसरे का दिल दुखाया फिर मैं कुछ नहीं कर सकता भले आप रोज संगत करते हैं निरंतर सत्संग सेवा सिमरन से जुड़े हुए हैं लेकिन अगर भूल कर भी आपने किसी का दिल दुखा दिया तो आपकी भक्ति की सारी कमाई खत्म है हमें शुरू से कमाई करनी पड़ेगी तो मन वचन करम से एक हो कर बैठो ये सच का दरबार है। यहाँ पर हम बैठ कर जो कुछ सोचते हैं वो हमारे भाव पूरे होते चले जाते हैं बशर्ते मन का नाता हमारा इस परमात्मा से जुड़ा हो तो हर सुख हमारे हिस्से में आते चले जाते हैं। पहले हम भी बहुत कुछ कर्मकांड से जुड़े लेकिन जब ये ज्ञान हिस्से में आया, जब जीवन में सतगुरु आये तो हमारा पूरा जीवन कैसा था वो हमें अपने अंदर झांक के देखना है कि ज्ञान के बाद हमारे जीवन में कौन सा परिवर्तन आया, बहुत हम खुश होते हैं कि हम 25 साल पुराने ज्ञानवान हैं, साध संगत अपने हृदय में झांक कर देखो क्या हमारे जीवन में वो बदलाव आया है जो सतगुरु हमसे चाहते हैं, दावे तो हम बहुत बड़े-बड़े करते हैं बोल भी हम बड़े-बड़े बोल लेते हैं लेकिन अगर हमारा कर्म वैसा नहीं जैसा सतगुरु चाहते हैं फिर ये ज्ञान से हमें लाभ नहीं होता फिर तो ना ज्ञान है ना गुरु है ना सतगुरु की रहमत है। हमे टटोलना होता है अपने हृदय को कि हम कहां खड़े हैं कैसा हमारा जीवन है ये हमें देखना होता है सतगुरू ने तो युक्तियां बता दी हैं। सुख चाहते हैं आनन्द चाहते हैं तो सत्संग सेवा सिमरन से जुड़े रहो क्योंकि जब हम नित्य प्रतिदिन सत्संग में आते हैं तो हमारी कीमत पड़ जाती है।
जब हम संगत में आकर बैठते हैं तो भाव बनता है कि संतों महा पुरुषों की सेवा निष्काम भाव से करें और सिमरन से नाता भी जुड़ा है तो मन में वो गुण समाते चले जाते हैं। प्यार, नम्रता, सहनशीलता, विशालता क्योंकि हमें संतों ने सिखलाई दी यही जीवन का आधार मान कर चलते हैं इस एक परमात्मा का। हम कुछ भी नहीं है अगर जीरो के साथ एक लगा दिया जाए तो कीमत पड़ जाती है। ज्ञान के बगैर भी हमारी कोई कीमत नहीं है। कौन पूछता था तेरी बंदगी से पहले मैं तो बुझा हुआ दिया था तेरी रोशनी से पहले। जब ज्ञान जीवन में उतरता है तब हमारे जीवन में वो निखार आता है, सतगुरु की शरण में आओ।
जीवन और मृत्यु तो मालिक ने तय की हुई है लेकिन बीच का सफर जो मालिक ने हमें बक्शा है इसको हमने अपने हिसाब से अपने अपने रंग भरने हैं। प्रेम के अगर यह रंग भरते हैं तो जीवन सुन्दर हो जाता है अगर नफरत के रंग भरते हैं तो कुछ भी प्राप्त नहीं होता। जब तक कहते हैं बाजार खुला हुआ है तो आप सौदा खरीद लोगे अगर बाजार बंद हो गया फिर आप सौदा नहीं खरीद सकते हैं। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने गीत और विचारों के माध्यम से अपने सुंदर भाव प्रकट किए इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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