सतगुरु ने हमसे कहा ये पाँच प्रण हैं इस पर अपने आपको अर्पित समर्पित करना पड़ेगा, निवाणा बनना पड़ेगा, जैसे ही एक हाँ कह दी हुजूर साहिब ने पार ब्रह्म परमेश्वर निरंकार खोल कर रख दिया, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग मे महात्मा विजय रोहरा जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) सतगुरु की कृपा से, सतगुरु के रहमों करम से ये पल हमारे हिस्से में आ जाते हैं कि ब्रह्मज्ञानी संतों के चरणों में बैठकर, साध संगत के चरणों में बैठकर पार ब्रह्म परमेश्वर का यशोगान करने का सौभाग्य प्राप्त हो गया है, सहज में ही सूफी संतों की कृपा दृष्टि पड़ जाती है, सहज में ही आशीर्वाद मिल जाते हैं और यह होता तब है जब हम इस मां रूपी साध संगत में अपने आपको समर्पित कर देते हैं। सतगुरु के दरबार में आकर के अपने आप को समर्पित कर देतें है तो सारे के सारे जो गुण है इस निरंकार के, जो संतों की कृपाएँ हैं वो गुरसिख को सहज ही प्राप्त हो जाती हैं। गुरु ने कृपा की है, तरस किया है, रहम किया है कि ये ज्ञान खोल के रख दिया ये कुल कायनात का मालिक हमारी झोली में आ गया। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में अवतार वाणी के शब्द पर महात्मा विजय रोहरा जी ने उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
सतगुरु ने हमसे कहा ये पाँच प्रण हैं इस पे अपने आपको अर्पित समर्पित करना पड़ेगा, निवाणा बनना पड़ेगा। जैसे ही एक हाँ कह दी हुजूर साहिब ने पार ब्रह्म परमेश्वर निरंकार खोल कर रख दिया। नजरों के सामने जिधर में देखता हूँ उधर तू ही तू है हर छै में जलवा तेरा हु ब हु है। फिर गुरसिख इसका हो जाता है कदम कदम पर इसका सहारा लेता है पल पल इसका अहसास दिल में बसा के चलता है। सतगुरु हमें सिमरन करना सिखा रहे हैं कि कहां जुड़ना है विश्वास के लिए ताकत के लिए क्या जरूरी है, दो जहां के मालिक है सारी कायनात को चला रहे हैं सारी सृष्टि की पालना कर रहे हैं लेकिन मुझे सिखा रहे हैं कि यही तेरा चालक है यही तेरा पालक है।
सतगुरु की दरबार ऐसी दरबार है जहां अप्लीकेशन बाद में लगाई जाती है पहले वो पूरी हो जाती है लेकिन ज्ञान ले लेना ही काफी नहीं है ज्ञान को जीना पड़ेगा पता होना चाहिए मैं इनके बिना नहीं जी सकता जो हमारे हित में होता है पूरा होता है। ये साहिब मुझे देखता रहता है कि पल पल तू चेतन हो जा, सावधान हो जा, तू ब्रह्मज्ञानी है, तूने ब्रह्मज्ञान की दात पाई है, बेकार की बातों में न पड़ जाना। अपना कर्म सिर्फ सतगुरु के आदेश अनुसार कर जीता जा जीवन में कोई कमी नहीं रहेगी। हर एक स्त्री रूपी आत्मा अपने प्रभू परमात्मा के दर्शन दीदार कर ले जिससे उसका आना सुहेला हो जाये।
बाबा हरदेव सिंह जी महाराज तो इतना आशीर्वाद देते हैं कि जिन घरों में मिल बैठकर ज्ञान का प्रभु का सिमरन होता है उस घर में देवता वास करते हैं वो घर वैंकूठ धाम बन जाता है। इतना बड़ा आशीर्वाद गुरसिखों की झोली में आया है बस अपने आपको अपनी मत को गुरु के चरणों में समर्पित कर दें भ्रम भुलेखों से ऊपर उठकर क्योंकि सत्य के साथ सतगुरु ने जोड़ा है पार ब्रह्म परमेश्वर के साथ हमें जोड़ा है। महाराज वशिष्ठ जी ने राम जी को ज्ञान दिया। महाराज संदीपन जी ने कृष्ण जी को ज्ञान दिया। मीरा को संत रविदास जी ने ज्ञान दिया। सतगुरु ने इस पावन के साथ जोड़ा है एक एक संत का जीवन खुद प्रचार जैसा बन जाए। सामने से परमात्मा हमे देख रहा है हम परमात्मा को देख रहें है यह गुरु की कृपा से संभव होता है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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