यह ब्रह्मज्ञानियों की सभा है यहां पर इंसान को अपने मूल परमात्मा की पहचान कराई जाती है, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में महात्मा नोतनदास केवलानी जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) यह शरीर निरंकार प्रभु की देन है इसके अंदर आत्मा है इसी की वजह से पूरा शरीर क्रियाशील है। ईश्वर अंश जीव अविनाशी चेतन अमल सहज सुकुराशी। निरंकार प्रभु सर्वज्ञ है सर्वश्रेष्ठ है, यह ब्रह्मज्ञानियों की सभा है यहां पर इंसान को अपने मूल परमात्मा की पहचान कराई जाती है। यहां पर परम पिता परमात्मा के बारे में बोला जाता है। ज्ञान लेने के बाद ही सेवा सुमिरन सत्संग से जुड़ते हैं। सेवा ही मूल है सेवा कर लो, निर अभिमानी होके, दिखावा न करें तभी सेवा पूरी होगी, इंसान को संतों का सम्मान करना है आपस में प्यार करना है सेवा करना है लेकिन इंसान भूल में पड़ा हुआ है अपने मन से चल रहा होता है। भगवान का नाम तो दुनिया लेती है लेकिन इस रमे राम का ज्ञान लेना चाहिए सत्संग सिमरन सेवा को जीवन में लाना चाहिए। मानस में पांच संस्कारो का वर्णन आता है, जिसमें सेवा सिमरन सत्संग सत्कार और संस्कार है। ज्ञान लेने के बाद जो भक्ति से जुड़े रहते हैं इस निरंकार को अपने मन में बसाए रखते हैं वहां यह भगवान भी साथ होता है। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में महात्मा नोतनदास केवलानी जी ने उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
सतगुरु निराकार का साकार रूप होता है इस पर पूर्ण विश्वास रखें। निरंकार तब खुश होता है जब देखता है इसकी संतान का सत्कार हो रहा है फिर इंसान सबको अपने जैसा समझता है, किसी से वैर नहीं रखता उसमें इंसानियत आती है और फिर सबके भले की बात करता है। सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने कहा है हर एक के अंदर आत्मा है ये आत्मा परमात्मा का अंश है, सब के साथ सद व्यवहार करो इसके पीछे आपको सारे पदार्थों की प्राप्ति होती है इसको बीच में रखो लेकिन इंसान इसे भूल भी जाता है। जिन घरों में स्त्रीयों का सम्मान होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है।
उन्होंने कहा कभी क्रोध न करो इसका सिमरन करो, सिमरन में वो शक्ति है। संत यही करते हैं जो संतों का सत्कार करता है उनके कार्य हल हो जाते हैं। हम खुशियां मांगते हैं इसलिए हमें भी सेवा सिमरन सत्संग सत्कार करना है। भक्ति की विशेषता है कि पहले साधु की शरण में आना पड़ता है तब इसकी पहचान होती है गुरु बिन भव निधि तरई न कोई ज्यों व्रंच शंकर सम होई गुरु के बिना आत्मा का कल्याण नही होता। गुरु ही ब्रह्मा है विष्णु है महेश है, गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मे श्री गुरुवे नमः बिन सत्संग विवेक न होई राम कृपा बिन सुलभ न सोई। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने गीत, विचार आदि के माध्यम से अपने भाव प्रकट किए। इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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