जिसकी भक्ति जिसकी पूजा उसका ध्यान जरूरी है कहे हरदेव के पहले ईश्वर की पहचान जरूरी है.. यह विशाल समंदर वही करता रहा जो एक छोटा बुदबुदा कहता रहा.. बाबा जी ने कहा सबसे प्यार करना है अगर वो प्यार नहीं कर रहा तो आप अपने प्यार के डोज को डबल कर दो.. समर्पण दिवस - संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में नागौद के संयोजक महात्मा श्री अनूप सुंदरानी जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) ऐसी ही महफिल ऐसा ही सौहार्दमय वातावरण होगा जहां कबीर जी बैठते होंगे और उन्होंने लिखा अपनी पीड़ा व्यक्त की, कि राम बुलावा भेजिया दिया कबीरा रोय जो सुख साधु संगत में वो वैंकुठ में न होय। गोस्वामी जी ने मानस में स्पष्ट किया कि भक्ति सकल सुख खानी बिन सत्संग न पावही प्राणी। बिन सत्संग विवेक न होई और राम कृपा बिन सुलभ न होई। कोई यह ना समझें कि घर से निकला और यहां आकर के बैठ गए, इस भुलेखे में मत रहना, जिन्हें ये पसंद करता है उनको अपनी इबादत में लगाता है बाकी के कान में सिक्का पिघला करके डाल देता है। ऐसे में हम अपनी ओर देखें कि मुझे गुरू ने चुन लिया और अपने चरणों से लगा लिया और घ्यान दे दिया। इसने मेरा नाम नहीं पूछा मेरी जात नहीं पूछी मेरी योग्यता नही पूछी सीधे मेल करा दिया। यहां जितने महात्मा बोले जितनी बहनों ने विचार किया इसका अहसास करके बोला कि तू ही धन्य है। हरदेव वाणी में दर्ज कर दिया है जिसकी भक्ति जिसकी पूजा उसका ध्यान जरूरी है कहे हर देव के पहले ईश्वर की पहचान जरूरी है। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में 13 मई सोमवार समर्पण दिवस के अवसर पर आयोजित सत्संग में नागौद के संयोजक महात्मा श्री अनूप सुंदरानी जी ने विशाल संख्या में उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
उन्होंने कहा जिन्हें भक्ति करना है इबादत करना है पूजा करना है उनका तीर तो चढ़ा है पर निशाना कहां लगेगा ? भूख एक अहसास है कोई कहे कि भूख दिखाओ दिखाई नहीं जा सकती, प्यास एक अहसास है जिसको लगती है उसे पता होता है कि मुझे प्यास है फिर वो ढूंढता है कि कहीं पानी मिल जाए। ये जो शरीर मिला ये परमात्मा से मेल के लिए मिला है। कई जन्म भए गजमीन कुरंगा कई जन्म भए कीट पतंगा कई जनम पंछी सर्प होयो। आज इंसान कोई पेड़ नहीं बनना चाहेगा कोई कीड़ा नही बनना चाहेगा, जानवर नही बनना चाहेगा अब मुक्ति कैसे होगी मौक्ष कैसे होगा ? यही नहीं पता मैं कहां से आया हूँ कहां जाऊँगा तो फिर वो भटकना पड़ेगा ना चाहते हुए भी वो बनना पड़ेगा जिसके लिए तुम इंकार कर रहे हो कि मैं ये नहीं बनूंगा। भाई इसलिए ये महफिल सजाई जाती है, ये जो महात्मा वर्दियों में यहां खड़े हैं इनका एक ही मकसद है, माताएं गीत गा रही है कि इस ज्ञान को हासिल कर लो प्रभु को जान लो जो तुमारी आत्मा का मूल है उसकी पहचान कर लो ये पता कर लो कि तुम आए कहां से हो जाओगे कहां अगर ये पता नहीं किया तो फिर जिस के लिए मना कर रहे हो वहीं जाना पड़ेगा। दौलत के दीवानों सुन लो एक दिन ऐसा आएगा धन दौलत और माल खजाना यही पड़ा रह जाएगा, सुन्दर काया फानी होगी।
साध संगत से उन्होंने कहा गली गली मैं तो शोर मचा रहा हूँ कि जो सतगुरु माता जी ने हीरे मोती दिये हैं वो ले लो यही समय है, क्या पता कल आवाज आए ना आए। यह वो नाम खजाना है जो जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी यहीं है इसी को कहा नेक कमाई कर ले बंदे पता नहीं जिन्दगानी का। नेक कमाई होती है जब हम संतों के संग में आकर के बैठते हैं सत्संग में आते हैं सत्संगी वो जो सत्य का संग कर रहा है। अगर वस्तु है तो नाम है और नाम है तो वस्तु है। अगर गिलास नाम है तो गिलास है, अगर कूलर नाम है तो कूलर है, तो फिर प्रभु, अल्ला, गॉड, जीजस, ईश्वर, भगवान ये नाम हैं, तो भगवान है, है तो फिर कहा है ? हमारे महात्मा कहते हैं कि जो ये कहता है कि कण कण में भगवान है हाथ पकड़ो उसका कि दिखाओ उनको कैसे कह रहे हो ? दास ये इसलिए बात कह रहा है के मेरे शास्त्र कहते हैं प्रभु जाना जा सकता है जानने योग्य है इसी के लिए यह मनुष्य का शरीर मिला है। सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी ने कहा कि इंसान को बाजी यहां से जीत कर जानी चाहिए और यह हार कर चला जाता है। बाबाजी बिना रुके ही चलते रहे, प्यार ही प्यार बरसा गए।
जब शोभा यात्रा निकलती थी बाबा जी और ऊपर सीढ़ी लगा लेते थे, स्टूल लगा करके एक एक संगत को देखना चाहते थे, कोई हाथ में ढोलक दे लेता था वो ढोलक बजाने लगते थे, कोई मंजीरा दे देता था। जो हम कहते रहे यह विशाल समंदर वही करता रहा जो एक छोटा बुदबुदा कहता रहा लेकिन जब इस विशाल समंदर ने इस बुदबुदे से कहा कि बुदबुदे नफरत नहीं करना वैर नहीं करना द्वेष नहीं करना पर मैंने कहा बाबा जी ये मैं ये छोड़ नहीं पाया, ना वैर छोड़ पाया ना नफरत छोड़ पाया ना द्वेष छोड़ पाया बाबा जी ने कहा सबसे प्यार करना है। अगर वो प्यार नहीं कर रहा तो आप अपने प्यार के डोज को डबल कर दो। सामने वाला अगर हमारे मुताबिक नहीं चलता तो प्यार तो दूर की बात है हम उस इंसान से नफरत करने लग पड़ते है यहां नफरत का कोई स्थान नहीं है इसलिए बाबाजी को कहना पड़ा। बाबाजी ने प्यार वाला मिशन चाहा पर मैं बार-बार उनकी उंगली छोड़ करके वापस उसी गंदगी की ओर चला जाता हूँ। बाबा जी टूर पर किसी महात्मा के घर चले गए सोफे पर बैठने पर उनकी उंगली में कील लग गई खून निकलने लगा पर बाबा जी के चेहरे पर कोई भाव नहीं है बस टिश्यू पेपर उठाया और उंगली पर लपेट लिया। जब उस महत्मा के घर के बाहर से निकले तो पास में खड़े महात्मा ने देखा कि वो टिश्यू पेपर लाल हो गया। बाबाजी भक्तों के भावों को देखते थे और उनके हाथ की बनी खट्टी खीर भी मुस्कुरा कर पी जाते थे।
आप कहते हो कि मेरे लिए इसके मन में नफरत है बोल जो है वो थोड़े खराब है। मैं बोल ऐसे बोल जाता हूँ, शब्द निकल जाते हैं। राज माता जी ने कहा कि ये जुबान किसकी है, शक्कर की जुबान है या मिर्च का गोदाम है इसलिए सोच समझ करके बोलो। आप गुरु का काम करो मिशन का काम करो। इसके साथ ही उन्होंने सतगुरु के साथ हुए अपनी निजी अनुभवों को भी साध संगत के समक्ष भाव विभोर होकर व्यक्त किए। सत्संग में कटनी ब्रांच के संयोजक महात्मा श्री राजकुमार हेमनानी जी व सेवादल शिक्षक श्री शंकर भाषानी सहित समस्त सेवादल व विशाल संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही। इस अवसर पर लंगर प्रसाद का भी आयोजन किया गया।
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