घर - समाज में रहकर कर्तव्यों का पालन करते हुए भक्ति करनी है - सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज, संत निरंकारी मासिक पत्रिका का मार्च 2024 का अंक सबर और सहजता विशेषांक है जिसमें सबर के लाभ और सहजता की आवश्यकता की सुंदर विवेचना की गई है
कटनी ( प्रबल सृष्टि ) परमात्मा से जितना गहरा नाता बनायेंगे, हमारे सारे सांसारिक कार्य, सारी जिम्मेदारियां भी उतनी ही सहजता और स्वाभाविक रूप में निभ पायेंगी। हम जिम्मेदारियों को अपने ऊपर बोझ समझ लेते हैं और यह भूल जाते हैं कि ये जिम्मेदारियां, ये परिवार भी तो परमात्मा का ही आशीर्वाद है। जब हम परमात्मा को इससे निकाल देते हैं तो ऐसा मानसिक तनाव आ जाता है कि खुद को ही अपने ऊपर बोझ समझ लेते हैं। विश्वासी भक्तों में सबर और सहजता होती है। उनके आगे संसार की कोई भी परिस्थिति आ जाए वो अपने मन को बेचैन नहीं होने देते, वो बेसबर नहीं होते और निरंकार के किए को जैसे का तैसा सिर आँखों पर रखते हैं। भक्त मन को निरंकार से जोड़कर सहज अवस्था में रहते हैं।
संत निरंकारी मासिक पत्रिका का मार्च 2024 का अंक सबर और सहजता विशेषांक है जिसमें सबर के लाभ और सहजता की आवश्यकता की सुंदर विवेचना की गई है। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के पावन वचनामृत - घर - समाज में रहकर कर्तव्यों का पालन करते हुए भक्ति करनी है के साथ ही इसमें सहजता जीवन का सौंदर्य है, सहनशीलता के अनन्त लाभ है, फूलों वाली गाडी, तुलसी भरोसे राम के, अज्ञान की समाप्ति से आती है सहजता, जो भी होता है ठीक होता है, मन को निरंकार से जोड़कर सहज अवस्था में रहे -(सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज) सहजता के साथ सहनशीलता भी, सन्त कौन?, कौन अपना है जिन्दगानी में सहनशील इन्सान का सहनशीलता जगत में, सबर और विश्वास दोनों जरूरी, जरा ठहरो, सोचो, फिर आगे बढ़ो, सबर और समर्पण का भाव, परमात्मा की योजनाएं, सुगंध शुकराने की, कुछ तथ्य कुछ अनुभव जैसे बहुत ही सुंदर लेख पठनीय हैं। संपादकीय में सबर है तो सहजता है पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला गया है। महाराष्ट्र के 57 वें प्रादेशिक संत समागम की झलकियां भी हैं।
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