यह शारीरिक अस्तित्व कल तुम्हारे हाथ से जाने वाला है चाहे दवाईयों का अच्छे पदार्थों का इंसान सेवन कर ले, फिर अभिमान किस चीज का हो रहा है ? अपने जीते जी इस परमपिता परमात्मा की जानकारी हासिल कर लें, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में महात्मा सुनील मेघानी जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) इंसान की पहचान के बारे में बाबा हरदेव सिंह जी हरदेवाणी में जिक्र कर रहे हैं कि इंसान अगर गहराई से विचार करें कि समुद्र में उठती हुई जो लहरें होती हैं उन लहरों का कोई अपना अस्तित्व नहीं होता और समुद्र और उठती हुए लहरें असल में एक ही हुआ करती है, लहरें अपना स्वरूप उस समुद्र में समाने लगती हैं तो वह समुद्र ही होती हैं। हरदेव वाणी में जिक्र है कि जीव इस परमपिता परमात्मा का अंश है, इसी का स्वरूप है लेकिन इसे याद नहीं है ये भूल बैठा है जो उसकी असल पहचान है। अगर विचार करें तो इस शरीर के तल की उसकी पहचान हो सकती है लेकिन इस आत्मिक तल का क्या ? इंसान इस शरीर के बारे में तो काफी विचार करता है उसके बारे में एनालिस करता है और प्रयोग भी संसार में इस शरीर के ऊपर ही हो रहे हैं। साइंस भी आज शरीर तक ही अपने प्रयोग कर रही है कि किस प्रकार से इस शरीर को स्वस्थ रखा जाए किस प्रकार इस शरीर का सही रूप में इस्तेमाल हो सके। हरदेव वाणी के शब्द पर उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में महात्मा सुनील मेघानी जी ने उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
उन्होंने विचार रखें कि आग का काम तो जलाना है उसे निराकार दाता परमपिता परमात्मा ने यह शक्ति दी है कि वह किसी भी चीज को जला सके लेकिन बुझाने का काम पानी के ऊपर रखा गया है, पानी अपने इस कार्य से वंचित नहीं हो सकता है। अगर आग लगी है तो उसे पानी के द्वारा ही बुझाने का विकल्प है और कोई विकल्प नहीं बनाया। शब्दों रूपी आग इंसान के चारों तरफ विचरण कर रही है शब्दों पर आधारित जीवन आज इंसान जी रहा है। इसका आधार तो यह परमात्मा है उसको चुनना था लेकिन इंसान संसार में शब्दों के ऊपर आधारित जीवन जी रहा है। किसी ने अगर ऐसे शब्द कह दिये तो मन विचलित हो जाता है कि इसने मुझे ऐसा कह दिया, अगर किसी ने तारीफ बने शब्द कह दिये तो वह फूला नहीं समाता लेकिन ब्रह्मज्ञानी संत संसार को यह आवाज दे रहे हैं कि अपने उस असल तत्व की पहचान करके इस निराकार दातार जिसके लिए तुम्हें यह तन और जीवन प्राप्त हुआ है उसे प्राप्त करो।
उन्होंने कहा इस संसार में अपना एक अस्तित्व जो तुम स्थाई रूप में संसार में मान कर चल रहे हो यह अस्तित्व तुम्हारा नहीं है, यह शारीरिक अस्तित्व कल तुम्हारे हाथ से जाने वाला है चाहे दवाईयों का अच्छे पदार्थों का इंसान सेवन कर ले। तो क्या शरीर को बचाया जा सकता है.. नहीं ? शरीर तो नश्वर है वह तो बचाया नहीं जा सकता लेकिन फिर भी इंसान इस शरीर को बचाने का प्रयास काफी हद तक करता है। इंसान को जब इसके विषय में कोई संबोधन प्राप्त होता है तो इस कान से सुन कर उस कान से निकाल देता है। उसका ध्यान इस ओर नही जाता कि आत्मा को मुझे बचाना है क्योंकि इस आत्मा में ही विलीन होना है।
उन्होंने कहा कि इंसान गहराई से विचार करे अगर वह जिन्दा है सांसे उसकी चल रही है तो यह पांच तत्वों का पुतला है जो खाक में मिल जाना है। सदग्रंथ भी इसका हवाला देते हैं और पीर पेगंबरों के मुखारविन्द से भी इंसान तक ये आवाज पहुँची है पांच तत्वों से तुम्हारा शरीर निर्मित है। क्या इन पांच तत्वों को अपने जिन्दा रहते वह इन तत्वों में मिला सकता है ? लेकिन जैसे ही इस आत्मा का इस शरीर से निकलना हुआ यह तत्व छूट जाते हैं फिर अभिमान किस चीज का हो रहा है ? इंसान को गहराई से विचार करना चाहिए, हमें सचेत करने का अवसर प्राप्त हुआ है।
ब्रह्मज्ञानी संत ही इस संसार में आवाज दे रहें हैं और एक ही बात समझा रहे हैं कि अपने जीते जी इस परमपिता परमात्मा की जानकारी हासिल कर लें और जानकारी की विधि भी बहुत सरल हैं। कोई अगर किसी के घर का पता पूछे या कि आप कहा रहते हो तो पता बताने की जगह इंसान को क्या कहा जायेगा कि आप हिमालय की यात्रा करके आओ, इतने व्रत करो, इतने नियम करो, ऐसे अपने जीवन को तय करो फिर मैं अपने घर का तुम्हें पता बताऊंगा .. नही उसे तुरंत से पता बता दिया जाता है। फिर इंसान आज अज्ञानवश अपने आपको अनेक भ्रमों से जोड़कर चल रहा है। परमात्मा का पता तो बहुत सरल है मैं तो तेरे पास हूं मुझको कहां ढूंढे बंदे मैं तो तेरे पास हूं। आत्मा इस परमपिता परमात्मा का अंश है, हिंदु, मुस्लिम, सिख, ईसाई ये तेरी आंत्रिक पहचान नहीं है, ये तेरी शारीरिक पहचान है। ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य हरीजन, तेरी कोई जात नहीं है, तू आत्मा है, शुद्ध स्वरूप है। अपने जीवन में हम जब इस ब्रह्मज्ञान को अपनाएंगे तभी बात बनेगी। इससे पहले अनेक वक्ताओं ने गीत, कविता, शब्द के माध्यम से अपने भाव प्रकट किए इस अवसर पर मुखी महात्मा राजकुमार हेमनानी सहित बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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