भगवान श्री कृष्ण कहते हैं - इस सृष्टि का नियम है कि हर किसी का जीवन उसके कर्म फल के आधार पर संचालित होता है, ना तो मैं उसके जीवन को चलाता हूँ और ना मैं किसी के जीवन में हस्तक्षेप करता हूँ, बस मैं साक्षी के रूप में उसके कर्म को देखता रखता हूँ .. संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में महात्मा सुरेंद्र मेहता जी ने विचार व्यक्त किए, अब नई बस्ती स्थित भवन में भी नियमित सुबह 8. 30 से 9. 30 बजे तक और रविवार शाम को 5 से 6.30 बजे तक भी संगत होगी
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) अगर गुरसिख मिट्टी के घर में भी रहता है झोपड़ी में रहता है सारा दिन मजदूरी करने के बाद भी उसे ढंग के वस्त्र भी नहीं मिलते हैं लेकिन उसके हिस्से में जब प्रभु परमात्मा आ जाता है, जब गुरु को अपना बना लेता है तो सारे सुख उसके हिस्से में होते हैं जिससे उसकी आत्मा का कल्याण हो सकता है। पूर्ण गुरसिख जहां जाता है उसे समाज मिले या ना मिले उसे इज्जत मिले या ना मिले उसे कोई परवाह नहीं होती है क्योंकि वो इस मालिक से जुड़ जाता है इस परम सत्ता से जुड़ जाता है और भौतिक सुखों की परवाह ना करते हुए इसके साथ हमेशा नाता जोड़े रहता है। कबीर दास लिखते भी है सारा जग निर्धना धनवन्ता नहीं कोई धनवन्ता सो जानिये जाके राम रतन धन होई, सबसे धनी वही है जिसके हिस्से में नाम धन मिला है। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में अवतार वाणी के शब्द पर महात्मा सुरेंद्र मेहता जी ने उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
साध संगत से उन्होंने कहा कि यह जो मानव जीवन मिला है हमें भक्ति करके इस भवसागर से पार होने के लिए मिला है ताकि आवागमन के चक्कर से हमें मुक्ति मिले। प्रभुज्ञान लेकर गुरु की शरण में पांच प्रणों के साथ समर्पित होते हैं और जब उनके वचन पर चलते हैं तब हमारे रास्ते सुलभ होते हैं। एक को जानो, एक को मानो एक हो जाओ। एक को मानने का अर्थ है, निरंकार को मानना सतगुरु के कहे को मानना। महापुरुषों ने समझाया है कि निरंकार के किये हुए को मानना और सतगुरु के कहे हुए को मानना है तब हम इसके साथ इकमिक हो पाएंगे।
श्री कृष्ण और उद्धव के बीच हुए प्रश्न उत्तर को दृष्टांत रूप में सुनाते हुए उन्होंने कहा कि एक समय की वात है भगवान श्री कृष्ण उद्धव से कहते हैं कि उद्धव आज तक तुमने कुछ नहीं मांगा आज तुम्हें कुछ देना चाहते हैं कुछ मांगो, तुम्हें कुछ दे करके हम संतुष्ट करना चाहते हैं और तुम्हारा भला करके हमें भी संतुष्टी होगी। श्री कृष्ण के वचन को सुन करके उद्धव के मन में अपने लिए कुछ नहीं मांगने के बजाए उनके मन में श्री कृष्ण के प्रति एक प्रश्न चल रहा था कि श्री कृष्ण की जो शिक्षा है, इनके जो उपदेश है और इनका जो व्यक्तिगत जीवन है उससे सम्बंधी उद्धव के मन में एक शंका बनी हुई थी। उद्धव भगवान श्री कृष्ण से बोलते है कि प्रभु महाभारत के युद्ध में हमने देखा कि जो बाते आज तक हमें समझ नहीं आती है कि आपकी शिक्षा आपके व्यक्तिगत जीवन ये दोनों हमें देखने को अलग मिलते हैं, इन शंकाओं का कृपा करके समाधान करें। तब भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे उद्धव कुरु क्षेत्र के युद्ध क्षेत्र में हमने जो अर्जुन को कहा वह भागवत गीता बन गया, आज जो तुम भी पूछोगे और मैं जो प्रश्न का उत्तर दूंगा आज ये भी उद्धव गीता बन जाएगी। उद्धव पहला प्रश्न श्री कृष्ण से करते हैं कि प्रभु ये बताईए कि सच्चा मित्र कौन होता है ? श्री कृष्ण बोलते हैं कि सच्चा मित्र वही होता है जो मित्र के कष्ट में बिना बुलाए और जा करके उसकी मदद करें। उद्धव पूछते हैं कि प्रभु पांड़व जब पासा खेल रहे थे आप उनके मित्र थे, आप उनके साथ में थे जब धर्मराज ने पासा खेलना शुरू किया तो आपने दोस्त के नाते पासा खेलने से रोका क्यों नहीं ? ठीक है आपने नहीं रोका लेकिन जो पासे का खेल हो रहा था उस पासे को धर्मराज के पाले में क्यों नहीं मोड़ा ? यहां तक भी ठीक है आपने पासे को धर्मराज के पाले में भी नहीं मोड़ा जबकि आप भूत वर्तमान भविष्य तीनों काल के ज्ञाता हैं, जब कि को जो पासा हो रहा था अपने भाई को भी दाव पर लगा दिया और द्रोपदी को भी दाव पर लगा दिया और उसके केश पकड़ करके जब एक हॉल में घसीट करके लाता है। भगवान श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए कहते हैं कि उद्धव, यह सृष्टि का नियम है कि जिसके पास विवेक होता है जीत उसी की होती है। आगे समझाते हैं कि दुर्योधन के पास पासा खेलने के लिए धन था लेकिन वह पासा खेलना जानता नहीं था लेकिन उसने विवेक लगाया और पासे में अपने मामा शकुनि को अपनी तरफ से रखा। पांडव भी वहाँ पर प्रस्ताव रख सकते थे कि मेरे पक्ष से भी श्री कृष्ण खेलेंगे, बताओ यदि उधर से शकुनि खेलता और इधर से मैं खेलता तो जीत किसी होती ? इसमें मेरा क्या दोष है ? जहाँ पासे हो रहे थे धर्मराज ने प्रार्थना की थी कि वहाँ पर श्री कृष्ण नही आए और उन्हें यह बात पता भी नहीं चले तो मैं उस सभा कक्ष में जाता कैसे ? जब धर्मराज ने अपने भाई को दाव पर लगा दिया द्रोपदी को दाव पर लगा दिया उसके अंदर भीम, नकूल, सहदेव, अर्जुन किसी ने मुझे याद नहीं किया जबकि द्वार पर मैं इंतजार करता रहा। अंत में द्रोपदी ने जब मुझे पुकारा तब मैंने उसकी रक्षा की। तब फिर एक प्रश्न और उद्धव पूछते हैं कि आप तीनों लोक के मालिक हैं, आप पूरी सृष्टि को चलाने वाले हैं आपके मर्जी के बिना एक पत्ता नहीं हिलता क्या आपको बुलाया जाएगा तभी आप आएंगे ? कहीं अत्याचार हो रहा हो कोई ऐसा दुष्कर्म कर रहा हो और आपको भक्त बुलाये तभी आप वहाँ आएंगे ? बिना बुलाये आप नहीं आकर के अपने भक्त को बचा सकते ? भगवान श्री कृष्ण जवाब देते हैं कि उद्धव इस सृष्टि का नियम है कि हर किसी का जीवन उसके कर्म फल के आधार पर संचालित होता है, ना तो मैं इसके जीवन को चलाता हूँ और ना मैं किसी के जीवन में हस्तक्षेप करता हूँ, बस मैं साक्षी के रूप में उसके कर्म को देखता रखता हूँ और फल देता हूँ।
उन्होंने कहा इसी प्रकार गुरसिख कभी गलत काम नही करता क्योंकि उसका साक्षी यह परमात्मा होता है। परमात्मा हमारे कर्मो को देख रहा है, हम उससे छिप करके कुछ भी नहीं कर सकते हैं, पांडवो के भी मन में था कि हम जो पासा खेल रहे हैं, ये श्री कृष्ण से छुप करके खेल रहे हैं, जबकि उन्हें मालूम नहीं कि साक्षी के रूप में हर जगह ये परमात्मा हाजिर राजिर है। सत्संग के पूर्व सेवादल के शिक्षक शंकर भाषानी जी ने साध संगत को बताया कि माधवनगर भवन में अब सुबह की नियमित संगत सुबह 8 बजे से 9 बजे तक होगी और नई बस्ती स्थित भवन में भी सुबह 8.30 से 9.30 बजे तक नियमित संगत होगी और रविवार शाम को 5 से 6.30 बजे तक भी संगत होगी। इस अवसर पर मुखी महात्मा राजकुमार हेमनानी जी सहित बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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