भोपाल ( प्रबल सृष्टि ) साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त लेखक और रंगमंच निर्देशक डॉ प्रेम प्रकाश का 10 जनवरी 2024 को अहमदाबाद में अवसान हो गया। डॉ प्रेम प्रकाश सिंधी साहित्य और रंगमंच के क्षेत्र की प्रख्यात विभूति थे। उनके निर्देशन में हुए नाटकों की चर्चा करें तो राष्ट्रीय सिंधी नाट्य समारोह में भोपाल में गत एक अक्टूबर 2023 को रविंद्र भवन के हंस ध्वनि सभागार के मंच पर उनके निर्देशित एक गंभीर नाटक ने दर्शकों का ध्यान खींचा था।
डा प्रेम प्रकाश जी के निर्देशन में मुसाफिरखानो का मंचन देखकर सीटों पर बैठे दर्शक स्तब्ध हो गए थे, क्योंकि आज के युग में युवा पीढ़ी के व्यवहार और चाल चलन को सामने लाकर उन्हें कटघरे में खड़ा करने का कार्य करता है नाटक मुसाफिरखानो। डॉ.प्रेम प्रकाश जी भोपाल में पहले भी भारत भवन के प्रतिष्ठित मंच पर अपने चर्चित नाटक *बाहि*(अग्नि) का मंचन कर चुके हैं। यह उनका एक प्रयोग धर्मी नाटक था। जीव जंतुओं को प्रतीक स्वरूप में लाकर कहानी का ताना-बाना बुनना कोई डा प्रेम प्रकाश जी से सीखे। यही नहीं मध्य प्रदेश के ही साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त लेखक स्व. कृष्ण खटवाणी जी का लिखा *आशियानो* नाटक भी डा. प्रेम प्रकाश जी देश के विभिन्न नगरों में मंचित कर चुके हैं। मुसाफिरखानो का एक मंचन मैंने जयपुर और एक शो अहमदाबाद में भी देखा है।लेकिन नाटक की भोपाल में हुई प्रस्तुति बेजोड़ रही।
डा प्रेम प्रकाश अहमदाबाद द्वारा निर्देशित नाटक "मुसाफिरखानो" का मंचन अभिनय के साथ ही मंच सज्जा, रूप सजा और प्रकाश संयोजन की दृष्टि से भी अद्भुत रहा। मुसाफिरखानो का लेखन लेखक स्व सुंदर अगनानी का किया हुआ है।
गंभीर कथानक है मुसाफिरखानो का
इस नाटक में एक गंभीर कथानक है जिसमें बहुत ज्यादा घूमने फिरने का शौकीन एक व्यक्ति पत्नी के साथ उत्तर भारत के भ्रमण पर गया हुआ है। इस बीच माताजी का अवसान हो जाता है और पुत्र उनकी अंत्येष्टि में नहीं पहुंच पाता। यह युवा दंपति की कोई विवशता नहीं थी बल्कि उनके द्वारा उन्मुक्त जीवन शैली में रहकर परिवार के बुजुर्गों की उपेक्षा पर तीखा प्रहार करने वाला नाटक है। पिता द्वारा अस्थि विसर्जन के उद्देश्य से हरिद्वार की यात्रा की जाती है और वहां रेलवे के विश्रामगृह में उनकी अपने पुत्र और पुत्रवधु से भेंट हो जाती है। तब पुत्र के इस आग्रह कि मुझे माताजी की अस्थियां गंगा जी में विसर्जित करने दी जाएं ,पिता द्वारा साफ इनकार कर दिया जाता है। पुत्र के सामने पश्चाताप के अलावा कोई मार्ग नहीं बचता। यह नाटक आज की पीढ़ी द्वारा पारिवारिक दायित्व के स्थान पर व्यक्तिगत जीवन को जरूरी मानने और परिवार के कर्तव्य को जरूरी ना मानने की मनोवृत्ति पर आधारित है। बहुत भावुक दृश्यों के साथ नाटक तैयार किया गया है। दोनों नाटकों में सभी कलाकारों ने सशक्त अभिनय किया। रूप सज्जा मंच सजा और प्रकाश संयोजन बेहतरीन था। वरिष्ठ कलाकार ठाकुर भंभानी वासदेव माखीजा और ऋतु गिदवानी ने नाटक मुसाफिर खानो में सशक्त अभिनय किया।
आर्टिस्ट ठाकुर भंभानी ने तो विख्यात एक्टर अनुपम खेर की याद दिलवा दी। पिता पुत्र के संवाद मन को झकझोर देते हैं।परिवार द्वारा दी परवरिश,संस्कार,कर्तव्य निर्वहन जैसे विषयों पर नाटक में ये संवाद पिता पुत्र के द्वंद को प्रस्तुत करते हैं। पुत्र अस्थि विसर्जन को अपना हक मानता है,पिता जी उसे माफ करने को तैयार नहीं होते,कहते हैं, *"मां तुम्हारा इंतजार करती रही,उनकी बीमारी जानकर भी मसूरी घूमने क्यों गए?"*
यह नाटक भारतीय रंगमंच में नाटकों की भीड़ में सिंधी रंगमंच और सिंधी ड्रामा वर्कशॉप,अहमदाबाद का एक विलक्षण और अनूठा उदाहरण है। इसके लिए नाटक दर्शक डॉ प्रेम प्रकाश जी के सदैव आभारी रहेंगे।
समीक्षा: अशोक मनवाणी,भोपाल
9425680099
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