सतगुरु कहीं भी चला जाए वहां समागम हो जाता है, निराकार रूप में हर पल ये समक्ष है, समागम का प्रयोजन ही यही है कि जागते रहो इस निरंकार इस सत्य को हमेशा साथ रखो, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में महात्मा संतोष मंगलानी जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) वर्तमान में सतगुरु ऐसे आयोजन प्रयोजन कर रहे हैं जिसमें हमारा ही लाभ कल्याण है, स्थान कोई भी हो सकता है यह कहीं भी चला जाए वहां समागम हो जाता है और जैसा कि संतो महापुरुषों ने आज इस बात का बखान किया कि कुछ वर्षों पूर्व भी इसी प्रकार समागम आयोजित हुआ करते थे और वो कुछ दिनों के पश्चात आस्था चैनल या संस्कार चैनल पर टेलिकास्ट के लिए भक्त उत्साह पूर्वक इंतजार करते थे कि इन समागमों से हमें भी सीखने को मिलेगा। आज हम देखें कि टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस हो गई है कि आज सतगुरु जहां जहां भी जा रहे हैं हमें अपने साथ लेके जा रहे हैं। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में आयोजित रविवार के सत्संग में साध संगत के समक्ष महात्मा संतोष मंगलानी जी ने विचार व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि निरंकार परमात्मा को जाना जा सकता है इस मनुष्य जन्म का मुख्य उद्देश्य ही इसको जान कर इसको पा कर इसकी भक्ति करना है और भक्ति करने का हरगिज यह अर्थ नहीं है कि जंगल चले जाओ परिवार को ना देखो। जिस प्रकार से भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध के मैदान से अर्जुन को भागने से रोका कि तुझे भागना नहीं है। भगवान श्री कृष्ण ने जाने नहीं दिया ज्ञान दिया कि पहले मेरे यह विराट स्वरूप को देख और जान और समझ और जब उसको देखा, समझा तो नतमस्तक हो गया कि अब आप जैसा आदेश करेंगे वैसा ही होगा। इसी प्रकार से हम जो जीवन जी रहें हैं दुनिया उसको संघर्ष का नाम देती है, उसको युद्ध का नाम देती है संकट का नाम देती है लेकिन संत महापुरुषों भक्त जनों के लिए ये संसार, ये दुनिया एक कर्म क्षेत्र है कि धर्म को सही रूप में जानकर और कर्म क्षेत्र में उस किरदार को बखूबी निभाना जो आप सभी संत महापुरुष निभा रहे हैं गुरु का प्रसाद जानकर। गुरु का प्रसाद समझ कर नही क्योंकि फिर अपनी अपनी समझ पे बात आ जाती कि कौन क्या समझ रहा है, गुरु का प्रसाद जानकर हम जान रहे हैं कि जो भी किरदार दातार ने मुझे दिया है वो पूरी प्लानिंग के साथ दिया है। तन मन धन के इन सामर्थ्यों का उपयोग करके उस दुनियावी किरदार को तो निभाना ही है लेकिन साथ ही साथ यह जो सारी दातें देने वाला यह दाता है इसको नहीं भूलना है। विचार करें कि क्या वास्तविकता में इस निरंकार को जान लिया है, समझ लिया है। यह कण कण में है घट घट में है इस निरंकार प्रभु को क्या मैं स्वीकार करता हूँ कि हाँ यही परमात्मा है, यही भगवान है ईश्वर है अल्ला है गॉड है, यदि स्वीकार करता हूँ तो फिर आगे की बात की जाए और इसको स्वीकार ही नहीं किया अभी भी गुरू की तस्वीर को ही जान रहा हूँ निरंकार रूप में इसको असल रूप में नहीं जान रहा हूँ तो फिर बोलना या ना बोलना बात एक समान हो जाएगी। परंतु जो गुरू की कृपा से इस निराकार को जान रहा है कि सतगुरु साकार रूप में इसी निराकार का रूप है जो आज नागपुर में विराजमान है, कल कहीं और भी जा सकते हैं वहाँ पर समागम रचा सकते हैं परतु निराकार रूप में हर पल ये मेरे समक्ष है, ये ज्ञान समझ भी उसी को आता है।
उन्होंने साधसंगत से कहा एक शायर ने कहा कि कोई नासमझ आ जाए तो शायद समझ जाए वरना समझदारों को इसका ज्ञान समझ में आता नहीं। नासमझ बन के आना पड़ेगा कि मैं और कुछ नहीं जान रहा हूँ जो आप बोलोगे वही स्वीकार है। जब गुरू कहता है कि ये है मेरा असल रूप तो जो नासमझ है जो खाली होकर आया है वो स्वीकार कर लेता है कि आप यही हो। ये सर्वविद्यमान सर्वशक्तिमान और इसी को जानकर जो अंत में गीत भी कहा गया कि इसी के हुकुम से ये सूरज, चांद सितारे ये अपना कार्य कर रहे हैं, इसी के हुकुम से ये सारी दुनिया चल रही है इसी के हुकुम से यदि मुझे एक दिल भी मिला है तो पहले इसकी हाँ हुई है।
उन्होंने कहा कि एक भक्त जो अभी इस नाम के रंग में उस रूप में नहीं रंग पाया है उसका जीवन भी वैसा हो जाता है फिर जब भी वैसी परिस्थिति आएगी कि जहां दुनिया की थोड़ी बहुत भी हलचल जीवन में आएगी तो फिर वही संशय वो शिकवा शिकायतें सब आना लाजमी हो जाता है जबकि सतगुरु का दास धन्यवाद करता है। गुरू की कृपा से इसको तो मैं जान रहा हूँ दुनिया ने तो भटकाने का प्रयास करना ही है और ऐसो को ही भटकाया जाता है जो सही राह पर चल रहे हैं जो पहले ही भटके हुए हैं उनको क्या भटकाना है, सीधा सरल नेक रास्ता चलने वाले को ही भटकाने का प्रयास होता है दुनिया का।
सम्पूर्ण अवतारवाणी के शब्द में यही कह रहे हैं कि गुरू जिसको अपने पक्ष में कर लेते हैं वो कुछ भी फिर गुरू उससे करवा सकता है। गुरू ही भक्ति करवा रहा है गुरू ही उसको परवान कर रहा है और जिसके लिए सतगुरू कह रहें है कि इसकी भक्ति निराली है स्वीकार है तो यह निराकार ब्रह्म खुद परवान कर लेता है। जो इस निराकार ब्रह्म का जानकार है वो फिर दुनिया से डरता नहीं है हमारे सामने दो ही विकल्प है कि गुरू की बात ना मानते हुए दुनिया से डरते रहे उनकी बातों में आते रहे और दूसरा विकल्प है कि गुरू की बात को अक्षरशः माने तो फिर दुनिया आपको डरा नहीं सकती। हर पल हमने इस बात को जांचना परखना है कि क्या मैं सतगुरु पर विश्वास कर पाया हूँ। कोई अमीर है तो इसकी कृपा से कोई गरीब है तो इसकी कृपा से कोई अच्छे से चल पा रहा है बोल पा रहा है तो इसकी कृपा से। समागम का प्रयोजन ही यही है कि जागते रहो इस निरंकार इस सत्य को हमेशा साथ रखो। इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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