बाबाजी ने रास्ता बताया है और अवतारवाणी में कहा कि "हरि के जन की संगत करके हरि की सोच विचार करो, शब्द गुरूदा मन वसे शब्द गुरू दा आधार करो" संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में सतना से पधारे महात्मा संजय वाधवानी जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) आप संत महात्माओं के भोले भाले मुस्कुराते हुए चेहरे देख हृदय में बहुत प्रसन्न्ता हो रही है कि गुरू ने ऐसी सौगात दी है कि सब मुस्करा रहे हैं और हृदय में अरदास भी निकल रही कि सब मुस्कुराते ही रहे। कोई भी व्यक्ति किसी भी मंदिर में, मस्जिद में, गुरुद्वारे में, सत्संग में कहीं भी जाता है तो मन में भाव यह रहता है कि मैं सुखी हो जाऊं इसलिए वहाँ जाता है या मन में भाव होता है कि मेरी परेशानियां दूर हो जाए, कहीं मन में यह भाव होता है कि मेरे जो अवगुण हैं, मैं जाऊंगा तो मेरे दूर होंगे, मेरा प्रभु से नाता जुड़ जाएगा। अवतारवाणी के शब्द में गीत भी आता है कि बाबा जी देने वाले हैं हम लेने वाले हैं किसी को चाहिए तो बिलकुल न शर्माना, जिसे चाहिए वो हाथ उठाना। आज एक इशारा सतगुरु इस पद में दे रहे हैं कि जो हमें चाहिए वो सब मिल जाएगा। अवतार वाणी में पहली लाइन आ रही है कि शब्द गुरूदा जे मन वस्दे चानन दी भरपूर करें, अगर आपके मन में यह निरंकार बस गया तो आपके जीवन में चानन हो जाएगी, चानन मतलब रोशनी। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग कार्यक्रम में सतना से पधारे महात्मा संजय वाधवानी जी ने उपस्थित साध संगत के समक्ष अवतारवाणी के शब्द पर विचार करते हुए कहे।
आगे उन्होंने कहा हम यही तो पल पल प्रार्थना करते हैं कि हमारे घर में कहीं कलह कलेश न हो, हर कोई चाहता है कि हमारे घर में शांति का वातावरण बना रहे। पुत्र, पिता की आज्ञा में रहे, सास बहु में मिलवर्तन रहे घर में ऐसा सुन्दर नजारा रहे कि मन में वैर भावना नहीं रहे। यहाँ सतगुरु बाबा जी शब्द में कह रहे हैं कि आपके घर में सब्र शांति रहेंगी और जो सारी दुविधाएं, जितनी भी परेशानियां हैं वो खत्म हो जाएंगी। "सोखा हो जाए जीवन पेड़ा, हर मुश्किल आसान बने " हर मुश्किल आसान बन जाएगी, अगर हम गुरू से जुड़े हैं तो यह जीवन आनंद मय हो जाएगा। जो हमारे मन में कामनाएं हैं हम जितना लेने के लिए बेकरार हैं कहीं उससे ज़्यादा सतगुरू हमें देने के लिए बेकरार हैं। पिता ही एक ऐसा होता है जो अपने पुत्र की तरक्की देख खुश होता है, यह हमारा परमपिता परमात्मा हमको खुश देखके और ज़्यादा खुश होता है लेकिन शर्त पहली रख दी कि मन में निरंकार बस जाए "शब्द गुरूदा जे मन बसे "
हर पहर उठते बैठते हर एक में ये परमात्मा दिखे। इसके लिए भी बाबा जी ने रास्ता बताया है और अवतारवाणी में कहा कि "हरि के जन की संगत करके हरि की सोच विचार करो, शब्द गुरूदा मन वसे शब्द गुरू दा आधार करो" हरि के जन की संगत करो सत्संग करो।
साध संगत से उन्होंने कहा यह निरंकार मन में बसेगा तो हम हर एक में यह परमात्मा देखेंगे और हमारा जीवन सुख मय आनंद मय हो जाएगा सभी संतों ने भी यही बात कही है। आप संगत से जुड़ो, संतों से जुड़ो अगर मन में निरंकार रह गया तो सारे सुख सहज में ही हमारे जीवन में आ जाते हैं।
रामायण का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भगवान राम ने भी यही बात माता शबरी को कही और नवदा भक्ति बताई कि प्रथम भक्ति संतन कर संगा दूसर रति मम कथा प्रसंगा। भगवान राम जी ने भी इंसान के कल्याण का रास्ता यही बताया कि संतों का संग करें, जो भगवान राम ने नौ प्रकार की भक्ति बताई है तो इसमें से कोई एक भी भक्ति हमारे जीवन में आ जाए तो हमारे जीवन में सुख आनद मय हो जाएगा। जैसे जैसे हम संतों का संग करते हैं यह निराकार प्रभु परमात्मा हृदय में बैठता है अगर कहीं मन में वैर, नफरत, निंदा के भाव है तो फिर गुरु कहीं नहीं होता है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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