57 वां महाराष्ट्र वार्षिक निरंकारी संत समागम, तीसरे दिन 28 जनवरी के सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के समस्त मानवों के लिए वचनामृत
मुरली पृथ्यानी - निरंकारी परिवार के लिए संत समागम का अवसर उत्सव जैसा ही होता है और यह समागम ऐसे होते हैं जिसमें देश दुनिया से परिवार आकर निराकार के साकार रूप सतगुरु के दर्शनों और पूरी इंसानियत को दिए गए संदेशों का लाभ प्राप्त कर अपने जीवन को लोक कल्याण के मार्ग पर और मजबूती से ले जातें हैं। नागपुर में आयोजित तीन दिवसीय 26, 27 और 28 जनवरी को महाराष्ट्र के 57 वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के तीसरे दिन 28 जनवरी को सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के वचनामृत को यहां रखने का प्रयास है, उनकी सिखलाई हर मानव मात्र के लिए है और अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
" साध संगत जी प्यार से कहना धन निरंकार जी, आज 57 निरंकारी संत समागम का यह आखिरी रोज और महाराष्ट्र में जहां पिछले तीन दिनों से सभी वह आनंद उठा रहे हैं। एक भक्तिमय हर पल अपना जी रहे हैं, एक सुकून का जिक्र जो बार-बार आ रहा है यह एहसास यह पीस यह भाव मन के यह कोई छण भंगुर भाव नहीं है, हर एक के मन में यह हमेशा के लिए सुकून बस गया है क्योंकि हर कोई यहां इस निराकार से जुड़ा हुआ है। यह निराकार हर समय जिसका साथ जिसने भी कायम किया वह एक भक्त की अवस्था एक भक्त का जीवन जी रहा है, भक्ति रोम रोम में बस गई है तो कैसे ऐसा जीवन हर किसी के हिस्से आ सकता है। हर कोई अपने जीवन में हर समय का भक्त बन सकता है तो ऐसा ही जीवन संतों ने हमेशा से संदेश दिया कि यह संभव है और मनुष्य जीवन में यह ज्ञान प्राप्त करके ब्रह्म ज्ञान लेकर इस निराकार परमात्मा से हर समय के लिए अपना मिलाप कर ले तो कैसे सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं एक पूरे संसार में अगर हम देखें तो कितना वह फर्क आ जाता है वो कितना देखने में कि रूप आकार या फिर एक ज्योग्राफिकली कोई डाइवर्सिटी है या कोई बोलने की तरह कोई भाषा कोई आकार शक्ल तो कैसे इतने अलग-अलग जहां देखने में ही है हर कोई तो स्वभाव की बात आए तो अनगिनत स्वभाव होंगे। हर एक के कैसे अलग-अलग स्वभाव वालों को भी अपनाया जा सकता है क्योंकि अक्सर इंसान ऐसे ही कंफर्टेबल हो पाता है किसी के साथ कि अगर कुछ हमारा उससे मेल खा ले कोई वह बात हो जो हम में और उस इंसान में कॉमन है कि या हमारा कोई वो प्रोफेशन सेम हो या किसी तरह के कुछ चीजें एक जैसी पसंद हो या रहन सहन का तरीका या कोई पढ़ाई उपलब्धि इत्यादि कितने भी अगर हम देखें कुछ एक कॉमन फैक्टर इंसान ढूंढता ही है कि कैसे किसी के अगर नजदीक फील करना है तो वो एक कॉमन फैक्टर ढूंढा जाए तो बात वही के संत समझाते हैं और अनेकों किसी भी धर्म ग्रंथों को हम खोलकर देख ले तो संदेश यही है कि वह कॉमन फैक्टर यह परमात्मा ही है।
यह निराकार है जो हर कण में है यह एक बराबर हर जगह है हर एक के अंदर भी है बाहर भी है, यह नष्ट नहीं होता तो कैसे यह परमात्मा का जहां गुणगान हर किसी ने अपने तरीकों से किया वह पिछले तीन दिनों में भी हमने देखा, वह कविता मात्र रही एक भजन मात्र रहा स्पीच रही और अगर वह भी देखा जाए कि कोई वह भाषाओं का भी बैरियर नहीं था उम्र का भी बैरियर नहीं था, बच्चे बुजुर्ग नौजवान हर किसी ने अपने तरीके से यह संदेश दिया कि इंसान अपने जीवन को संवार ले इसको जीते जी हर कीमत पर हर मोमेंट पर इस निराकार से ही जुड़ अपने मन को एक ठंडक हर समय को दो, यह सुकून दो आनंद दो शांति दो, तो जितना ज्यादा अगर हम और गहराई में जाते रहे।
किसी भी संत का जीवन खोल के देख ले चाहे इतिहास में हो या हमारे सामने आज की डेट में साक्षात तो हर कोई यही समझा रहा है कि यह परमात्मा को हम किसी भी एक कोई कीमत चुका के नहीं एक मुफ्त में ही परमात्मा मिल रहा है व संतों ने भी जैसे महाराष्ट्र में यहां एक बात इस तरह लिखी कि देव गया रुका नालागे रुका मोल ही कि कैसे एक यह देव गया रूका की बात की ये मुफ्त में यह परमात्मा मिला है और यह परमात्मा को हासिल करने के लिए एक तरफ तो अगर ऐसा भी कहा गया है कि कोई मोल नहीं लगा और दूसरी तरफ हम अगर देखें तो यह भी कहा जाता है कि इस परमात्मा को तो हम अगर अपना शीश कटवा कर भी पा ले तो भी यह सौदा एक सस्ता सौदा रहेगा तो कीमती निराकार है, यह परमात्मा है। जहां एक तरफ यह सौदा मुफ्त कहा जा रहा है दूसरी तरफ यह इतना कीमती तो वह बात सुनने में दो अलग-अलग बातें हैं पर अगर गहराई में उतरे तो फिर यह सौदा सर कटवा के सस्ता भी इसलिए कह रहे हैं जीवन को क्योंकि इसमें जो सर कटने की बात है वह अहंकार रूपी सर है वो इगो हेड, हमारा जो हर समय अपने आप को प्रथम मान रहा है और कैसे फिर यह संसार में यह हर कोई जान लेता है कि जहां एक अपनी मैं को सिर्फ खोकर इतना बड़ा परमात्मा यह असीमित परमात्मा मिल सकता है और सिर्फ हमें वह प्राप्त करने से अहंकार ही रोकता है कि हमें जब सब कुछ लगता है कि हम पहले ही इतने जानकार हमें स्पिरिचुअलिटी का सब पता है, हमें एक अपने जीवन को कैसे जीना है यह आता है, हमसे ज्यादा भक्ति किसी ने नहीं करी या हमसे ज्यादा ब्रह्म ज्ञान की अवस्था को किसी ने नहीं प्राप्त किया, हम बहुत विज्ञानी रहे हैं या कुछ भी तरह का एक नॉलेज हमारा बेस अच्छा है तो ऐसे अगर सोच विचार करके अपने आप को ही श्रेष्ठ मान लिया प्रथम मान लिया तो फिर तो यह स्पिरिचुअलिटी हमारे अंदर घर नहीं करेगी।
एक परमात्मा जो पहले ही अंदर बसा है यह इनसाइड आउट की जो जर्नी है कि अंदर हमारे मन में सुकून तभी होगा जब मन में परमात्मा है तो कैसे एक इंसानों को अगर हर समय का सुकून चाहिए तो यह परमात्मा का मिलन अपने जीवन में कायम होना है, एकत्व लाना है और कैसे फिर यही सौदा है, जिसको एक कीमती भी बोला गया है, जिसको फ्री भी बोला गया है कि बस अपने अहंकार अपने एक सेल्फ इंपॉर्टेंस को छोड़ देंगे तो फिर एक समर्पित भाव आएगा। इस परमात्मा के एहसास में दिल पिघल के इस को सिर्फ प्यार करेगा ऐसा ही सौदा अगर यह हर एक के जीवन में आता है तो हर किसी का जीवन महक उठता है। यह संसार की भी अवस्था अगर हम देखते हैं कि एक बार-बार फोकस आता है कि जीना किस तरह है वह तरीका जीने का क्या है, किस तरह एक अंदर से अपना स्वभाव बनाना है, एक जीवन में मिठास लानी है, प्रीत नम्रता एक ऐसे अन्य और अच्छे गुणों को अपनाकर हर समय वो गुणों में उनका प्रदर्शन हो स्वभाव में एक्शंस में कर्म में तो ऐसा अगर इंसान बनता है तो वह एक पूर्ण इंसान है एक वह सच्चा मानव है और कैसे एक कहानी जो दासी ने पढ़ी कि किस तरह एक व्यक्ति कहीं जा रहा किसी को नजर आया और वह देख रहा है इंसान की दिन का समय है लाइट पूरी है फिर भी उस इंसान ने एक फ्लैशलाइट टॉर्च अपने हाथ में जला कर रखी है और अब वह इतनी सोच में कि यह इंसान तो कभी पहले देखा नहीं शायद हमारे गांव में नया आया है पर फिर भी वह रोशनी के समय जब सब कुछ साफ दिख रहा है तो भी एक टॉर्च का क्यों प्रयोग कर रहा है। सूर्य की रोशनी इतनी है इसकी लाइट क्या ही दिखाएगी पर वो उससे कुछ नहीं बोलता आगे चलते चलते वो इंसान जब उस जगह रहता है तो रोज वह उसी तरह निकल पड़ता है दिन की रोशनी में अपनी टॉर्च लिए टॉर्च जगाए और अब पूरा गांव ही परेशान की ये क्या बात है दिन में टॉर्च लेकर ये क्यों घूमता रहता है तो किसी ने फिर कुछ समय और निकलने के बाद उस व्यक्ति के जब जीवन में काफी साल और निकल गए तो एक बार जाकर देखा कि अब उस व्यक्ति की तबीयत भी बहुत खराब है और वह बिल्कुल अपने अंत की ओर जीवन काल के पहुंच ही गया है तो तब जाकर उससे पूछा कि आप अब इस बिस्तर तक ही सीमत रह गए हैं कहीं अपने आप चल भी नहीं सकते फिर भी आपने यह टॉर्च अभी तक जलाई है जो हर दिन आप लेकर सूर्य की रोशनी के बावजूद भी ऑन रखते थे तो इसके पीछे कारण क्या था, तो वह इंसान आगे से कहता है कि इतने साल मैंने बिता दिए इंसान ढूंढने में पहले तो लगा कि एक सूर्य की रोशनी है तो मुझे शायद इंसान मिल जाएंगे, लगा कि ऐसा समय बीत रहा है मुझे कोई अनपढ़ मिले कोई पढ़े लिखे मिले कोई अलग किसी प्रांत के ऊपर आधारित मिले कोई अपना एक अस्तित्व किसी एक तरह से अपनी महत्वता बताते हुए लोग मिले बहुत ढूंढा पर कोई इंसान नहीं मिला, कि कैसे यह इंसान मैंने जब देखा नहीं मिल रहे तो फिर एक टॉर्च का उपयोग भी कर लिया कि शायद सूरज की रोशनी में नहीं मिल रहे, अब ढूंढता हूं जिस जिस से बात करूंगा और उसको उसके अंदर का इंसान ढूंढू तो शायद कुछ मिल जाए तो बात वही जो वह कहना चाह रहा था कि हम कैसे हर समय अगर ऐसा करके एक इंसानियत को खोते हैं तो वह बात समझाते समझाते आगे वो फिर से उस व्यक्ति से बात करते हुए कहता कि अब क्या, आपको इंसान मिल गए, इतने साल सूर्य की रोशनी में भी जो नहीं मिले थे अब क्या टॉर्च की लाइट से ढूंढने से मिल गए तो वह आगे कहता कि इंसान तो कोई नहीं मिला पर शुक्र है किसी ने मेरी टॉर्च नहीं चुराई क्योंकि काफी हर समय ऐसे भी लोग दिखे जिनकी नजर होती थी कि मेरा ध्यान भंग हो कहीं मैं इधर-उधर यह रख दू और वह चुरा कर ले जाएं।
तो इंसान की अवस्था इस कहानी के माध्यम से यह दृष्टि इस दृष्टिकोण से कि कैसे एक इंसान का स्वभाव क्या बनता जा रहा है जो इतना देवीय इंसान परमात्मा की अंश इंसान एक बहुत ही इनोसेंस रखने वाली आत्मा इस शरीर के अंदर और कैसे वह शरीर फिर दुनिया भी माया में रहकर एक इतना अपने आइडिया से करप्टेड होकर एक अपनी सोच को इतनी दूषित करके यह आत्मा भी अब इतनी कंफ्यूज की जिस शरीर में है जो एक दुनियावी माया दिख रही है, यह अस्तित्व कहीं इसी में ही खो गया अपनी असली पहचान खो गई तो कैसे अपनी असली पहचान को वापस एक असली रूप अपना देखा जाए तो बात वही कि संतों का संग करके ही एक ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करके ही यह अपना असली रूप इस आत्मा को नजर आता है। यह परमात्मा से मिलन हो पाता है और कैसे फिर जीते जी हर कोई जहां भक्ति का रंग लेते हुए अपने जीवन में फिर अपने जीवन को बहुत खूबसूरती से सब रिश्ते सब जिम्मेदारियां निभाते हुए जी लेता है तो कैसे हर किसी ने जहां वही एक कोशिश हर समय की करनी है कि इस निराकार से जितना जुड़ेंगे उतना एक असली इंसान हमारे अंदर की इंसानियत बाहर आएगी और उसी इंसानियत को जीवित रखना है जब तक मौत ना आए तो मरने से पहले यह जीने का सौदा है ब्रह्म ज्ञान, कि हर पल में जी ले चाहे मौत तो एक बार ही आनी है पर यह जीवन के पल हर समय इस तरह जिए कि वाकई ही जीवन जी रहे हैं तो हर कोई अपने जीवन को जहां एक खुशहाल जीवन अपनी एक माइंडसेट से इस निराकार के आसरे से कर सकता है वह फिर आनंद की अवस्था में हर समय रहकर शुकराने भाव में रह सकता है तो ऐसा जीवन हर कोई जीता चला जाए और पिछले कुछ दिनों से आप सभी महापुरुष जो अब समागम क्या यह कंक्लूजन रूप भी आज का दिन तो कैसे सेवाओं में कितने समर्पित रहे और वह भाव चाहे वह महापुरुष जो उपस्थित हो पाए या नहीं हो पाए तो भाव हर एक का ध्यान हर एक का इस समागम की ओर ही, इस निराकार की, ओर ही लगा रहा और ऐसा ही अवस्था की वो कोशिश सेवा की यह संदेश को एक ब्रह्म ज्ञान को घर-घर पहुंचाने की तो सभी ने जहां एक सबसे पहले एक वह प्रयत्न करना है कि खुद को इतना संवार ले कि किसी को कुछ प्रीच करने की जरूरत ही ना पड़े, हमारे कर्म ही हमारा एक प्रचार का साक्षात रूप बने कि हर कोई एक अपने आप में पूर्ण मुकम्मल इंसान बनकर जीता चला जाए, ताकि फिर यह संदेश भी कि कैसे एक इस तरह भी जिया जा सकता है वह संदेश हर एक तक पहुंचे हर एक की आत्मा इस परमात्मा से मिलकर यह रोशनी का अनुभव करें, यह सच्चाई का अनुभव करें कि हर कोई इस निराकार से जुड़कर यह सुकून ही प्राप्त करें तो आगे के कुछ दिन जैसे अभी सभी ने श्रवण भी किया कि महाराष्ट्र में एक जाकर अलग-अलग जगहों में फिर आप सब संतों के दर्शन करने का अवसर मिलेगा तो फिर उधर भी दासी अपने मन के भाव रखकर एक वही अरदास हर एक के लिए कि दातार हर एक पर कृपा करें कि हर कोई एक अपने असली मूल इस निराकार से जुड़े सेवा सिमरन सत्संग करते हुए अपना भी कल्याण करें और पूरी मानवता का भी कल्याण करें इस शरीर को स्वस्थ रख के इस जिंदगी के एकएक पल को एक बहुत ही कीमती तरीके से जीकर एक एक पल का मोल डाल के जहां जिए वहां इस आत्मा का भी कल्याण इस तरह करें कि हर पल में बस निराकार ही निराकार हो और कुछ प्राथमिकता लगे ही ना।
साध संगत जी धन निरंकार जी
Comments
Post a Comment