एक धर्म स्थल जहां प्रसाद पूजन सामग्री खरीदने वालों से दुकानदार कहता है .. प्रसाद चढ़ाकर आना फिर पैसे दे देना
आज धूनी वाले दादाजी ( खंडवा ) की बरसी के पावन अवसर पर उनके मंदिर में हाजरी लगाकर समाधि एवं धूनी को सर नवाया। मंदिर कार्यालय से संपर्क कर दादाजी के जीवन चरित पर पुस्तक की मांग करने पर वह कृति उपलब्ध न होने की जानकारी देते हुए एक अन्य पुस्तक श्री दादाजी समर्थ प्रदान की गई।
समस्त खंडवा शहर में दादाजी के प्रति गहन श्रद्धा भाव देखने को मिलता है । गुरु पूर्णिमा को शहर ही नहीं दूर दूर से श्रद्धालु दादाजी के मंदिर में जुटते हैं । पूरा शहर एक मेला स्थल जैसा बन जाता है । शहर भर में लोग अपने घर और प्रतिष्ठान में तरह तरह की खाद्य सामग्री बनाकर बड़े प्रेम भाव से आगंतुक श्रद्धालुओं के लिए उपलब्ध कराते और उनका स्वागत करते हैं साथ ही प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।
दादाजी के मंदिर के बाहर प्रसाद विक्रय की दुकान में श्रद्धालुओं द्वारा प्रसाद मांगने पर दुकानदार उन्हें केवल नारियल और धूप जो मात्र बीस रुपए का होता है उसे एक थाल में रखकर देते हैं, जिसे अखंड रूप से प्रज्वलित दादाजी की धूनी में अर्पित किया जाता है । कोई भी अतिरिक्त सामग्री लेने को न बाध्य किया जाता है न ही सलाह दी जाती है । श्रद्धालुओं द्वारा अतिरिक्त पूजन सामग्री मांग करने पर ही उपलब्ध कराई जाती है । सबसे अनूठी बात यह कि प्रसाद लेकर जब श्रद्धालु उसके पैसे देने लगते हैं तो दुकानदार कहते हैं, आप दर्शन कर प्रसाद चढ़ा आइए फिर पैसे दे देना । किसी धार्मिक स्थल के प्रसाद विक्रेताओं का ग्राहक के प्रति यह सदाचार संभवतः विश्व में और कहीं नहीं मिलेगा । इसके साथ ही दादाजी की समाधि स्थल में कोई पंडित पुजारी की उपस्थिति भी नहीं मिलती , जो श्रद्धालुओं को तरह तरह की पूजन सामग्री और दान दक्षिणा के लिए बाध्य करते हैं । यहां व्यवस्थाएं सबके प्रति समान भाव सेवादार देखते हैं । किसी धर्म स्थल पर श्रद्धालुओं के प्रति उक्त आदर्श व्यवस्था दुनिया भर के धार्मिक संस्थानों के लिए एक उदाहरण है । इस व्यवस्था के लिए धूनी वाले दादाजी मंदिर का ट्रस्ट बधाई का पात्र है । श्री दादाजी सबका मंगल करें ।
लेखक - श्री राजेन्द्र सिंह ठाकुर कटनी
Comments
Post a Comment