हमारे लिए आदेश है कि रब नु हाजिर नाजिर तकना इससे बड़ा कोई धर्म नही..किसी भी अच्छी चीज का फायदा उसके नाम भर लेने से नही होता, इंसानी जूनी का उद्देश्य है ईश्वर को प्राप्त करना - महात्मा नोतनदास जी ने संत निरंकारी सत्संग भवन में रविवार के सत्संग में किए विचार
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) माधवनगर स्थित संत निरंकारी सत्संग भवन में रविवार की संगत में अवतार वाणी के शब्द पर विचार करते हुए उपस्थित साध संगत से महात्मा नोतन दास जी ने कहा कि हमारे लिए आदेश है कि रब नु हाजिर नाजिर तकना इससे बड़ा कोई धर्म नही है, निराकार ब्रह्म का सर्वश्रेष्ठ रूप सतगुरु है ब्रह्म खुद ही एक पावन घट में बैठकर हमें समझ दे रहे होते हैं। कई जन्म भए कीट पतंगा कई जन्म भए मीन कुरंगा कई जन्म में वृक्ष पंछी होए, मिल जगदीश मिलन की ए तेरी बरिया, यह सारा सत्य शास्त्रों में हमारे लिए लिखा आया है। आत्मा को अपने मूल की पहचान करना जरूरी है। सारा संसार भूल में पढ़ा हुआ है सिर्फ परमात्मा का नाम लेने से कुछ नहीं बनेगा जब तक इसकी पहचान नही होगी जैसे किसी भी अच्छी चीज का फायदा उसके नाम भर लेने से नही होता, हमारा इंसानी जूनी का उद्देश्य है ईश्वर को प्राप्त करना।
उन्होंने साध संगत से कहा ईश्वर अंश जीव अविनाशी, हमारे हृदय में जो ईश्वर का अंश है जिसको आत्मा कहते हैं वह अविनाशी है चेतन है तो यह सोचना पड़ेगा कि मानें किसको। सारा संसार भूल में पड़ा हुआ है एक न भुल्ला दो न भुल्ला भुल्दी है कुल जहान, नामें दी पहचान नहीं है मुखूं जपते जांदे नाम। झलियाँ तेरा मालिक केड़ा किसने दिए पिंड प्राण, एना ते सोच विचार अगे जाके मुंह क्या देखी, सतगुरु कोलो कर पहचान इसलिए इस सर्व्यापी परमात्मा की प्राप्ति कर ली जाए। जिस प्रकार हम अपने परिवार से खूब प्यार करते हैं उतना ही प्यार इससे करके देखें लो यह आपकी हर बात मानता जाएगा। अगर आपने इस निरंकार को पूर्ण रूप से हृदय में बसा लिया तो इससे बड़ा धर्म नहीं है। यह सर्वशक्ति मान है, सारे पदार्थों का मालिक है। जो संतों से ज्ञान लेता है और संगत करता है उसका मन पावन हो जाता है। सिर्फ ज्ञान ही ऐसी चीज है और इंसान जब ज्ञान प्राप्त कर लेता है हर इंसान प्यारा जाता है। ज्ञान और कर्म के संगम से ही ऊंचाइयां प्राप्त होती हैं। संसार में कितनी जातियां कितने मजहब हैं, गरीबी अमीरी इन तमाम चीजों को परे रखते हुए सब के अंदर परमात्मा देखता है।
उन्होंने साध संगत से कहा सबके साथ सदव्यवहार करें, भूलकर भी किसी का अपमान न करें संत की परिभाषा यही होती है। संत की परिभाषा किसी शारीरिक बनावट या पहनावों को नही कहते हैं बल्कि जो इस सच को प्राप्त कर चुका उसे कहते हैं। उन्होंने साध संगत से कहा कि तमाम सत्य शात्रों से यही बुद्धि मिलती है कि हमको संगत करनी है सेवा करनी है। हम हमेशा सत्संग में आ रहे होते हैं लेकिन हम अपने हृदय में यह जो सत्य की रहमत से प्रवचन होते हैं इनको घरों में भी आप अपने मन में फिर से दोहराया करो ताकि आपके मन पक्का हो जाए। ज्ञान लेने के बाद सत्संग में आने से दृढ़ता प्राप्त होती है। साध संगत की सेवा करके हर प्रकार का सुख प्राप्त कर सकते हैं जैसे डाक्टर दवाई देता है और परहेज भी बताता है, किसी की भी निन्दा भूल करके न करें किसी का अपमान न करें सब के अंदर खुदा का नूर है। सबसे प्यार करना सीखें सत्कार करें।
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