संतों महापुरुषों के जो वचन आते हैं उनको अपने किरदार में उतारना है सिर्फ सुनना नहीं है ना जाने कौन सा वचन हमारा जीवन बदल दे .. सत्संग में मन वचन कर्म से एक होकर बैठना है.. संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में मंगलवार सुबह आयोजित सत्संग में बहन पूनम लालवानी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) हम सब मिल बैठकर भक्ति का आनंद ले रहे हैं सच्चे पातशाह ने बांह पकड़ के हमें इस निरंकार दातार के साथ जोड़ लिया है ऐसा रहबर हमारे जीवन में है, ये मानुष जन्म जो मिला है ये अनमोल है मानुष परमात्मा की पहचान कर लेता है तो मुबारक है अगर इस संसार से रुख्सत हो गया बिना नाम के बिना ज्ञान के तो ये जीवन बेकार चला जाता है, जिस प्रकार इंसान अपनी मुट्ठी में रेत भर लेता है वो रेत मुट्ठी से फिसलती जाती है फिर कुछ भी नहीं बचता गुरू बिना गत नहीं है शाह बिना पत नहीं है जीवन में सतगुरू आ गए तो साध संगत जीवन ही हमारा बदल गया और जीवन में बदलाव नहीं आया फिर कुछ नहीं है उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में मंगलवार की सुबह आयोजित सत्संग में बहन पूनम लालवानी ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि सतगुरू निरंकार और साध संगत ये तीनों एक ही सत्ता के तीन नाम हैं इनमें कोई फर्क नहीं है। जब हमारे मन में यकीन, विश्वास, अकीदा, पक्का है फिर हर काम सहज और सरल होते जाते हैं सारे सुखों का खजाना ये ब्रह्मज्ञान है, रहमतों में कमी नहीं है हर पल मालिक हर इंसान के ऊपर रहमत कर रहे होते हैं लेकिन कितनी रहमतें हम ले पाते हैं ये हमारे ऊपर निर्भर करता है। हम देखते हैं बारिश में बरसात जब होती है वो कोई महल या झोपड़ी नहीं देखती वो अमीर या गरीब नहीं देखती सब के ऊपर समान रूप से बारिश बरस रही होती है। सतगुरु भी छोटा बड़ा कुछ नहीं देखता, अमीर गरीब नहीं देखता । परमात्मा सिर्फ भाव का भूखा है अगर हमारे हृदय में भाव है तो परमात्मा बिल्कुल नजदीक है दूर नहीं है।
उन्होंने एक प्रसंग सुनाया कि जब सतगुरू बाबा हरदेव सिंह जी का कटनी में आगमन हुआ तो भाव था कि सच्चे पातशाह आप तो खुदा हो मालिक हो जब मैं देखती हूँ कि आप किसी गरीब के यहां भी, किसी अमीर के यहां भी चले जाते हैं तो क्या कभी मेरे घर भी आओगे ऐसे मन के भाव होते थे और आंसू बहते रहते थे तो सच्चे पातशाह स्वयं घर आए थे, कहने का भाव इतना है विश्वास पूरा हो। संगत में चलकर आना हरि का यश गाना, कर से सेव कमाना श्रद्धा भाव से शीश झुकाना ये करम साध संगत अगर गुरसिख करता चला जाता है तो सारे सुख सहज में ही मिलते हैं।
साध संगत एक एक संत का सत्कार करना एक एक संत से प्यार करना ये गुरसिख के कर्म हैं, किसी से छल कपट नहीं करना किसी को धोखा नहीं देना। साध संगत जब हमारे ऐसे कर्म होते हैं तो सतगुरू खुश होते हैं। बहुत सुन्दर जीवन मालिक ने बक्शा है, ये अनमोल स्वांसे मालिक ने बक्शी हैं ये ज्ञान हमारी झोली में मालिक ने बक्श दिया है अब हमें इसकी कद्र करनी है । सच्चा केवल ये निरंकार परमात्मा है बाकि जो कुछ हम आप देख रहे होते हैं सब झूठ है सब मिटने वाला है। साथ जाएगा तो केवल नाम धन जितना जितना आप इस नाम की कमाई करोगे उतना अपना ये धन बढ़ता चला जाएगा। इसकी युक्तियां भी बताई गई हैं राजमाता जी के पास कोई बहन आई कहती है सच्चे पातशाह मैं सब्जी की दुकान लगाती हूँ इतनी आमदनी नहीं है कि मैं सेवा करूँ तब बड़े प्यार से राजमाता जी ने कहा बेटा कोई बात नही आप दो चार सब्जियां ही सेवा में ले आओ वो बीज डाल दो कुछ समय पश्चात साध संगत राजमाता जी का उसी शहर में आना हुआ तब उस बहन ने राजमाता जी को कहा आपने इतनी रहमते कर दी कि आज मेरे पति बोलते हैं कि मेरे से ये बिजनेस जो सब्जियों का है ये अब संभाला नही जा रहा।
साध संगत जी सेवा करोगे तो फल मिलेगा। हमें सेवा करनी है संतों का सत्कार करना है संतों से क्यार करना है, वैर विरोध नफरत नहीं करनी है अगर हम संगत से जुड़े हैं इस निरंकार दातार से जुड़े हैं और मन में अभी भी वो वैर की भावना है फिर ज्ञान अलोप हो जाता है फली भूत नहीं होता है। सत्संग में मन के बर्तन को खाली करके आना है संगत में मन वचन कर्म से एक होकर बैठना है। जो भी संतों महापुरुषों के वचन आते हैं उनको अपने किरदार में उतारना है सिर्फ सुनना नहीं है ना जाने कौन सा वचन हमारा जीवन बदल दे। जैसे जैसा कर्म आप करोगे वैसा वैसा फल आपको मिलेगा, प्यार करो प्यार मिलेगा नफरत करो नफरत मिलेगी। यदि कोई बंदा सत्संग से दूर हो जाता है तो गुरु का प्यार उसके मन में कायम नही रह पाता है अगर मोती माला से टूट गया फिर बिखर जाता है।
फूलों की जिस क्वारी से हमें खुश्बू आ रही होती है तो मन करता है कि वहाँ थोड़ा और ठहर जाये और जहाँ गंध हो तो नाक में कपड़ा रखके आगे बढ़ जाते हैं। वो सुकून की अवस्था तब आती है जीवन में जब हम सेवा सत्संग सिमरन से जुड़ते हैं, मुख से यही कहो कि तू ही निरंकार मैं तेरी शरण हूँ मुझे बक्श लो। हर समय साध संगत इससे मेहर मांगो, हम सब इस निरंकार की गोद में बैठे हुए हैं। सुख चाहते हो तो सतगुरु की शरण में आ जाओ, सतगुरु ने यह सुनहरा मौका बक्शा है, एक एक स्वांस जो मालिक ने बक्शी है इसे निरंकार के एहसास में रहकर जीवन को जियो हत्थ कार वल चित्त यारवल।
गौरतलब है कि संत निरंकारी सत्संग भवन में रोजाना ही सुबह 8. 30 बजे से 9. 30 बजे तक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन होता है एवं रविवार को सुबह 10. 30 बजे से 12 . 30 तक सत्संग कार्यक्रम होता है इसके अलावा भी विभीन्न स्थानों पर रोजाना ही सत्संग कार्यक्रम होते हैं।
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