गुरसिख गुरुमुख केवल एक शब्द या नाम भर नहीं होता बल्कि एक अवस्था होती है और इस अवस्था को पाने के लिए गुरसिखों को जतन करने पड़ते हैं, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में प्रोफेसर जगदीश सेवानी ने किए विचार
उन्होंने साध संगत को गुरू अमरदास के समय की बात बताई कि उनकी काफी उम्र बढ़ गई थी बुजुर्ग हो गए थे तब उन्हें ख्याल आया कि मेरे बाद गुरू गद्दी पर कौन बैठेगा ? उनका उत्तराधिकारी कौन होगा ? उन्होंने कुछ सोचा और सारे गुरसिखों को बुलाया। सब उपस्थित हो गए तब उन्होंने हुकुम दिया कि एक थल्ला बनाना है, एक चबूतरा बनाना है, ऐसा ऐसा बनाना है। सतवचन करके सारे गुरसिख चले गए और बना दिया। गुरु अमरदास ने मुआयना किया, थोड़ा देखा और कहा कि इसे तोड़ दो। बस आधे गुरसिख तो ये कहते हुए अलग हो गए कि अब इनकी बुद्धि काम नहीं करती, बूढ़े हो गए हैं और आधे गुरसिख तो अलग हो गए। फिर कुछ समय के अंतराल से फिर हुकुम हुआ कि थल्ला बनाना है, चबूतरा बनाना है फिर गुरसिखों ने बना दिया। फिर उन्होंने मुआयना किया और कहा गिरा दो। बना दो गिरा दो बना दो गिरा दो ऐसा 69 बार हुआ। 70 वीं बार तक केवल एक ही गुर सिख बचे थे उनका नाम था रामदास। उन्होंने बुलाया कि रामदास, एक थल्ला बनाना है, एक चबूतरा बनाना है, ऐसा ऐसा बनाना है। सिर झुका कर रामदास ने बना दिया। आदेश के अनुसार थल्ला बन गया, गुरु अमरदास मुआयना करने गए देखा और कहा कि गिरा दो तब रामदास फावड़ा और तसला ले करके गिराने के लिए आगे बढ़े तब गुरु अमरदास ने आगे बढ़ करके उनको गले लगा लिया और कहा तेरी ही तो तलाश थी, मैं तुझको ही तो ढूंढ रहा था। यही रामदास गुरु गद्दी पर बैठे और समर्थ गुरु रामदास के नाम से प्रसिद्ध हुए। इसका हर किया पूर्ण है। पूरे का किया सब कुछ पूरा।
उन्होंने साध संगत को सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज कि एक बात बताई कि 2004 की बात है, 5 सितंबर का दिन था, पूर्वोत्तर राज्यों में प्रचार यात्रा के लिए विमान यात्रा के लिए रवाना हो रहे थे। आप जी के सम्मान में एक सत्संग समारोह का आयोजन हुआ। हुजुर बाबा जी ने सारे गुरसिखों को समझाया कि गुरसिख गुरुमुख केवल एक शब्द या नाम भर नहीं होता बल्कि एक अवस्था होती है और इस अवस्था को पाने के लिए गुरसिखों को जतन करने पड़ते हैं, प्रयत्न करने पड़ते हैं। हुजुर बाबा जी ने फरमाया कि ऐसा सोच के देखें कि क्या मेरे मन में सबके लिए प्यार है या नहीं ? ऐसा सोचे कि क्या मुझे हर समय इस प्रभु का एहसास है या नहीं ? ऐसा सोचे कि गुरु के शिक्षाओं के अनुसार मैं जीवन जी रहा हूँ कि नहीं जी रहा हूँ ? गुरु की हर आज्ञा आदेश उपदेश का पालन कर रहा हूँ कि नहीं कर पा रहा हूँ ? हुजूर ने कहा कि ये अवस्थाओं को प्राप्त करना ही गुरु सिख होना होता है।
Comments
Post a Comment