साढ़े छ फिट लंबा और साढ़े तीन फिट चौड़ा कलचुरी राजा युवराजदेव का बिलहरी शिलालेख, तत्कालीन राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं साहित्यिक इतिहास के संबंध में अनेक सूचनाएं मिलती हैं, विश्व विरासत सप्ताह 19 से 25 नवंबर
कटनी ( प्रबल सृष्टि ) विगत शताब्दी में कलचुरी राजाओं का एक बड़ा शिलालेख जो साढ़े छ फिट लंबा तथा साढ़े तीन फिट चौड़ा था बिलहरी ( कटनी ) में प्राप्त हुआ था । इसमें बिलहरी के तत्कालीन राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक, एवं साहित्यिक इतिहास के संबंध में अनेक सूचनाएं मिलती हैं । लेख बालुका के पाषाण पर उत्कीर्ण है । इसमें चारों ओर लगभग साढ़े तीन इंच मोटा बार्डर है । लेख में कुल तैतीस पंक्तियां हैं , जिसके अक्षर आधे आधे इंच के हैं। भाषा संस्कृत एवं लिपि नागरी हैं । शिलालेख में 86 श्लोक हैं।
युवराजदेव की पट्टरानी नोहला ने बिलहरी में एक भव्य शिवालय का निर्माण कराया था जिसमे उमामहेश्वर की भव्य प्रतिमा स्थापित कराई गई थी । रानी ने ईश्वरशिव नामक तपस्वी को निपानीय एवं अंबिपाटक नामक दो ग्राम प्रदान किए थे जो आधुनिक निपनिया तथा अमकुही हो सकते हैं । इसके अलावा। धंगटपाटक, पोंडी, नागबल, खैलपाटक, वीडा, सज्जाहली , और गोष्ठपाली नामक सात ग्राम शिव मंदिर को दिए गए थे । ये संभवतः डुंगरहाई , पोंडी , नैगवां, कैलवारा, सझरा एवं गाताखेड़ा हैं जो बिलहरी से दूर नहीं हैं ।
शिलालेख के दूसरे भाग में युवराजदेव ( प्रथम ) के पुत्र लक्ष्मणराज का वर्णन है । कहा गया है कि उक्त लक्ष्मणराज ने ह्रदयशिव नामक शैव आचार्य को सादर निमंत्रित कर उन्हे बैद्यनाथ का मठ सौंप दिया था । यह भी बताया गया है कि इन मुनि ने नोहलेश्वर मठ को स्वीकृत तो किया किंतु बाद में अपने शिष्य अघोरशिव को सौंप दिया था।
लक्ष्मणराज के पुत्र युवराजदेव ( द्वितीय ) के समय बिलहरी का यह शिलालेख लिखा गया था । यह राजा भी शिव का परम भक्त था । इन के द्वारा शिव की स्तुति में रचे गए श्लोक भी शिलालेख में सम्मिलित किए गए हैं । शिलालेख के अंतिम भाग में व्यापार , व्यवसाय , और उनसे संबंधित करों के संबंध में कुछ अधिसूचनाएं हैं । उक्त विशाल शिलालेख नागपुर के संग्रहालय ले जाया गया था ।
वर्तमान कटनी जिला के बिलहरी , तिगवां, कारीतलाई एवं बड़गांव जो कलचुरी काल में प्रशासनिक , व्यापारिक , धार्मिक , कलात्मक दृष्टि अत्यंत महत्वपूर्ण नगर थे , यहां पूर्व में प्राप्त ऐतिहासिक सांस्कृतिक संपदा बड़ी मात्रा में अन्य शहरों के संग्रहालयों में ले जाकर रखी गई है । यह कौन कौन सी और कितनी मात्रा में कहां कहां है , इसकी जानकारी स्थानीय जिला तथा स्थानीय प्रशासन के कार्यालय में उपलब्धियों होना चाहिए ताकि जिले के निवासी एवं आने वाली पीढ़ी भी अपनी सांस्कृतिक विरासत से परिचित हो सके।
सौजन्य - इतिहासकार श्री राजेन्द्र सिंह ठाकुर
संदर्भ _ दै.मध्यप्रदेश कटनी के दीपावली अंक 1977 में प्रकाशित डा . बालचंद जैन जो पुरातत्व विभाग के पूर्व उच्चाधिकारी तथा रीठी कटनी निवासी रहे हैं के लेख से साभार ।
प्रस्तुत चित्र _ कारीतलाई में प्राप्त कलचुरी कालीन एक अन्य लघु शिलालेख । श्री सत्येन्द्र तिवारी ताला की फेसबुक वाल से साभार ।
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