कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) माधवनगर में दशहरे के दिन कई साल से इस व्यक्ति को बच्चों के लिए फुग्गे बेचते देखते आया हूँ। बाकी किसी दिन इसे नही देखा करीब 9 बजे से ग्रामीण क्षेत्र की जनता जब आने लगी तो उसे कुछ उम्मीद थी कि कुछ बिक्री हो जाए।
इसके पास कोई हजारों के सामान नही होते मात्र कुछ सौ रुपए की लागत की चलती फिरती साइकिल में छोटी सी दुकान कह सकते हैं। इसके जैसे कई लोग इस उम्मीद से रहते हैं कि कुछ सामान बिक जाए खैर धीरे धीरे उत्साहित लोग माधवनगर आने लगे तो चाट फुल्की के ठेले वाले भी व्यस्त लग रहे थे। लोग बड़ी दुकानों से महंगे खिलोने खरीदते हैं तो थोड़ा इस वर्ग से भी खरीद करने की कोशिश जरूर करें क्योंकि इनके लिए यह उत्सव पेट की जरूरतों को पूरा करने का माध्यम बन जाते हैं। जुलूस मार्ग में ऐसे कई जन सड़क किनारे बहुत उम्मीद लेकर बैठते हैं इन्ही से दशहरे के दिन रौनकें सजती हैं। पता नही क्यों मेरा ध्यान हमेशा ऐसे त्योहारों पर इनकी तरफ जाता है कुछ बातें भी कर लेता हूँ इनसे। कुछ खरीद भी लेता हूँ तभी तो इनसे कुछ खरीदने की बात कह पाता हूँ। हमारी भारतीय संस्कृति में इन त्योहारों के कई मायने होते हैं उनमें से यह भी एक हैं। बहुत लोग कुछ उम्मीदें रख कर आएंगे बस सबकी जरूरतें पूरी हो और कोई उम्मीद से खाली न रहे।
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