मुरली पृथ्यानी - मानवीय गतिविधियों के कारण गर्म हुई धरती ने दुनिया की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। वर्षों से प्रकृति मानव को बार-बार चेतावनी देती आ रही थी कि वह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना और धरती से छेड़छाड़ बंद करे। उसके साथ सहअस्तित्व में रहे, वरना इसके भयंकर दुष्परिणाम हो सकते हैं, पर मानव ने उसकी एक न सुनी परिणाम हमारे सामने है। आज दुनिया के अनेक देश सूखे की समस्या से जूझ रहे हैं। सूखे ने दुनिया में संकट पैदा किया है।
जलवायु परिवर्तन के कारण लगभग समूची दुनिया के समक्ष सूखे का खतरा मंडरा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की ‘ड्राट इन नंबर्स’ रिपोर्ट-2022 बताती है कि वर्ष 2000 के बाद से सूखे की आवृत्ति और अवधि में 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके कारण न सिर्फ पारिस्थितिकी तंत्र में व्यापक असंतुलन पैदा हुआ है, बल्कि मानव संसाधन और आर्थिकी का व्यापक पैमाने पर नुकसान भी हुआ है। गौरतलब है कि सूखे के कारण 1970 से 2019 तक की अवधि में साढ़े छह लाख लोगों की मौतें हुईं, जबकि 1998 से 2017 के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था को 124 अरब डालर की चपत भी लगी।
चिंता वाली बात यह भी है कि देश का 50 % हिस्सा अभी से सूखे की चपेट में है।
इस संबंध में जानकार आने वाले दिनों को और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण बता रहें है। इससे साफ है स्थिति काफी खराब होने वाली है। मानसूनी बारिश में कमी की वजह से सबसे ज्यादा दिक्कतें सामने आ रहीं हैं, अपनी कटनी नदी ही सर्दीयों में सूख जाती है यह देख पीड़ा भी होती है। यही स्थिति लगभग हर जगह दिखाई दे जाती है इसमें मानसूनी बारिश में कमी और जल संरक्षण का अभाव बहुत बड़ी वजह है। पुराने जमाने में कस्बों, गाँव में पानी सहेजने की व्यवस्था रहती थी जो आजकल बहुत कम दिखाई देती है। देश के बड़े जलाशयों में ही पानी कम है और शहरों की क्या बात करें यहाँ न कुँए बचे है न तालाब और न ही भविष्य की चिंता को दूर करने वाले उपाय होते दिख रहें है। एक बात भी बिल्कुल सही ही लगती है कि शहरी लोगों की जल संरक्षण में कोई रुचि नहीं लगती फिर इस तरह कल बचेगा क्या ? कुल मिलाकर समझ में तो यही आ रहा है कि अगर प्रकृति पूरी तरह रूठ गई तो फिर कल की तस्वीर कैसे होगी यह विचार अवश्य करें।
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