कटनी ( संपादकीय - मुरली पृथ्यानी ) शिकारी आएगा जाल बिछाएगा लेकिन हमें नही फंसना है जैसी बात चाहे मुंह से कहते रहें लेकिन उसका अर्थ अगर भेजे में घुसा ही न हो तो चिटफंड वाले तो लूट कर ले ही जाएंगे और बार बार लूट कर ले जाएंगे तब लोग थाने पुलिस से फरियाद करेंगे कि हम तो लुट गए।
चिटफंड की दुकानें जब तक सजी रहती हैं लोग अपनी कमाई उन्हें दे आते हैं कि अब बस डबल ही हो जाएगा। आज की तारीख में जुआ सट्टा में ही यह सब होता है अर्थात दांव लगाते रहो मिला तो ठीक नही तो सब लुट ही जाएगा। आज की तारीख में बैंक, पोस्ट ऑफिस ही सुरक्षित होता है अपनी कमाई सुरक्षित रखने के लिए बाकी तो सब लुट मार ही दिखाई देती है। जिसे समझ हो वह शेयर बाजार में भी इन्वेस्ट कर सकता है यहाँ भी लंबी अवधि में पैसा नही डूबता लेकिन चिटफंड कंपनियों पर भरोसा बहुत कष्टदाई निकलता है लोगों के लिए। मजे की बात देखिए चिटफंड की दुकान जब खुली होती है तब कोई जिम्मेदार उनसे पूछने नही जाता कि तुम्हारे काम का आधार क्या है ? किस सिस्टम के तहत यह कर रहे हो ? कहाँ किस ने यह अधिकार दिया है ? वगैरह वगैरह लेकिन हमें तो सांप निकल जाने के बाद ही लकीर पर लट्ठ पीटने की आदत है तो वो भला कहाँ जाए। अब समाचार पत्रों की फिर खबरें हैं चिटफंड वाले नौ दो ग्यारह हो गए हैं। गाढ़ी कमाई लुटाए बैठे लोग बेबस होंगे पर इससे सबक ही सीख लिया जाए कि कटनी वाले फिर कभी यह गलती नही दोहराएंगे पर क्या ऐसा होगा ? फिलहाल तो अब इन लुटेरों का पुलिस पता लगाए और जनता को राहत दिलाए और आगे के लिए इंतजाम कर दे कि अब ऐसा तो बिल्कुल नही होगा, ऐसा होगा ना ?
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