( मुरली पृथ्यानी ) या तो सही रास्ता या गलत रास्ता दोनों की अपनी मंजिल है। कपट कर्म, चोरी, बेईमानी से बचकर चलना ही वह एकमात्र रास्ता है जिसपर चलकर ही जिंदगी सुख शांति से बिताई जा सकती है। इसके अलावा विपरीत रास्ता आगे निश्चित ही ठोकरें ही ठोकरें देता है। लेकिन क्या इसे आसानी से अपनाया जा सकता है ?
शायद नही, पर सब हाथ में है। सार यही है कि जिंदगी या जिंदगी के बाद भी कुछ पाना है या खोना है ? हर कोई पाना चाहता है लेकिन जो पाना है वो बोना भी तो पड़ेगा। बशर्ते रास्ते का चुनाव क्या होता है। लेकिन सब समझ का फेर है, यह इतनी आसानी से नहीं होता। होता तो झगड़े, अपराध जैसे रोग क्यों होते। इसकी जड़ में जाना ही जाना होगा नहीं तो सब यूँही चलेगा बल्कि और बढ़ता ही जाएगा, सुना भी है सांचे का कोई ग्राहक नाहीं आज दुनिया में झूठ का ज्यादा बोलबाला है सच को सामने लाने में ज्यादा प्रयास मेहनत है, संसार का पर्दा चढ़ा हुआ है, यह हटे तो मंजिल भी दिखे जैसा रास्ता वैसी मंजिल।
Comments
Post a Comment