हजारों साल पूर्व मानव निर्मित शैल चित्र वाली चट्टान कलेक्टरेट कटनी परिसर में पड़ी लावारिस, गुमसुम और गमगीन
कटनी ( प्रबल सृष्टि ) शहर के झिंझरी क्षेत्र की पहाडी की चट्टानें प्रकृती नें मानों फ़ुरसत से बनाई थीं। बलुआ पत्थर की ये चट्टानें बारजेदार ( छतरीनुमा ) आकार की बेहद आकर्षक रुप की हैं । हजारों वर्ष पूर्व जब मानव नें अपने रहने के लिए मकान का अविष्कार नहीं किया था तब वह इन चट्टानों में आश्रय लेता था। इनका छतरीदार रुप उन्हे वर्षा, धूप, ठंडी व गर्म हवा से बचाता था इसलिये इन्हे शैलाश्रय कहा गया।
फ़ुरसत के समय मानव इन चट्टानों में अपने आसपास के परिवेश को चित्रित करता रहता था । ए.एस.आई. की एक खोजी टीम द्वारा यहां 24 शैलाश्रय की श्रंखला खोजी थी जिनमें उस समय के मानव द्वारा चित्र बनाए गए हैं । इनमें अधिकांश शैलाश्रय वन विभाग कार्यालय परिसर में स्थित हैं, जो कम से कम उनकी निगरानी में हैं । जबकि एक विशाल शैलाश्रय यहां से दूर रजिस्टार कार्यालय के सामने स्थित है । जिसमे शायद सबसे अधिक चित्र उकेरे गए हैं । संस्कृति एवं इतिहास की यह अनमोल धरोहर कचरे के बीच उपेक्षित और गुमनाम पड़ी है । रजिस्टार, पशु चिकित्सा, मस्त्स्य पालन एवं जन सूचना केंद्र विभाग जैसे बडे बडे सरकारी कार्यालय के सामने यह स्थापित हैं । किंतु शायद इनके अधिकारियों को भी नहीं मालुम कि हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक खजाना उनकी आंखों के सामने लावारिस और उपेक्षित पड़ा है । पूर्व में इस शैलाश्रय के नीचे चाय पान की दूकान लगती थीं । वाहन पार्किंग होती थी । कोई साधु नुमा भिखारी अपना डेरा डाल इसे धार्मिक रुप देना चाहता था । जिन्हे हटा कर यहां फैंसींग अवश्य की गई है । किंतु चट्टान में शैल चित्र होने की सूचना देने तथा इन्हे नष्ट करने पर सजा का प्रावधान होने की जानकारी देने वाला कोई सूचना पटल यहां नहीं लगा है । सरकारी कार्यालयों के बाथरुम में भी प्रतिदिन सफाई करके फिनाइल आदी डाला जाता होगा । किंतु इस अनमोल सांस्कृतिक विरासत के इर्द गिर्द सफाई नाम का कोई तत्व नहीं । इसके विपरीत कूडा कचरा फैला पड़ा रहता है । देखरेख के अभाव में किसी भी दिन कोई अनजाने या उन्मादी अवस्था में इस शैलाश्रय के चित्रों को क्षति पहुँचा या नष्ट कर सकता है । स्थानीय प्रशासन द्वारा सौंदर्यीकरण के नाम पर शासकीय भवनों की दीवारों पर रंग बिरंगे चित्र बनवाये गए हैं । किंतु हजारों साल पहले हमारे पूर्वज यहां की चट्टानों में चित्र बना कर जो अनमोल सांस्कृतिक विरासत छोड़ गए हैं उसके रखरखाव पर कोई ध्यान नहीं है । कलेक्टर कार्यालय परिसर की इस अनमोल विरासत को जिले के सांस्कृतिक माडल के रुप में तत्काल सुरक्षा प्रदान कर खूबसूरत ढंग से संवारने की आवश्यकता है ।
लेखक - श्री राजेन्द्र सिंह ठाकुर
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