प्रबल सृष्टि - सिंधी कहानी लेखन की हस्ताक्षर श्रीमती सुंदरी उत्तमचंदानी जी की आज 28 सितंबर को जयंती है। वे आजीवन साहित्य सृजन करती रहीं। उनकी कहानियां सिंधी पाठकों द्वारा बहुत चाव से पढ़ी जाती थीं।
एक बार कार्य वश मुंबई गया था तब मेरे साथ सागर के मित्र राजेश मनवानी भी थे और उनके पास एक यू मेटिक वीडियो कैमरा भी था। हमने अभिनेता मैक मोहन और साधना जी अभिनेत्री के साक्षात्कार की योजना बनाई थी जिसमें मैक मोहन जी से तो काफी लंबा इंटरव्यू कर लिया था, लेकिन साधना जी ने इंटरव्यू देने से मना कर दिया था।वे लोगों की नजरों में आना नहीं चाहती थीं।दरअसल वे अपनी युवावस्था के दौर की छवि ही दर्शकों के मन में ताजा रखने के उद्देश्य से कोई इंटरव्यू नहीं देती थीं। तब हमने सांताक्रुज से लोखंडवाला जाकर लेखक गोपाल ठाकुर से बातचीत की। इसी दिन हमारी कीरत बाबानी जी से भी बातचीत तय थी। मुंबई के सिंधी दैनिक हिंदू के प्रधान संपादक श्री किशन वरयानी जी ने कुछ प्रख्यात लेखकों और फिल्म कलाकारों से हमारे साक्षात्कार के लिए समन्वय किया था। यही नहीं सहयोग फाउंडेशन के प्रमुख श्री राम जवहरानी जी ने भी रेणुका इसरानी, सुधीर, प्रीति झंगियानी सहित अन्य कलाकारों के साक्षात्कार के लिए हमारा संपर्क करवाया था और पूरा सहयोग दिया था। उसी दौर में लेखिका सुंदरी जी से भी हम दोनों ने उनके घर जाकर उनके सृजन पर लंबी बातचीत की थी।
सुंदरी जी द्वारा साक्षात्कार में जिन बातों पर जोर दिया गया उनमें से चयनित अंश प्रस्तुत हैं।
लेखिका सुंदरी जी का मानना था कि साहित्य हमें अपने अतीत और वर्तमान का अहसास करवाता है। देश के विभाजन के बाद नए स्थान पर आकर बसने से साहित्य सृजन प्रभावित भी हुआ। सिंधी भाषियों का अलग प्रांत होना चाहिए। प्रांत न होने से भाषा और साहित्य का विकास प्रभावित हुआ है। आर्थिक प्रगति पर भी असर हुआ है। प्रांत होता तो यह सब चीजें बेहतर होतीं ।
यह पूछे जाने पर कि आज सिंधी कहानी कहां खड़ी है, इसके जवाब में सुंदरी जी ने कहा कि सिंधी कहानी का अच्छा विकास हुआ है, सिंधी लेखक अच्छा कार्य कर रहे हैं, बरसों पहले दिल्ली में एशियन राइडर्स की बैठक हुई थी तब भी सिंधी कहानी के महत्व पर चर्चा हुई। एक समय था जब एक नई दुनिया नामक सिंधी पत्रिका सिंधी कहानीकारों के लिए प्रमुख मंच सिद्ध हुई थी। आज रचना ,कूंज और हिंदवासी जैसी पत्रिकाएं यह कार्य कर रही हैं और अच्छी बात है कि हिंदी कहानियों का हिंदी और अन्य भाषाओं में अनुवाद भी हो रहा है।
सुंदरी जी से पूछा गया कि जब पाठकों की आपके साहित्य पर टिप्पणियां आती हैं , तब कैसा अनुभव करती हैं? तो सुंदरी जी ने जवाब में कहा कि मैं पाठकों की प्रतिक्रियाओं से कम प्रभावित होती हूं, जो लेखन शैली है उसे कायम रखा है।
सुंदरी जी से यह सवाल किया गया कि देश विभाजन के बाद नई जमीन पर आकर बसने से भाषा के संरक्षण और संवर्धन में मुश्किलें आ रही थीं तो कौन से लोग आगे आए? इसके जवाब में सुंदरी जी ने कहा कि तब एक त्रिमूर्ति सक्रिय थी। ए जे उत्तम जी, कीरत जी और गोविंद मालही जी ने सिंधी भाषा के आंदोलन को आगे बढ़ाया।
क्या सिंध आज भी याद ह इस सवाल के जवाब में सुंदरी जी ने कहा कि सिंध की स्मृतियां आज भी ताजा हैं। उस दौर को भूल नहीं सकते। साहित्य लेखन तो सिंध में रहते ही शुरू कर दिया था।लगभग 20 वर्ष की उम्र में नई जमीन पर आने के बाद कुछ साल लेखन प्रभावित रहा ,फिर इसे नए सिरे से प्रारंभ किया।
साहित्य और सिनेमा के संबंध में सुंदरी जी ने बताया कि मैंने एक सिंधी फिल्म "विलायती घोट जी गोल्हा" में अभिनय भी किया है। पहले टैगोर के नाटक देखे थे, अभिनय की इच्छा हुई तो भूमिका को स्वीकार कर लिया।किसी भी भाषा में रचे गए
साहित्य को सीडी और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचाना अच्छा कदम है।
सुंदरी जी से जब यह पूछा गया कि अब तक किसी सिंधी लेखक या लेखिका को प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार नहीं प्राप्त हुआ है, क्या सिंधी में लिखा गया साहित्य इस स्तर का नहीं है? तब सुंदरी जी ने कहा किसी सिंधी लेखक को कभी ज्ञानपीठ ही नहीं उससे बड़ा पुरस्कार भी मिलेगा, मैं आशावादी हूं।
प्रख्यात लेखिका से जब मैंने प्रश्न किया कि क्या यह सच है कि पुरस्कार से लेखकों को अच्छा लिखने का प्रोत्साहन मिलता है? तो सुंदरी जी ने कहा "ऐसा अब होने लगा है लेकिन हमने कठिन समय में भी साहित्यिक गतिविधियां जारी रखी थीं।मैं जब सिंध से आई तब बिल्कुल नया वातावरण था लेकिन हम लोगों ने साहित्यिक बैठकें उस मुश्किल दौर में भी जारी रखीं, जब रोजी-रोटी की समस्या सामने थी। साहित्य से मेरा गहरा प्रेम रहा है। सृजन से संतुष्टि मिलती है।"
यह साक्षात्कार वर्ष 2007 में मुंबई में लिया गया था। बातचीत साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त प्रतिष्ठित लेखिका श्रीमती सुंदरी उत्तमचंदानी के जेठी बाई सोसाइटी, महिम स्थित निवास पर हुई थी। कैमरा पर्सन राजेश मनवानी सागर थे। जेठीबाई सोसायटी परिसर में हमें जाना तो दादा ठाकुर चावला और दादी पारू चावला के पास भी था लेकिन देर रात वापसी की ट्रेन भी थी तो उस विसिट में यह संभव नहीं हो पाया।उस सोसाइटी के परिसर में पहुंचने के बाद जब हम सुंदरी जी का मकान ढूंढ रहे थे तभी एक फ्लैट से सिंधी गीत के स्वर सुनाई दिए। हमने बिना नेम प्लेट देखे उस तरफ रुख कर लिया तो वह सुंदरी जी का ही निवास था। जब हम सुंदरी जी के अध्ययन कक्ष में बैठकर बातचीत कर रहे थे तब उनकी बेटी जो फिल्म निर्माण एवं निर्देशन से जुड़ी हैं, श्रीमती आशा चांद और उनकी बेटी मूमल भी साथ थीं। पूरा परिवार साहित्य सिनेमा और संगीत का प्रेमी है।
लेखक अशोक मनवानी,भोपाल
===================
सुंदरी उत्तमचंदानी
संक्षिप्त परिचय
जन्म 28.9.1924
अवसान 8.7.2013
साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कृति : विछोड़ो
करीब 25 कृतियों का लेखन
Comments
Post a Comment