कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) युग बदला है समय बदला है अब लोगों का व्यवहार बदला है। उपद्रव आदत बनती जा रही, जो पकड़ा जाता है वह पकड़ा जाता है पर यह फिर भी बढ़ता जा रहा है। ऐसा क्यों है ?
क्या समझ ने समझना कम कर दिया या समझ स्वार्थ से आगे सोचती नहीं ? एक बात तो यह समझी अब गुस्सा काबू से बाहर गया, धैर्य गुम हो गया, सहनशीलता खत्म सी होती जा रही। आगे कोई देखना नहीं चाहता बस आज तो लोगों से आगे निगल जाने की जिद है, हर किसी को जल्दी है, यह रफ्तार बढ़ रही। अपराध बोध होता भी या नहीं ? अब क्या करें ? भला किसको किसको क्या क्या समझाएं ? जिसे जो चाहे वह कर गुजरता है पर दिक्कत यह कि उसने दूसरों का बिगाड़कर खुद का कुछ क्या संवारा ? दूसरे का बिगाड़ के किसी का क्या कभी कुछ संवरा है ? इसलिए ज्ञान पाना जरूरी है। ज्ञान कुदरत का और कानून का जरूरी है। जब जानेगा कि क्या सही क्या गलत, तो शायद इस ज्ञान को जीवन का आधार बना लेगा फिर शायद न हो कोई अपराध, न हो किसी का नुकसान फिर होगी पीर पराई अपनी। यह विचार आया है तो आपको भी वैसे ही बताया है।
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