बदलाव होता है, बस बच्चों के साथ बैठना होता है और उन्हें स्नेह से नेतृत्व देना होता है, अपने सामने जीवंत कक्षाओं को संचालित होते हुए देखेंगे
कटनी ( प्रबल सृष्टि) एक स्कूल मॉनिटरिंग में गया और शिक्षकों से पूछा कि क्या आपके सभी बच्चों से अंग्रेजी टू हिंदी डिक्शनरी देखते बनती है ? उन्होंने कहा आठवीं के तीन चार बच्चों से। हमारा अगला प्रश्न था कि सबको सीखने में कितना वक्त लगेगा ?
उन्होंने कहा चार पांच दिन और यह भी कहा, सब नहीं सीख पाते। अगले ही पल हमको चिंता हुईं किन्तु हमने अपने प्रभाव के दायरे में काम किया और अधिकांश बच्चे डिक्शनरी देखना अगले एक घंटे में सीख गए।
मुझे केवल अपनी कुर्सी छोडकर उनके साथ बैठना पड़ा। दो से अधिक डिक्शनरी होती तो शायद हर बच्चे को पंद्रह मिनट से अधिक समय नहीं लगता। सभी शिक्षक साथी ऐसा करते हैं (खासकर विषय शिक्षक), तो उन्हें बोर्ड पर नए अथवा कठिन शब्दों के अर्थ और उच्चारण लिखने/दोहराने से मुक्ति मिल सकती है और समय तथा अनावश्यक श्रम भी बच सकता है। वैसे भी हर बच्चे के नए अथवा कठिन शब्दों की संख्या अलग अलग है तो सबको एक सा लिखवाना क्यों? आप भी करके देखिए, कुछ बच्चों को सिखाने के बाद उन्हीं बच्चों को अन्य बच्चों को सिखाने की जिम्मेदारी दीजिए। आप अपने सामने जीवंत कक्षाओं को संचालित होते हुए देखेंगे और इस प्रक्रिया में हमेशा के लिए डूब जायेंगे! जहां जहां बच्चे डिक्शनरी देखना सीख जाते हैं, वहां वहां वे उसे अपने पालकों से मंगा कर घर में उसका उपयोग करना शुरु कर देते हैं। आप यह भी महसूस करेंगे कि अब आपकी कक्षा के बच्चों को और आपको कालखंड समाप्ति की घंटी सुनने में चूक हो रही है। यह चूक खुश रहकर तीसरी कक्षा से शुरु कर सकते हैं।
लेखक - राजेन्द्र असाटी जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान कटनी
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