उनके जीवन के अनजाने पहलुओं को सामने लाने का कार्य करती हैं किताबें।
ऐसी ही एक किताब साल 1967 में लिखी गई। प्रकाशन की यात्रा भी कठिन रही। अनेक रूकावटों के बाद वर्ष 1976 में इसका प्रकाशन हो सका। यह किताब एक खण्ड काव्य के रूप में छपी। पुस्तक का नाम था ”मांडवी : एक विस्मृता।”
प्रभु श्रीराम के भाई भरत की पत्नी मांडवी के जीवन पर लिखी इस पुस्तक में मांडवी के बचपन, भरत से विवाह, भगिनी से वियोग, चित्रकूट की यात्रा और अयोध्या में बिताए तन्हा जीवन के वृतांत शामिल हैं। भगवान राम के वनवास से लौटने के बाद भरत- मांडवी के पुनर्मिलन की कहानी भी पुस्तक में शामिल है। इस कृति के बारे में लेखिका का कहना है कि रामायण में अनेक बार मांडवी का चरित्र पढ़ने के बाद ऐसा लगा भरत-मांडवी, राम और सीता से इतने अधिक संबद्ध रहे कि उनके बिना मांडवी की बात कही नहीं जा सकती। लेखिका को केंद्रीय पुस्तकालय लखनऊ में जाने पर श्री बालकृष्ण शर्मा नवीन की लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला पर लिखी पुस्तक को पढ़ने का अवसर मिला। तभी मांडवी के चरित्र पर लिखने की भावभूमि बन गई थी। यह खण्ड काव्य छह महीने में लिखा गया। रेल यात्राओं में इसके लेखन की पूर्णता हुई।
इस पुस्तक की भूमिका साहित्यकार श्री नारायण चतुर्वेदी और श्री अमृतलाल नागर ने लिखी थी। पुस्तक के प्रथम संस्करण का विमोचन श्री हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने किया था। बहुत साल बाद इस खण्ड काव्य का दूसरा एडीशन साल 2010 में छपा।
लेखक बिरादरी का मानना है कि हम सदियों से राम सीता और लक्ष्मण के वनवास की बात करते हैं, लेकिन मांडवी को संभवत: भूल गए।
मैथलीशरण गुप्त जी ने भी उर्मिला पात्र को गरिमा दी थी। "मांडवी: एक विस्मृता" के माध्यम से मांडवी के चरित्र की महिमा की अभिव्यक्ति हुई है।
इस कृति की लेखिका रानी सरोज कुमारी गौरिहार जो छतरपुर से वर्ष 1967 से 1972 के दौरान विधान सभा सदस्य भी चुनी गईं, आज प्रात: 93 बरस की आयु में इस दुनिया से विदा हो गईं। वे विदुषी थीं। रानी सरोज कुमारी जी मामुलिया पत्रिका से भी लगातार जुड़ी रहीं। उनके पति महाराज गौरिहार श्री प्रताप सिंह का निधन वर्ष 1959 में हो गया था। वे छतरपुर जिले की गौरिहार रियासत के महाराजा थे।
रानी सरोज कुमारी जी आजीवन बुंदेली संस्कृति के संरक्षण के लिए भी कार्य करती रहीं। इनके पिता श्री जगन प्रसाद रावत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे। रानी सरोज कुमारी जी को विन्रम श्रद्धांजलि।
सामग्री सहयोग : मामुलिया पत्रिका और श्री दिनेश निगम "त्यागी"
लघु कथा
वो विस्मृता
आज वो रेल के लंबे सफर में तन्हा थीं। इस जीवन में उन्होंने कितनी ही रेल यात्रायें की हैं, बिल्कुल अकेले ।
इस तरह की यात्रा में विचार मंथन चलता फिर कागज कलम लेकर लिखने बैठ जाती थीं, भोगा हुआ यथार्थ।
उन्होंने उस पौराणिक ग्रंथ की एक पात्र मांडवी पर खंडकाव्य लिख डाला था। वह मांडवी जो भरत के वियोग में एकांत में लंबा समय बिताते अनेक अंतर्द्वंद समेटे ,जीवन के कई कड़वे अनुभव लेते हुए उपेक्षा का शिकार बनी थी।
एक अलग दुनिया में विचरती लेखिका ने उस मांडवी के चरित्र् को उभारने के लिए कई पुस्तकालय छान मारे थे। अध्ययन इतना विशद किया था कि उस मांडवी के चरित्र को मानो खुद जीने लगी थी और दुर्भाग्य देखिए जीवन के आखिरी नौवें और दसवें दशक में मांडवी जैसी ही जिंदगी जीने को वह विवश हो गई थी।
इस संसार से रुखसत हो , उसके पहले ही समाज से अलग सी हो गई थीं। भुला दी गई थीं ,जैसे कोई विस्मृता।
इस लघु कथा का आधार सरोज कुमारी जी ही हैं यह सच है कि पिछले 20:30 बरस से एक तरह से वे विस्मृता हो गई थीं
मानो मांडवी के चरित्र को इन्होंने आत्मसात कर लिया था।
इस लेखिका सरोज कुमारी का 93 वर्ष की आयु में आज आगरा में निधन हुआ ।
ये मध्य प्रदेश में विवाह के बाद आई थीं।
विधायक भी रहीं लेकिन बहुत बड़ी विदुषी थीं।
यह एक यथार्थ आधारित लघु कथा है जिसका वाचन मैंने आज लघु कथा मंच की गोष्ठी में भी किया।
लेखक साहित्य और फिल्मों पर लिखतें हैं। -
अशोक मनवानी भोपाल
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