( मुरली पृथ्यानी ) क्या किसी को यह पता होता है कि उसका जीवन कितना है ? यह किसी को भी पता नही होता। वो सुनते हैं न आदमी बुलबुला है पानी का बस यही सच्चाई है, सामान सौ बरस का यहां पल की भी खबर नही। एक दिन आदमी वहीं लौट जाएगा जहां से आया है लेकिन कितने लोग अपने जीते जी यह जानना चाहते है ? हैं कुछ बिरले इनकी संख्या बहुत ही कम है। दुनिया में लोग सिर्फ खप रहें होते हैं फिर वो कभी कहीं नही दिखते। दुनिया तो चक्रीय है समय का चक्र चल रहा, दिन रात साल चक्र जैसे चल रहे फिर वो घड़ी आती है जिसे कोई रोक नही सकता फिर दुनिया के धन दौलत संपत्ति यही रह जाना है। कोई संगी साथी नही आए अकेला जाए अकेला। अंत घड़ी जब आ जाए तो दुनिया की सारी दौलत देकर भी कोई कुछ सांस नहीं खरीद सकता फिर सबसे महत्वपूर्ण तो सांसे ही हैं न। इसी से जीवन है और जो जीवन का आधार है फिर जीते जी उसे क्यों नही पाने की इच्छा बलवती हो रही। बात समझ की है बस जीवन की इस आपाधापी से परे हट कर विचार पैदा करना होगा जो शाश्वत से जोड़े बाकी तो सब नश्वर है। रुक कर समझ कर फिर चलना है तभी सही मायने में जीवन पूर्ण होगा।
( मुरली पृथ्यानी ) क्या किसी को यह पता होता है कि उसका जीवन कितना है ? यह किसी को भी पता नही होता। वो सुनते हैं न आदमी बुलबुला है पानी का बस यही सच्चाई है, सामान सौ बरस का यहां पल की भी खबर नही। एक दिन आदमी वहीं लौट जाएगा जहां से आया है लेकिन कितने लोग अपने जीते जी यह जानना चाहते है ? हैं कुछ बिरले इनकी संख्या बहुत ही कम है। दुनिया में लोग सिर्फ खप रहें होते हैं फिर वो कभी कहीं नही दिखते। दुनिया तो चक्रीय है समय का चक्र चल रहा, दिन रात साल चक्र जैसे चल रहे फिर वो घड़ी आती है जिसे कोई रोक नही सकता फिर दुनिया के धन दौलत संपत्ति यही रह जाना है। कोई संगी साथी नही आए अकेला जाए अकेला। अंत घड़ी जब आ जाए तो दुनिया की सारी दौलत देकर भी कोई कुछ सांस नहीं खरीद सकता फिर सबसे महत्वपूर्ण तो सांसे ही हैं न। इसी से जीवन है और जो जीवन का आधार है फिर जीते जी उसे क्यों नही पाने की इच्छा बलवती हो रही। बात समझ की है बस जीवन की इस आपाधापी से परे हट कर विचार पैदा करना होगा जो शाश्वत से जोड़े बाकी तो सब नश्वर है। रुक कर समझ कर फिर चलना है तभी सही मायने में जीवन पूर्ण होगा।
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