कटनी ( प्रबल सृष्टि ) आज से 40 वर्ष पूर्व जब झिंझरी साईट के शैल चित्रों से अपना शोध कार्य प्रारंभ कर रहा था तब यह सोचा भी नहीं था कि इस कार्य के लिए यहाँ इतना सम्मान मिलेगा ! झिंझरी साईट , शैल चित्रों के अध्ययन की मेरी पहली साईट थी । इसके बाद ही मैनें मध्य भारत के अन्य शहरों में शोध कार्य प्रारंभ किया । इस विषय में भोपाल का मेरा पहला प्रजेंटेशन भी झिंझरी पर ही था । आज यह संयोग बना कि इसी साईट पर शैल चित्रों पर लिखी पुस्तक का विमोचन हो रहा है । जो प्रसन्नता दायज है । उक्ताशय के उदगार इन्टैक , ( राष्ट्रीय कला एवँ सांस्कृतिक धरोहार न्यास ) कटनी चेप्टर द्वारा गत 21 मई को वन विभाग कार्यालय परिसर स्थित सभागार में आयोजित ' डेटिंग द रॉक पेंटिंग ऑफ़ सेंट्रल इण्डिया ' शीर्षक पुस्तक के रचयिता ड़ा. एस. एस. गुप्त द्वारा व्यक्त किए गए । आपने आगे कहा कि इन चित्रों से हम तत्कालीन सामजिक स्थितियों का आंकलन करते हैं । झिंझरी की साईट में मुझे स्टेंसिल से बनाए चित्र भी मिले हैं जो दिलचस्प है । साथ ही अन्य किसी नेशनल हाईवे पर भी झिंझरी जैसे शैल चित्र नहीं मिले । इस दृष्टी से यह साईट काफी महत्वपूर्ण है जिसे पर्यटन की दृष्टी से आसानी से विकसित किया जा सकता है । आपने प्रोजेक्टर पर शैल चित्र प्रदर्शित कर उपस्थित जनों को महत्वपूर्ण एवँ उपयोगी जानकारियाँ भी प्रदान कीं ।
आरम्भ में इन्टैक कटनी चेप्टर के संयोजक श्री मोहन नागवानी ने कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए कहा - गुप्त साहब की प्रस्तुत कृति लोगों को अपनी विरासत का महत्व समझने तथा इस दिशा में जागरुक करने में सहायक सिद्ध होगी
आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ़ इंडिया जबलपुर वृत्त के सुपरिटेन्डेट श्री शिवाकांत बाजपेयी ने कहा कि आज हम जहाँ पर खड़े हैं , वहाँ इतिहास - पुरातत्व की भाषा लोगों को क्लिष्ट एवँ नीरस लगती है । हमारे यहाँ सात पीढियों का नाम याद रखने की परम्परा थी । जो आज समाप्त हो गई है । कटनी का अतीत प्रागैतिहासिक - ऐतिहासिक दृष्टी से महत्वपूर्ण है । कारीतलाई की वाराह प्रतिमा , सागर जिले के ऐरन की वाराह प्रतिमा जो विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा है के बाद दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है । यहाँ जैसा कार्य होना चाहिये था , वैसा नहीं हुआ है । इसके प्रयास उनके द्वारा किए जा रहे हैं । वन विभाग के सी.एफ. श्री आर .सी . विश्वकर्मा द्वारा कहा गया - हमारे पास एक बड़ी प्रागैतिहासिक विरासत है जिसके प्रति हमे ध्यान देना चाहिये । आज की युवा पीढी विज्ञान की ओर उन्मुख है किंतु हमे अपनी विरासत की उपेक्षा भी नहीं करना चाहिये । इस पुस्तक के माध्यम से लोगों को अपनी धरोहर के प्रति जानकारी मिलेगी जो इस दिशा में कार्य करने को प्रेरित करेगी । इस कार्य में हर संभव सहयोग का आपने आश्वासन दिया ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पद्मश्री बाबूलाल दाहिया जी ने ड़ा. गुप्त के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा - सेवाकाल के दौरान आपने जो किया वह आपकी वृत्ति थी किंतु सेवा के बाद आपने पुस्तक रुप में जो लिखा है यह आपकी प्रवत्ति है । आपने आगे कहा , भारतीय ग्रामीण समाज की अपनी लोक संस्कृति रही है । किंतु कृषि में नई तकनीक आने से समाज में प्रचलित बहुत से उपकरण एवँ उनसे सम्बंधित बोलचाल की भाषा और शब्द भी चलन से बाहर होते जा रहे हैं । इन्हे भी पुरातत्व संरक्षण के दायरे में लाए जाने की आवश्यकता है ।
इस अवसर पर श्री बाबूलाल दाहिया जी की सद्यप्रकाशित कृति ' मैं और मेरा गाँव ' का भी विमोचन सम्पन्न हुआ ।
कार्यक्रम संचालन श्री मुकेश चंदेरिया एवँ आभार प्रदर्शन श्री सुशील शर्मा द्वारा किया गया । इस अवसर पर सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में तत्कालीन विजयराघवगढ रियासत के श्री सरयू प्रसाद सिंह के योगदान को रेखांकित करने वाली पुस्तक के रचयिता श्री अनिल ' अयान ' सतना का शाल , श्री फल एवँ स्मृति चिन्ह सम्मान किया गया । अंत में गत 13 मई को दिवंगत इन्टैक जबलपुर चेप्टर के संयोजक ड़ा. श्री आर. के . शर्मा साहब को श्रद्धांजलि अर्पित की गई । इस अवसर पर श्री विवेक दुबे , सुरेश दाहिया इन्टैक कटनी चेप्टर से ड़ा. चित्रा प्रभात , गोपी विश्वकर्मा, एनेट एफ. बिस्वास , भारती नागवानी , रजनी सिंह , नीतू लालवानी , निर्भय सिंह , राजेन्द्र सिंह , जुगल किशोर मिश्रा , सुधीर सिंघानी , दिवाकर तिवारी , तमन्ना मिश्रा , शिवांश मिश्रा , हरीश झामनानी आदि उपस्थित रहे ।
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