हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह ..संगीत की नायाब शख्सियत मोहन मूरपानी आज कटनी छोड़ मैहर में मुकाम कर रहे हैं
कटनी ( प्रबल सृष्टि ) नगर पालिक निगम के सामने से जाने वाली गली में स्थित बैंड हाल के सामने सिन्धी बिरादरी का एक सम्पन्न परिवार रहता था । इसी परिवार के एक नवयुवक श्री मोहन मूरपानी ने साठ के दशक में संगीत के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई थी । गिटार उनका प्रिय साज था, जिसे वे स्वयं बनाते थे । कटनी में गिटार का चलन आपने ही शुरु किया । आपके किस्से तो बेशुमार हैं । एक यहाँ प्रस्तुत जो भाई जगदीश विश्वकर्मा जी ने सुनाया था ।
एक बार गिटार खरीदने मोहन मूरपानी और जगदीश विश्वकर्मा कटनी से कलकत्ता गए । दूसरे दिन बाजार के किए तैयार होकर होटल से निकले और कलकत्ता संगीत बाजार की एक बड़ी दूकान में पहुंच गिटार खरीदने की फ़रमाइश पेश की । दूकान मालिक तुरंत गिटार निकाल कर उन्हे दिखाने लगा । एक देखकर बजाया , सर हिलाकर मना किया । दूसरा देखा , तीसरा देखा इस तरह कई गिटार देखे और उनमें कमियाँ बताकर रिजेक्ट कर दिया । दूकानदार बोला - आप अच्छे संगीत पारखी हैं , आपको स्पेशल गिटार देता हुँ । फिर गिटार लाए गए । मोहन भैया ने बजाकर देखा और उनमें भी कमियाँ बताकर रिजेक्ट कर दिया । अब उस बड़ी और प्रशिद्ध दूकान के मालिक के अपने बाल नोचने की बारी थी कि जिन गिटारौं की गलतियाँ उसके यहाँ आने वाले बडे बडे संगीतकार नहीं पहचान पाते उन्हे यह शख्स बड़ी आसानी से पहचान रहा है । आखिर उसने पछा - आप लोग कहाँ से आए हैं ? मोहन भैया नें जबलपुर से आना बतलाते हुए यह भी बतलाया कि वे खुद भी गिटार बना लेते हैं । अब दूकानदार नें बडे मीठे स्वर में हाथ जोडते हुए प्रस्ताव दिया कि आप हमारे लिए गिटार बना कर देँ । जितने भी बनाएँगे हम सभी खरीद लेगें । मोहन भैया ने जवाब दिया - हम तो संगीतकार हैं , गिटार बनाने वाले कारीगर नहीं हैं । अन्ततः वहां से गिटार लिए बिना वापस लौट आए । दूकानदार कटनी नगर के इस अद्धभुत पारखी को आश्चर्य से देखता रह गया ।
किसी समय कटनी और बाहर के शहरों में अपने आर्केस्ट्रा की धूम मचाये रखने वाले श्री मोहन मूरपानी कुछ अपनों से आहत होकर कई वर्ष पूर्व कटनी छोड़ संगीत उस्ताद अलाउद्धीन खाँ साहब की नगरी में मुकाम किए हुए हैं । कल शाम राह चलते अचानक उन्हे स्टेशन तरफ जाते देखा तो तेज कदम बढा उनसे बातचीत शुरु की ।स्टेशन के पास चाय पान हुआ और आधे घन्टे तक अंतरंग चर्चा होती रही । फिर वे अपनी गाड़ी से मैहर को चले गए।
एक कलाकार समाज को संस्कारित करता, उसके जीवन में कला के रंग भरता है । किन्तु यह समाज उसका मोल नहीं करता । उपेक्षा करके उस कलाकार के जीवन में पीड़ा घोलता है । यह समाज का कृतघ्न एवं घृणित रुप है ।
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मोहन मूरपानी के साथ दिलबहार चौक में
( लेख़क - साहित्यकार राजेन्द्र सिंह ठाकुर ) --------------------------------------------------------
गजब कु शख्सियत है मोहन भैया।
ReplyDeleteमें अपने बड़े भाई किशोर भैया के साथ शारदा संगीत मंडल में उनके अभ्यास के दौरान जाता रहता था। मेरा उनको सादर प्रणाम🙏