उच्च संस्कारों से पोषित बालक उच्च गुणों वाला बनता है- सतगुरु साईं, हरे माधव रूहानी बाल संस्कार की पाठशाला पुनः प्रारम्भ हुईं
कटनी। कोरोना महामारी के कारण पिछले 2 वर्ष से हरे माधव रूहानी बाल संस्कार की पाठशाला स्थगित की गई थी जो 20 फरवरी 2022 को पुनः शुरू की गई। जिसका शुभारंभ सतगुरु जी के पावन सानिध्य में हुआ। गौरतलब है कि सद्गुरु सांई ईश्वर शाह साहिब जी के पावन कर कमलों से पूर्व में हरे माधव रूहानी बालसंस्कार का शुभारंभ दिनांक 15 फरवरी 2009 को हरे माधव भवन में किया गया था जो निरंतर संचालित हुआ। हरे माधव रूहानी बाल संस्कार की कक्षा प्रत्येक रविवार को संचालित होती है। जिसमें लगभग 13 सौ बालक बालिकाएं निःशुल्क शिक्षा एवं संस्कार ग्रहण करते है। आज हरे माधव रूहानी बाल संस्कार में सभी जाति धर्म एवं वर्गों के बालक बालिकाएं नित्य नियम से अनुशासन, बौधिक एवं शारीरिक शिक्षा के साथ-साथ परमाथ॔ और रूहानियत के उच्च संस्कारों को भी ग्रहण करते हैं।
हरे माधव रूहानी बाल संस्कार में 5 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के बालक बालिकाएं ही प्रवेश ले सकते हैं। किसी भी जाति धर्म समाज एवं वर्ग के बालक बालिकाओं के लिए प्रवेश पुर्णतः निःशुल्क है। सद्गुरु की आज्ञा से शिक्षक शिक्षिकाओं द्वारा प्रत्येक रविवार की कक्षा में शिष्टाचार-सदाचार , प्रेरक प्रसंगों, योगा, खेल, हैंडीक्राफ्ट भजन गायन नाटक एवं एकांकी देश-विदेश के प्रेरणादायक ज्ञानवर्धक समाचार एवं नित्यनयी खोज अविष्कारों की आवश्यक जानकारियों के साथ अनुशासन सदाचार एवं कंप्यूटर के माध्यम से अन्य मनोरंजक एवं प्रेरणादायक कहानियों के साथ-साथ सेवा, सत्संग, सिमरन- ध्यान और परमार्थ के महत्व की समझाइश के माध्यम से उन्हें संस्कारित किया जाता है।
हरे माधव रूहानी बाल संस्कार की पाठशाला में सर्वप्रथम अरदास मेरे सतगुरां हम शरण तेरी आए ध्यान, जाप, विनती, नमन के पश्चात सतगुरु जी का स्वागत गीत बच्चों ने भोले भाव से गाया तत्पश्चात एकांकी सत्संगति का मंचन हुआ जिसमें बच्चों ने संदेश दिया कि जो जिस संगति में रहता है उसके जीवन में वैसा प्रभाव पड़ता है। शिक्षाप्रद नाटक पेंसिल-रबर के द्वारा बच्चों ने दोनों के महत्व व गुणों का सुंदर चित्रण किया पेंसिल ने रबर का शुकराना किया कि जब भी मैं भूल करती हूं तो तुम उसे मिटा कर सही कर देते हो। उसी प्रकार हमारे सतगुरु साहेबांन जी भी हमारी भूलों को सही कर देते हैं।हमारे औखे कर्मों को बख्श देते हैं तत्पश्चात साखी के द्वारा समझाया गया ध्यान पुख्ता करो पारब॔म्ह परमात्मा हमारी करुण पुकार प्रार्थना को सुनता है और अपने सुरक्षा कवच में लेकर हमारी बाधाएं हरता है। शुकराना पर ह्रदय स्पर्शी कविताएं बच्चों ने सुनाई और सामाजिक शुकराना किया यह सतगुरु साहिबान जी आप सदा हमें अपनी पावन और छाया में रखें इसी तरह नेक संस्कारों से पोषित करते रहे।
सतगुरु साहेबान जी ने हरे माधव रूहानी बालसंस्कार में सेवारत सेवादारों को अनमोल सीखों से कृतार्थ किया, आप जी ने फरमाया सतगुरु मत विराट वट वृक्ष के समान होती है। जहां फूल फल छाया स्वतः मिलती है। आकाश-धरती सदा से है पर महत्व वट वृक्ष का है। हर पौधे को धरती मिलती है पर मायने यह रखता है कि उसका पालन-पोषण सिंचाई कैसे हुई ? किस तरह खाद, मिट्टी, पानी, बीज दिया गया। यदि बीज का रख रखाव ध्यान से सही युक्ति से किया गया हो तो उस में अच्छी वृद्धि वह निखार आता है। उसी तरह नन्हे मुन्हे बच्चे गुलाब की तरह हैं उन्हें सही तरह से खींचा जाए तो उन्हें सेवा, सत्संग, सिमरन-ध्यान के साथ-साथ अनुशासन में रखें। वह गुरु मत कि विराट गुण कला से उसमें निखार आ जाता है। बाल संस्कार का सुरक्षा कवच है संस्कार। उच्च संस्कारों से पोषित बालक उच्च गुणों वाला बनता है बालपन से ही सतगुरु जी की ओट छाया को संस्कारों को ग्रहण करने से उनकी नींव मजबूत होगी।
सदैव अपनी वाणी में मिठास माधुर्य रखें जिस तरह शुभ कार्यों में पौष्टिक औषधीय गुण होने के बावजूद भी हम अतिथियों को कड़वी नीम के व्यंजन नहीं उन्हें मीठे व्यंजन परोसे जाते हैं। उसी प्रकार बच्चों को भी मीठी वाणी प्रेम भाव से नेक आचरण, व्यवहार, उच्च संस्कार सिखाए जाएं तो वे जल्दी सीखते हैं।
जिस प्रकार सभी कार्यों व विभागों के नियम कानून होते हैं उसी तरह सेवा के भी अपनी नियम अनुशासन होते हैं हम उन नियमों के अनुसार ढल उच्च संस्कार प्राप्त कर सकते हैं , फूल जब तक पेड़ से जुड़ा है तभी तक वह फलता फूलता और सुन्दर लगता है पेड़ से अलग होने के बाद मुरझा जाता है हम भी जब तक पावन सत्संगति से जुड़े हैं तभी तक परमात्मा कृपा से फलते फूलते हैं।
आप जी ने आगे समझाया प्रारब्ध के अनुसार जिसको जो हुनुर मालिकों ने प्रदान है उसी के अनुसार नियम कायदों में आदेश की सेवा करें।
जिस प्रकार आकाश से पानी बरसता है वह धरा के स्पर्श के बिना उपयोगी नहीं बनता उसी प्रकार बाहरी शिक्षा हम कितनी भी कर लें आंतरिक शिक्षा के उच्च संस्कार जब तक नहीं मिलते तब तक वह शिक्षा उपयोगी नहीं हो पाती इसी वास्ते सतगुरु जी हरे माधव रूहानी बाल संस्कार के द्वारा आंतरिक शिक्षा से बच्चों को संस्कारित पोषित कर रहे हैं जिससे बच्चे जीवन जीने की कला में निपुण हो।
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