कटनी। इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति के संरक्षण संर्वधन एवं लोकव्यापीकरण करने में राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत संस्था भारतीय संस्कृति निधि (इन्टैक) के कटनी अध्याय द्वारा ढ़ीमरखेड़ा ब्लाक के भितरीगढ़ किले का भ्रमण किया गया।
विरासत केवल गढ़ी, किला एवं पुरातत्व ही नहीं है हमारी जनजातियाँ भी भारतीय इतिहास एवं परम्परा के उदाहरण है एवं हमारी धरोहर हैं एवं आधुनिक समय में उन परम्पराओ एवं संस्कारो को बचाना एवं आज की पीढ़ी से परिचित कराया जाना अत्यावश्यक है। इन्ही उददेश्यों को लेकर विश्व विरासत सप्ताह के अवसर पर इन्टेक कटनी अध्याय द्वारा शाहडार के जंगलो में स्थित भितरीगढ़ किले के भग्नावेशों का शिकागो पब्लिक स्कूल के छात्रों के एक दल का भ्रमण कराया गया।
गोड़ राजा कुन्दन शाह एवं उनके वंशज गब्बर शाह गोड़ साम्राज्य में भितरीगढ़ गोड़ आदिवासी परगना था। जिन्होनें अंग्रेज़ साम्राज्य से टक्कर ली। शाहडार की पहाड़ियों पर स्थित भितरीगढ़ जंगल के मध्य दुर्गम मार्ग पर स्थित है। जहाँ खच्चर, घोड़े, हाथियों एवं पैदल ही पहुचाँ जा सकता था। वर्तमान में किला एवं परकोटा ही भग्नावेश के रुप में मौजूद है। साथ ही कुछ भग्न मूर्तिया कुल्लू के पेड़ के नीचे एक चबूतरे पर स्थापित है। वन संपदा एवं वन्य जीवों से परिपूर्ण इस स्थल से घाटीयों में स्थित भितरीगढ़ के तालाब का सुन्दर विहगंम दृष्य दिखता है। उल्लेखनीय है कि कटनी नदी का उदगम इसी तालाब हुआ है जिसके नाम पर जिले का नाम कटनी पड़ा है।
स्थानीय जानकार छोटेलाल मरावी द्वारा किले एवं परगनादार के इतिहास एवं स्थानीय वृक्षों एवं वन उत्पादों उनके औषधीय महत्व तथा आर्थिक पहलू की जानकारी दी गई। इस अवसर पर इन्टेक कटनी अध्याय के मोहन नागवानी द्वारा छोटेलाल मरावी, शिक्षिका कु. रोशनी पाण्डे, जन भारती शिक्षा संस्थान के भरत नामदेव तथा वन विभाग के सहयोग के लिऐ आभार व्यक्त किया गया।
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