कटनी - कल्चुरी काल के राजा कलाप्रेमी थे। उनकी राजधानी जबलपुर के तेवर में थी। वहां पर पर्याप्त मात्रा में पत्थर उपलब्ध था लेकिन वह पत्थर शिल्पकारी के लिए सही नहीं था। इसी के चलते कल्चुरी राजाओं ने कटनी के कारीतलाई व बिलहरी को अपना कला केन्द्र बनाया। कटनी के सेंड स्टोन पर बिलहरी व कारीतलाई में कलाकृतियों का निर्माण कराया जाता था और यहीं से किलों, मंदिरों आदि को सजाने का कार्य किया जाता था। कल्चुरी शासन के बाद से एक लंबा समय बीता और उस दौरान जिले के पत्थर का उपयोग सिर्फ चीप, बोल्डर, गिट्टी के रूप में रह गया था। अब एक बार फिर से सदियों बाद पत्थरों पर कला का इतिहास स्टोन आर्ट फेेस्टीवल आधारशिला के रूप में दोहराया जा रहा था। अपने संस्मरण को साझा करते हुए यह बात जिले के वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र सिंह ने कही।
उनका कहना है कि वर्ष 1867 में जिले में रेल लाइन डालने का काम प्रारंभ हुआ था। उस दौरान खनिज व वनोपज के दो कारोबार सामने आए और व्यापार प्रारंभ हुआ। कटनी में चूना पत्थर व चीप पत्थर सबसे पुराना कारोबार है। बाद में चूना पत्थर का उपयोग सीमेंट बनाने में होने लगा तो पत्थर से चीप, बोल्डर, गिट्टी, बजरी का व्यापार शुरू हुआ। कटनी का पत्थर भवन निर्माण के लिए दूर-दूर तक जाता था और इसके लिए मुड़वारा स्टेशन के पास कारोबारियों ने ठिकाना बनाया था और वहीं से पत्थर देश के अलग-अलग स्थानों पर रेलवे के जरिए भेजा था।
साहित्यकार श्री सिंह का कहना है कि जिला प्रशासन की पहल से एक बार फिर से पत्थरों को कलात्मक रूप देने का कार्य प्रारंभ किया गया है। मकान में, मकान के बाहर, बगीचों, चौराहों में साज सज्जा के लिए कटनी के पत्थर पर नक्काशी कर प्रतिमाएं व कलाकृतियां लगाने का कार्य प्रारंभ हुआ है। जिला प्रशासन ने शिल्पकारी को बढ़ावा देने के लिए देशभर के कलाकारों को एक स्थान पर एकत्र करने का जो प्रयास किया है, उससे न सिर्फ जिले के पत्थर की देशभर में उपयोगिता बढ़ेगी बल्कि दाम बढ़ने के साथ कारीगरों व युवाओं के लिए रोजगार भी सृजित होंगे।
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