जब भ्रष्टाचार कर अरबों की संपत्ति अर्जित की जा रही होती है तब किसी को यह सब होता हुआ नजर नहीं आता। रकम भी इतनी डकार जाते हैं कि आम आदमी सोचता है कि ईमानदारी से सात जन्म क्या सत्तर जन्म में भी इतनी संपत्ति नहीं बनाई जा सकती है। 14 जुलाई को लोकायुक्त ने उमरिया जिले में पदस्थ सहायक भू सर्वे अधिकारी मुनेंद्र कुमार दुबे के यहां छापा मारा तो एक किलो सोने की ईंट और करोड़ो की संपत्ति का पता चला है। दो साल पूर्व जबलपुर में 400 करोड़ रुपए की बेनामी संपत्ति के मामले में ईओडब्लू की जांच में फंसे पीएचई से रिटायर्ड एसडीओ सुरेश उपाध्याय परिवार के पास 250 एकड़ जमीन का सत्यापन हो चुका था, यह तो मात्र उदाहरण है ऐसे कई कारनामे उजागर हुए लेकिन आज क्या स्थिति है आम जन को नही पता। यहां आम आदमी अपनी जिंदगी कुछ सौ फुट में गुजार लेता है। अब सवाल यह है क्या भ्रष्टाचारियों की संपत्ति पूरी जप्त हो जाती है या धीरे धीरे सब छूट कर वापस मिल जाता है ? इन मामलों में पारदर्शिता होनी चाहिए।भ्रष्टाचारियों के खिलाफ पहले अक्सर कार्यवाहीयां होती थी काफी समय से इसमें रुकावट देखी गई थी। कार्यवाही लगातार हो जिससे बड़े मगरमच्छ कुछ कंट्रोल में तो रहे। पर क्या ऐसा सोचना बेमानी है कि इनकी सोच पर कुछ फर्क पड़ेगा ? एक बात और समझ में नहीं आती कि भ्रष्टाचार का रुपया लोगों को पचता कैसे होगा ? क्योंकि सुना जाता है जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान। चलो मान लेते हैं कि रुपया भ्रष्टों को सर्वोपरि लगता है पचा भी लेते हैं क्योंकि इसके लिए आखिर दिन भर भरपूर मेहनत भी तो लगती है काला पीला करना पड़ता होगा। पर धन तो धन है अब सरकार तो कम से कम भ्रष्टाचारियों से पकड़े धन का सदुपयोग करे। ऐसे मामलों में कार्यवाहियां जल्द पूरी हों, जनता को बताया जाए कि फलाने भ्रष्ट ने इतना माल डकार लिया था जो अब उसके हलक से निकाल लिया गया है। यह विश्वास आम जनता के बीच कायम किया जाना चाहिए कि जो भ्रष्टाचार करेगा उसका अंजाम अच्छा तो नहीं होगा सब सार्वजनिक हो कि कहां किसने क्या क्या किया।
मुरली पृथ्यानी
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