पानी जैसी बुनियादी जरूरत के लिए गर्मियों में लोग तरस रहे होते है तो सवाल बनता है कि पानी सहेजने की कोई आदत क्यों नही बनी ? कई खबरें आ चुकी जब पानी के लिए झगड़ा झंझट पर लोग उतारू हो जाते है। एक खबर थी जब अशोकनगर में सिर्फ एक घूंट पानी के लिए एक युवक ने 70 वर्षीय वृद्ध को इसलिए कुल्हाड़ी से मार दिया क्योंकि उसने पानी देने से मना कर दिया था क्योंकि खुद वृद्ध को इससे दिन भर गुजारा करना था। सोचिये वहां उस समय का कैसा दृश्य रहा होगा ? इस तरह की खबरें भी कभी आएंगी क्या हमने सोचा था ? जलस्तर नीचे जा रहा है, कहीं हेण्डपम्प हवा उगल रहें है, नदियां नाले सूखे हुए हमें आईना दिखा रहें होते हैं ऐसे में लोगों को कैसे पर्याप्त पानी मिलेगा यह बड़ी चुनौती है। नर्मदा का पानी दस साल से ज्यादा समय के बाद भी कटनी नहीं पहुँच पाया है बस आश्वासन और बीच बीच में मंत्रियों द्वारा निरीक्षण करते ही देखने को मिला हैं। अब सबकुछ मानसून पर निर्भर कर रहा है इसमें देरी और कमी इस चुनौती को बढ़ाता ही जाएगा। केंद्रीय भूजल बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार अगले 10 साल में उत्तर पश्चिम भारत में भूजल 100 मीटर और गिर सकता है रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल भूजल स्तर 51 सेंटीमीटर की दर से गिर रहा है। यह आंकड़े नही प्रकर्ति के दोहन का नतीजा है, इससे डर लगना चाहिए क्योंकि अगर पानी ही नहीं होगा तो फिर जीवन कैसा ? पानी सहेजना सब अपनी जिम्मेदारी समझे, मैं पानी का बिल्कुल अपवय नही करता जरूरत से कम इस्तेमाल करता हूँ इसलिए यह कह पा रहा हूँ कि बूंद बूंद की कद्र करनी है। बाकी कैसे लोगों का भविष्य में काम चले इसके लिए व्यापक स्तर पर संसाधनों का प्रयोग कर पानी को रोकने सहेजने का बंदोबस्त किया जाना चाहिए बजाए इसके कि स्थिति खराब हो तब प्रयास हों। यह हमारी प्राथमिकता में शामिल हो। शहर में वॉटर हार्वेस्टिंग के प्रति लोग उदासीन है जबकि यह बहुत ही उपयोगी है। जो लोग बोरिंग से भूमिगत जल का दोहन करतें हैं उनके लिये तो अवश्य ही हार्वेस्टिंग अनिवार्य हो।
मुरली पृथ्यानी
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