कटनी - शहर का एक्यूआई औसतन 300 से अधिक पाया गया है। जोकि एयर क्वालिटी इन्डेक्स में पुअर श्रेणी में माना जाता है। कटनी में वायु प्रदूषण के लिये मुख्य रुप से 70 प्रतिशत सड़क और वातावरण की धूल (डस्टी) प्रमुख कारण हैं। धूल प्रदूषण के नियंत्रण के उपाय अपनाकर कटनी शहर की परिवेशीय वायु की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है। इस आशय के निर्णय कलेक्टर शशिभूषण सिंह की अध्यक्षता में सम्पन्न शहर के वायु प्रदूषण में नियंत्रण और जलवायु सुधार के लिये रणनीति तैयार करने संबंधी बैठक में लिये गये। इस मौके पर आयुक्त नगर निगम सतेन्द्र धाकरे, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. प्रदीप मुढि़या, सिविल सर्जन डॉ. यशवंत वर्मा, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक डॉ. आलोक जैन, महामारी विशेषज्ञ डॉ. राशि गुप्ता, डॉ. समीर सिंघई, सभी बीएमओ, जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला बाल विकास नयन सिंह भी उपस्थित थे।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक डॉ. आलोक जैन ने बताया कि कटनी शहर में वायु प्रदूषण के लिये धूल का प्रदूषण 70 प्रतिशत तक जिम्मेदार है। शहर में ए.क्यू.आई मापक यंत्र नगर निगम कार्यालय में स्थापित है। प्रदूषण के मानकों के अनुसार 200 ए.क्यू.आई. मॉडरेट की श्रेणी मानी जाती है। लेकिन इससे ऊपर पुअर की श्रेणी होती है। कटनी शहर की परिवेशीय वायु की गुणवत्ता 300 औसतन है। इसे कम करने सड़कों एवं वातावरण के धूल प्रदूषण को नियंत्रित करने की जरुरत है। आयुक्त नगर निगम सतेन्द्र धाकरे ने बताया कि शहर के चौराहों, डिवाईडरों एवं मुख्य सड़कों के किनारे पर धूल प्रदूषण रोकने पानी का छिड़काव किया जा रहा है। सड़क किनारे या निर्माण स्थल पर गिट्टी, रेत, मिट्टी या अन्य निर्माण सामग्री को खुला संग्रहित करने पर भी प्रतिबंध लगाया जायेगा और नागरिकों से भी अपील की जायेगी। बिल्डिंग मटेरियल को खुला छोड़ने, कार्यस्थल पर प्रदूषण करने पर जुर्माने का भी प्रावधान किया जायेगा।
कलेक्टर ने कहा कि सम्पूर्ण जिले में निषेधाज्ञा आदेश जारी कर खेतों के अवशेष, नरवाई इत्यादि जलाने पर सख्त प्रतिबंध लगाया गया है। उल्लंघन पर जुर्माने की कार्यवाही करें। शहरीय क्षेत्र में सड़कों के किनारे के खुले भागों पर धूल नियंत्रण के लिये पानी का छिड़काव करें और स्थाई निदान के लिये पेवर ब्लॉक बिछाने या ग्रीन पैच विकसित करने की योजना बनायें। उन्होने कहा कि शहर के आस-पास की खदानों में प्रदूषण नियंत्रण और सुरक्षा के मानदण्डों का सख्ती से पालन करायें। प्रदूषण नियंत्रण के अधिकारी औद्योगिक क्षेत्रों में भी प्रदूषण नियंत्रण पर सतत् निगाह रखें। कलेक्टर ने कहा कि शहर के व्यवसायिकों और दुकानदारों को प्रोत्साहित करें कि वे अपने प्रतिष्ठान के सड़क किनारे के खुले भाग पर हरितिमा का विकास करें और धूल प्रदूषण नहीं होने दें।
महामारी विशेषज्ञ ने डॉ. राशि गुप्ता ने बताया कि धूल प्रदूषण से श्वसन संबंधी अस्थ्मा सहित कई बीमारियां होकर फेफड़े कमजोर हो जाते हैं। धूल प्रदूषण से फेफड़ों में संक्रमण और कोविड-19 के संक्रमण की संभावनायें भी अत्याधिक बढ़ती हैं। शीतकाल में वायु के भारी होने के फलस्वरुप धूल के कण सरफेस से ज्यादा दूर नहीं जा पाते। इसलिये शीतकाल में धूल प्रदूषण का खतरा बढ़ जाता है।
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