( मुरली पृथ्यानी ) दो ही तो पक्ष देखें है एक अच्छा होता है एक बुरा। दिन है तो दूसरा पक्ष रात है, चित है तो दूसरी तरफ पट है। एक आस्तिक है एक नास्तिक। कोई विध्वंस सोच सकता है कोई भलाई। कोई किसी के दुख में रोए कोई सुख में साथ होता है। कहीं अमीरी कहीं गरीबी, कहीं महल कहीं झोपड़े। औरत है तो मर्द है, प्यार भी है तो तकरार भी। उजला भी है स्याह भी है मतलब दो पक्ष हैं ही हैं। कोई सोचे सब एक पक्ष के बारे में ही सोचे तो यह असंभव है या हर किसी मे एक पक्ष ही हावी रहता है तो यह बात भी गलत ही है। बात कहने का उद्देश्य बस इतना है कि इंसानो में कभी एक पक्ष हावी रह सकता है कभी दूसरा। किसी में एक पक्ष की भी बहुता हो सकती है जैसे कोई बुरा है तो यह नहीं कि वो हमेशा बुरा ही होगा कोई अच्छा है तो हरदम अच्छा ही होगा। बहुत कुछ स्थितियों परिस्थितियों वश भी निर्धारित होता है। अब असल बात यह है कि महत्व किस पक्ष का ज्यादा होना चाहिए तो इसका सीधा जवाब यही हो सकता है कि हमेशा अच्छाई और उजले पक्ष की मांग ही हमारी प्राथमिकता में होनी चाहिए, कोई यह भी न सोचें यह उपदेश क्यों दे रहा हूँ तो यह उपदेश नहीं अभी तक के जिंदगी के तजुर्बे ने यही सिखाया है वैसे भी अगर आप भगवान ईश्वर अल्लाह गॉड को मानते होंगे तो सभी जगह से यही संदेश ही हासिल किया होगा। जिंदगी का सफर तो बहुत सीधा ही है बस देखना यह होता है कि हम मोड़ कौन कौन से मुड़ जातें हैं, मिली तो सबको एक ही जिंदगी है लोक तो सबको एक ही मिला है परलोक भी सबका एक ही तो है। इस लोक में बोई फसल तो काटनी पड़ेगी ही कोई न काट सके तो फिर दूसरी योनि में फसल काटने आ जाए परलोक तो मिलने से रहा। इस लोक में कर्मो का कोई कर्जा न रह जाए इसलिए सब अच्छा ही अच्छा हो, सबकी यही कामना हो और जिसने इस संसार में लाने की व्यवस्था की, जरा उसकी खोज खबर हो उससे मिलने की प्रीत जगे और इसको पा जाओ बस फिर क्या है इसी उद्देश्य से ही हम सभी आये है फिर सारे पक्ष इसी एकमात्र में ही रह्ते हैं हमारा फिर कुछ नहीं होता न कर्म न कर्म का बंधन।
( मुरली पृथ्यानी ) दो ही तो पक्ष देखें है एक अच्छा होता है एक बुरा। दिन है तो दूसरा पक्ष रात है, चित है तो दूसरी तरफ पट है। एक आस्तिक है एक नास्तिक। कोई विध्वंस सोच सकता है कोई भलाई। कोई किसी के दुख में रोए कोई सुख में साथ होता है। कहीं अमीरी कहीं गरीबी, कहीं महल कहीं झोपड़े। औरत है तो मर्द है, प्यार भी है तो तकरार भी। उजला भी है स्याह भी है मतलब दो पक्ष हैं ही हैं। कोई सोचे सब एक पक्ष के बारे में ही सोचे तो यह असंभव है या हर किसी मे एक पक्ष ही हावी रहता है तो यह बात भी गलत ही है। बात कहने का उद्देश्य बस इतना है कि इंसानो में कभी एक पक्ष हावी रह सकता है कभी दूसरा। किसी में एक पक्ष की भी बहुता हो सकती है जैसे कोई बुरा है तो यह नहीं कि वो हमेशा बुरा ही होगा कोई अच्छा है तो हरदम अच्छा ही होगा। बहुत कुछ स्थितियों परिस्थितियों वश भी निर्धारित होता है। अब असल बात यह है कि महत्व किस पक्ष का ज्यादा होना चाहिए तो इसका सीधा जवाब यही हो सकता है कि हमेशा अच्छाई और उजले पक्ष की मांग ही हमारी प्राथमिकता में होनी चाहिए, कोई यह भी न सोचें यह उपदेश क्यों दे रहा हूँ तो यह उपदेश नहीं अभी तक के जिंदगी के तजुर्बे ने यही सिखाया है वैसे भी अगर आप भगवान ईश्वर अल्लाह गॉड को मानते होंगे तो सभी जगह से यही संदेश ही हासिल किया होगा। जिंदगी का सफर तो बहुत सीधा ही है बस देखना यह होता है कि हम मोड़ कौन कौन से मुड़ जातें हैं, मिली तो सबको एक ही जिंदगी है लोक तो सबको एक ही मिला है परलोक भी सबका एक ही तो है। इस लोक में बोई फसल तो काटनी पड़ेगी ही कोई न काट सके तो फिर दूसरी योनि में फसल काटने आ जाए परलोक तो मिलने से रहा। इस लोक में कर्मो का कोई कर्जा न रह जाए इसलिए सब अच्छा ही अच्छा हो, सबकी यही कामना हो और जिसने इस संसार में लाने की व्यवस्था की, जरा उसकी खोज खबर हो उससे मिलने की प्रीत जगे और इसको पा जाओ बस फिर क्या है इसी उद्देश्य से ही हम सभी आये है फिर सारे पक्ष इसी एकमात्र में ही रह्ते हैं हमारा फिर कुछ नहीं होता न कर्म न कर्म का बंधन।
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