कटनी। सतगुरू पर्व परम श्रद्धेय सतगुरू सांई ईश्वरशाह साहिब जी के पावन सानिध्य में मनाया जा रहा है, सतगुरू पर्व की शुरूआत हरे माधव सोझी मेला से हुई। संतजन पर्वों उत्सवों में अपने अमृत वचन-वाणियों, सद्उपदेश के माध्यम से हमारे सोये विवेक को जगाते हैं, हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव कर आत्मीय उद्धार का पथ सहजता, सरलता से बक्शते है। हमारे जीवन में नवचेतना उत्साह उमंग का नवसंचार करते हैं परम तत्व को पाने का सुअवसर प्रदान करते हैं, भजन-कीर्तन से हमारा चित्त शुद्ध करवाते हैं जिससे शिष्य की मानसिक मलीनता निर्मल हो नाम भक्ति भजन की ओर प्रेरित होवे। सेवा के द्वारा अहम का नाश होकर तन-तन दोनों स्वस्थ चुस्त हो जाता है। सतगुरू पर्व आत्मीय उद्वार, सर्वधर्म समभाव एवं मानव सेवा के नेक संदेश देता है और अलौकिक आनंद को प्राप्त कराता है। सतगुरू अनंत अगोचर है अनमोल दातें बक्शने वाला रहबर है, सतगुरू वचन अपने ह्दय कंवल में विराजमान कर गुरूमुख साधक अनमोल दातें पाते है।
हरे माधव सोझी मेला का शुभारंभ सतगुरू सांई ईश्वरशाह साहिब जी के कर कमलों से हुआ, स्वयं की पहचान कैसे हो यह सोझी मेला में समझाया गया है। सोझी मेला में सतगुरू पातशाहियों की हम जीवनों पर हुई रहमतों, मेहर, कौतुक, उपकारी लीलाओं का वर्णन का जिक्र कर समझाया गया जिस प्रकार परमपिता परमात्मा के विधानानुसार सूर्य अपना प्रकाश स्वयं फैलाता है और अंधेरे का नाश करता है उसी प्रकार पूरण संत सतगुरू साहिबान भी जीवात्माओं के आत्मीय उद्धार के वास्ते उनके अंतर के अंधकार को दूर करते है जीवात्माओं के आत्मीय कल्याण के वास्ते कभी वचनों द्वारा, कभी स्वांग कौतुक लीलाओं के माध्यम से आंतरिक रूहानी भेद प्रकट करते हैं जिससे जीवों को असलता का भान हो, पूरण संतों के रहमतों उपकारों का जिक्र करने व सुनने से ही अंतर में शीतलता की मिठास का निज अनुभव होता है जो आध्यात्मिक पथ के लिए बेहद सहायक होते हैं। अंतर निर्मलता से ही शाश्वत् सत्य के भेद सोझी अंतर में प्रवेश होती है क्योंकि मलीय ह्दय में शाश्वत् सत्य वचन टिकते नहीं। हरे माधव सोझी मेले का उद्देश्य संगतें असलता को जानें, स्व की पहचान हो और परम चैतन्य स्वरूप परमात्मा में अभेद होने की युक्ति अनुभव होता है कि हर ओर हरि एक ही है।
हरिराया रूप पूरण संत सतगुरू प्रभु परमेश्वर के प्यारे पुत्र नाम सिमरन के भंडारी सदैव करूणा रूप धार जीवों को सोझी बक्शने धरा पटल पर अवतरित होते हैं, वे अपनी रब्बी वाणियों एवं अमृत वचनों से जब हमें सोझी बक्शते हैं तभी हमें करूणा एवं मोती माणिक का भेद पता चलता है वे जीवन मुक्त कलाओं के भेद स्वयं मौज में प्रकट करते हैं।
पूरण सतपुरूख जीव जगत के उद्वार के वास्ते स्वयं सेवा, सिमरन की वादियों से गुजर कर हमारे लिए आदर्श, मर्यादा कायम करते हैं, बाल्यकाल से हाजिरां हुजूर सतगुरू साहिबान जी अपनी सेवा छिपाकर करते रहे है। आप साहिबान जी गुरूगद्दी पर विराजमान होने के पश्चात् भी सेवादारियों का उत्साह वर्धन एवं सेवा का सलीका सिखाने हेतु अनेक बार सेवादारियों के संग कार सेवा, पादुका सेवा, साफ-सफाई सेवा, भोजन प्रसाद सेवा एवं अनेक कई सेवाएं करते हैं।
हरे माधव रूहानी बाल संस्कार के बच्चों द्वारा फन जोन एवं कैंटीन को ग्रामीण परिवेश ‘खपरैल‘ में बनाया गया है, आधुनिक चकाचौंध से दूर शुद्ध वातावरण में हाट बाजार का बेहद सुंदर चित्रण जिसने देखा सराहा। आत्म अवलोकन की युक्ति सतगुरू जी के अमृत वचनों से मिलती है नित्य नियम से सिमरन ध्यान और साध-संगत की सेवा, अपने पारिवारिक, सामाजिक, दायित्वों को निभाना भी गुरूमुख शिष्य का कर्त्तव्य है इसे निभाते हुए वह धन का सद्उपयोग करता है उसे व्यर्थ के सांसारिक वैभव एवं क्षणभंगुर सुख में खर्च नहीं करता। सद्विवेक के अनुसार धन का सद्उपयोग करना है, सत्संगति में रह जीवन संवारना है जिस उद्देश्य हेतु परमात्मा के मानव जीवन दिया उस उद्देश्य लक्ष्य को पाना है।
सतगुरू पर्व के पावन पर्व पर हरे माधव सत्संग एवं सतगुरू दर्शन का लाभ प्राप्त करने अनेक नगरों से श्रद्धालु, भक्तजन हरे माधव धाम पधारे जिनके ठहरने की व्यवस्था बाबा माधवशाह भवन, बाबा नारायणशाह भवन, सतगुरू बाबा मनोहरशाह भवन, हरे नारायण भवन, सिंधु भवन, बाबा नारायणशाह मैरिज गार्डन, बाबा आत्माराम धर्मशाला सहित अनेक सेवादारों के घरों में की गई। सतगुरू पर्व के पावन सुअवसर पर बाबा माधवशाह चिकित्सालय में निःशुल्क चिकित्सा सेवा का लाभ हजारों जरूरतमंदों ने उठाया। सायं हरे माधव सत्संग की दया-रहमत सतगुरू साहिबान जी के पावन सानिध्य में हुई, हरे माधव सत्संग में सतगुरू साहिबान जी ने फरमाया -
सतगुरू पर्व का समूरा सच्चा महातम है - रचना, बिछात, आकाश, धरती, हवाएं सब शाश्वत प्रकाश से उत्पन्न होती हैं। शाश्वत प्रकाश ही है जो सूरज को रोशनी, ऊर्जा, धरती को असीम धीरज, आकाश को गहबी सूक्ष्मता देता है पर जो मालिक रचना के हर एक कण को इतनी ऊर्जा, ताकत देकर बैठा है उस पर परम शक्ति को न्यारा राम, हरे माधव कहते हैं, वेदों-उपनिषदों में उसे ब्रम्ह कह दिया। भाव एक ही संजीवनी दात प्राप्त कर अरूप की पहचान करने का पर्व है सतगुरू पर्व, अर्थात् सत्य को अपने जीवन में ढालने का पर्व। पूर्ण संत स्थिर प्रज्ञावान अर्श के सौदागर अर्शी ताकत वाले होते हैं उनके अमृत तत्व नाम की सच्ची सेवा (भजन-बंदगी) करके अंतःकरण से आत्मा शुद्ध हो जाती है, नीह प्रीत वाली भक्ति सर्वोत्तम भक्ति है जिसका भेद पूर्ण संतजन अपने सत्संगों में देते हैं।
पूरण संत सतगुरू ही परमात्मा के प्रकट रूप है ‘‘सदा हुजूर दूर न जाणे‘‘ सतगुरू सोझी से अंदर का तिमिर अज्ञान दूर होता है, पूरण सतगुरू की संगति चरणों (वचनों) में प्रेम-प्रीत विश्वास पर शिरोधार्य करेंगे तब प्रभु मालिक के अदृश्य रूप की अनुभूति होगी, जब इस रूहानी प्रेम के रंग में रंगे तब जो गुप्त था वह प्रगट हो गया, घट अंदर जो अमृत का खजाना भरा है वह प्राप्त हो गया। प्रेमाभक्ति का रंग जिन साधकों पर चढ़ा और श्रीचरणों में नीह लौ रमाई वे एकत्व में समा गये। उन्हें किसी के निन्दा तानों की परवाह नहीं होती वे तो आत्मीय मस्ती में में मग्न करते हैं । प्रेमाभक्ति का आत्मीय रंग जिसके ऊपर चढ़ता है वह उतरता नहीं। गुरूवाणी में समझाया गया है कि ऐ गुरूमुखों। अगर तुम्हें रूहानी राह में आगे बढ़ना है तो सर्वप्रथम अपनी खुदी अहम का त्याग करो तभी तुम सतगुरू (हरि) प्रेम का अमृत पी सकोगे। सतगुरू सांई ईश्वरशाह साहिब जी फरमाते हैं -
खुदी को मिटाओ, खुदा को पाओ, खुदा की खुदाई शब्द से ही जानो
खुदी जिसने छोड़ी खुदा को है पाया, आप भुलाके आपन पाया
निर्मल जन हि ऐह पद पावे, निज घर में होऐ तांका वासा
दास ईश्वर तो सांच है कहता, हर पद में निर्मल ज्ञान है कहता
जब तक अंतर से खुदी अहंकार नहीं गया तब तक अंतर में प्रकाश नहीं होता जब शिष्य सतगुरू प्रभु की युक्ति से नामभक्ति सेवा करता है तो उसके अंतर की मलीनता अहंकार के आवरण हट जाते हैं, परम प्रकाश का सूर्यादय हो जाता है अंतर में आत्म निजता का आनंद आ जाता है, फिर छूट जाता है आवागमन का चक्र ‘क्या आनंद है क्या है मस्ती, बताई न जाये‘ जिस प्रकार गूंगा गुड़ खाने के बाद उसकी मिठास की बात नहीं बता पाता यह तो वही जानते हैं जिन्होंने उस मिठास को अनुभव किया है वह अवर्णनीय आनंद है इसका वर्णन करना कठिन कार्य है। सतगुरू प्रभु से रूहानी प्रेम, दुर्लभ दात जो आज प्रत्यक्ष सुलभ है सर्वप्रथम पात्रता की आवश्यकता है।
अनेकों नगरों से पधारे श्रद्धालु - सतगुरू पर्व पर हरे माधव सत्संग एवं सतगुरू दर्शन का लाभ प्राप्त करने नार्वे, कोल्हापुर, सांगली, मिरज, पनवेल, उल्हास नगर, भुसावल, अकोला, अमरावती, नागपुर, गोंदिया, रायगढ़, बिलासपुर, रायपुर, तिल्दा, राजिम, धमतरी, शहडोल, बुढ़ार, उमरिया, सतना, रीवा, नागौद, कानपुर, झांसी, महोबा, छिंदवाड़ा, छतरपुर, दमोह, सागर, बीना, भोपाल, इंदौर, कोटा, अहमदाबाद, रायसेन, जबलपुर, सिवनी, बालाघाट, राजनांदगांव, नैनपुर, रानीपुर सहित अनेकों नगरों से पधारे।
सतगुरू पर्व के सुअवसर पर पधारे - श्री एस.बी.सिंह. कलेक्टर, संदीप मिश्रा एडीशनल एस.पी., आर.पी.सिंह आयुक्त नगर पालिक निगम, एस.के.राय डी.एफ.ओ., एच.एस.ठाकुर कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग, मनप्रणन प्रजापति नगर पुलिस अधीक्षक, एच. के. तिवारी रीजनल ऑफिसर, संजय दुबे टी.आई. माधव नगर, विपिन सिंह टी.आई. कुठला, आदेश जैन इंजीनियर, रामचंद्र रीझवानी, दादा ताराचंद पेसवानी आदि की उपस्थिति रही।
हरे माधव सोझी मेला का शुभारंभ सतगुरू सांई ईश्वरशाह साहिब जी के कर कमलों से हुआ, स्वयं की पहचान कैसे हो यह सोझी मेला में समझाया गया है। सोझी मेला में सतगुरू पातशाहियों की हम जीवनों पर हुई रहमतों, मेहर, कौतुक, उपकारी लीलाओं का वर्णन का जिक्र कर समझाया गया जिस प्रकार परमपिता परमात्मा के विधानानुसार सूर्य अपना प्रकाश स्वयं फैलाता है और अंधेरे का नाश करता है उसी प्रकार पूरण संत सतगुरू साहिबान भी जीवात्माओं के आत्मीय उद्धार के वास्ते उनके अंतर के अंधकार को दूर करते है जीवात्माओं के आत्मीय कल्याण के वास्ते कभी वचनों द्वारा, कभी स्वांग कौतुक लीलाओं के माध्यम से आंतरिक रूहानी भेद प्रकट करते हैं जिससे जीवों को असलता का भान हो, पूरण संतों के रहमतों उपकारों का जिक्र करने व सुनने से ही अंतर में शीतलता की मिठास का निज अनुभव होता है जो आध्यात्मिक पथ के लिए बेहद सहायक होते हैं। अंतर निर्मलता से ही शाश्वत् सत्य के भेद सोझी अंतर में प्रवेश होती है क्योंकि मलीय ह्दय में शाश्वत् सत्य वचन टिकते नहीं। हरे माधव सोझी मेले का उद्देश्य संगतें असलता को जानें, स्व की पहचान हो और परम चैतन्य स्वरूप परमात्मा में अभेद होने की युक्ति अनुभव होता है कि हर ओर हरि एक ही है।
हरिराया रूप पूरण संत सतगुरू प्रभु परमेश्वर के प्यारे पुत्र नाम सिमरन के भंडारी सदैव करूणा रूप धार जीवों को सोझी बक्शने धरा पटल पर अवतरित होते हैं, वे अपनी रब्बी वाणियों एवं अमृत वचनों से जब हमें सोझी बक्शते हैं तभी हमें करूणा एवं मोती माणिक का भेद पता चलता है वे जीवन मुक्त कलाओं के भेद स्वयं मौज में प्रकट करते हैं।
पूरण सतपुरूख जीव जगत के उद्वार के वास्ते स्वयं सेवा, सिमरन की वादियों से गुजर कर हमारे लिए आदर्श, मर्यादा कायम करते हैं, बाल्यकाल से हाजिरां हुजूर सतगुरू साहिबान जी अपनी सेवा छिपाकर करते रहे है। आप साहिबान जी गुरूगद्दी पर विराजमान होने के पश्चात् भी सेवादारियों का उत्साह वर्धन एवं सेवा का सलीका सिखाने हेतु अनेक बार सेवादारियों के संग कार सेवा, पादुका सेवा, साफ-सफाई सेवा, भोजन प्रसाद सेवा एवं अनेक कई सेवाएं करते हैं।
हरे माधव रूहानी बाल संस्कार के बच्चों द्वारा फन जोन एवं कैंटीन को ग्रामीण परिवेश ‘खपरैल‘ में बनाया गया है, आधुनिक चकाचौंध से दूर शुद्ध वातावरण में हाट बाजार का बेहद सुंदर चित्रण जिसने देखा सराहा। आत्म अवलोकन की युक्ति सतगुरू जी के अमृत वचनों से मिलती है नित्य नियम से सिमरन ध्यान और साध-संगत की सेवा, अपने पारिवारिक, सामाजिक, दायित्वों को निभाना भी गुरूमुख शिष्य का कर्त्तव्य है इसे निभाते हुए वह धन का सद्उपयोग करता है उसे व्यर्थ के सांसारिक वैभव एवं क्षणभंगुर सुख में खर्च नहीं करता। सद्विवेक के अनुसार धन का सद्उपयोग करना है, सत्संगति में रह जीवन संवारना है जिस उद्देश्य हेतु परमात्मा के मानव जीवन दिया उस उद्देश्य लक्ष्य को पाना है।
सतगुरू पर्व के पावन पर्व पर हरे माधव सत्संग एवं सतगुरू दर्शन का लाभ प्राप्त करने अनेक नगरों से श्रद्धालु, भक्तजन हरे माधव धाम पधारे जिनके ठहरने की व्यवस्था बाबा माधवशाह भवन, बाबा नारायणशाह भवन, सतगुरू बाबा मनोहरशाह भवन, हरे नारायण भवन, सिंधु भवन, बाबा नारायणशाह मैरिज गार्डन, बाबा आत्माराम धर्मशाला सहित अनेक सेवादारों के घरों में की गई। सतगुरू पर्व के पावन सुअवसर पर बाबा माधवशाह चिकित्सालय में निःशुल्क चिकित्सा सेवा का लाभ हजारों जरूरतमंदों ने उठाया। सायं हरे माधव सत्संग की दया-रहमत सतगुरू साहिबान जी के पावन सानिध्य में हुई, हरे माधव सत्संग में सतगुरू साहिबान जी ने फरमाया -
सतगुरू पर्व का समूरा सच्चा महातम है - रचना, बिछात, आकाश, धरती, हवाएं सब शाश्वत प्रकाश से उत्पन्न होती हैं। शाश्वत प्रकाश ही है जो सूरज को रोशनी, ऊर्जा, धरती को असीम धीरज, आकाश को गहबी सूक्ष्मता देता है पर जो मालिक रचना के हर एक कण को इतनी ऊर्जा, ताकत देकर बैठा है उस पर परम शक्ति को न्यारा राम, हरे माधव कहते हैं, वेदों-उपनिषदों में उसे ब्रम्ह कह दिया। भाव एक ही संजीवनी दात प्राप्त कर अरूप की पहचान करने का पर्व है सतगुरू पर्व, अर्थात् सत्य को अपने जीवन में ढालने का पर्व। पूर्ण संत स्थिर प्रज्ञावान अर्श के सौदागर अर्शी ताकत वाले होते हैं उनके अमृत तत्व नाम की सच्ची सेवा (भजन-बंदगी) करके अंतःकरण से आत्मा शुद्ध हो जाती है, नीह प्रीत वाली भक्ति सर्वोत्तम भक्ति है जिसका भेद पूर्ण संतजन अपने सत्संगों में देते हैं।
पूरण संत सतगुरू ही परमात्मा के प्रकट रूप है ‘‘सदा हुजूर दूर न जाणे‘‘ सतगुरू सोझी से अंदर का तिमिर अज्ञान दूर होता है, पूरण सतगुरू की संगति चरणों (वचनों) में प्रेम-प्रीत विश्वास पर शिरोधार्य करेंगे तब प्रभु मालिक के अदृश्य रूप की अनुभूति होगी, जब इस रूहानी प्रेम के रंग में रंगे तब जो गुप्त था वह प्रगट हो गया, घट अंदर जो अमृत का खजाना भरा है वह प्राप्त हो गया। प्रेमाभक्ति का रंग जिन साधकों पर चढ़ा और श्रीचरणों में नीह लौ रमाई वे एकत्व में समा गये। उन्हें किसी के निन्दा तानों की परवाह नहीं होती वे तो आत्मीय मस्ती में में मग्न करते हैं । प्रेमाभक्ति का आत्मीय रंग जिसके ऊपर चढ़ता है वह उतरता नहीं। गुरूवाणी में समझाया गया है कि ऐ गुरूमुखों। अगर तुम्हें रूहानी राह में आगे बढ़ना है तो सर्वप्रथम अपनी खुदी अहम का त्याग करो तभी तुम सतगुरू (हरि) प्रेम का अमृत पी सकोगे। सतगुरू सांई ईश्वरशाह साहिब जी फरमाते हैं -
खुदी को मिटाओ, खुदा को पाओ, खुदा की खुदाई शब्द से ही जानो
खुदी जिसने छोड़ी खुदा को है पाया, आप भुलाके आपन पाया
निर्मल जन हि ऐह पद पावे, निज घर में होऐ तांका वासा
दास ईश्वर तो सांच है कहता, हर पद में निर्मल ज्ञान है कहता
जब तक अंतर से खुदी अहंकार नहीं गया तब तक अंतर में प्रकाश नहीं होता जब शिष्य सतगुरू प्रभु की युक्ति से नामभक्ति सेवा करता है तो उसके अंतर की मलीनता अहंकार के आवरण हट जाते हैं, परम प्रकाश का सूर्यादय हो जाता है अंतर में आत्म निजता का आनंद आ जाता है, फिर छूट जाता है आवागमन का चक्र ‘क्या आनंद है क्या है मस्ती, बताई न जाये‘ जिस प्रकार गूंगा गुड़ खाने के बाद उसकी मिठास की बात नहीं बता पाता यह तो वही जानते हैं जिन्होंने उस मिठास को अनुभव किया है वह अवर्णनीय आनंद है इसका वर्णन करना कठिन कार्य है। सतगुरू प्रभु से रूहानी प्रेम, दुर्लभ दात जो आज प्रत्यक्ष सुलभ है सर्वप्रथम पात्रता की आवश्यकता है।
अनेकों नगरों से पधारे श्रद्धालु - सतगुरू पर्व पर हरे माधव सत्संग एवं सतगुरू दर्शन का लाभ प्राप्त करने नार्वे, कोल्हापुर, सांगली, मिरज, पनवेल, उल्हास नगर, भुसावल, अकोला, अमरावती, नागपुर, गोंदिया, रायगढ़, बिलासपुर, रायपुर, तिल्दा, राजिम, धमतरी, शहडोल, बुढ़ार, उमरिया, सतना, रीवा, नागौद, कानपुर, झांसी, महोबा, छिंदवाड़ा, छतरपुर, दमोह, सागर, बीना, भोपाल, इंदौर, कोटा, अहमदाबाद, रायसेन, जबलपुर, सिवनी, बालाघाट, राजनांदगांव, नैनपुर, रानीपुर सहित अनेकों नगरों से पधारे।
सतगुरू पर्व के सुअवसर पर पधारे - श्री एस.बी.सिंह. कलेक्टर, संदीप मिश्रा एडीशनल एस.पी., आर.पी.सिंह आयुक्त नगर पालिक निगम, एस.के.राय डी.एफ.ओ., एच.एस.ठाकुर कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग, मनप्रणन प्रजापति नगर पुलिस अधीक्षक, एच. के. तिवारी रीजनल ऑफिसर, संजय दुबे टी.आई. माधव नगर, विपिन सिंह टी.आई. कुठला, आदेश जैन इंजीनियर, रामचंद्र रीझवानी, दादा ताराचंद पेसवानी आदि की उपस्थिति रही।
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