कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) यह 1996-97 की बात है जब परम् श्रद्धेय सतगुरु बाबा ईश्वर शाह जी गद्दी पर विराजमान नही थे, उनका नाम ईश्वर था और लोग उन्हें प्यार से ईशु कहकर संबोधित करते थे. यह मेरा सौभाग्य था कि उन दिनों मुझे उनके साथ समय व्यतीत करने का मौका मिला था, शहर की घंटाघर स्थित एक मार्केट में एक अकाउंटेंट के कार्यालय में अकसर दोपहर के खाने के बाद उनके साथ बातें होती थी.
उनकी बातों में तभी से आध्यात्म था, संतो - महापुरुषों की बातें करने में उन्हें खूब आनंद आता था दोहे पंक्तियां उन्हें बखूबी याद रहते थे. उस समय मेरी रूचि आध्यात्मिकता में थोड़ी कम थी इसलिए उनसे जितना सुन सकते थे सुन लेते थे और फिर उन्हें कहते अरे तुम तो संत आदमी हो. बस फिर क्या था ? तब उस पूरी मार्केट के लोग भी उन्हें मजाक मजाक में संत कहकर पुकारने लगे थे. उनका स्वभाव ही ऐसा था कि वह मुस्कुराने लगते थे.
मुझे याद है उनके पास कोई वाहन साइकल आदि नही थी, माधवनगर से शहर की ओर अपने ही ध्यान में पैदल ही चल देते थे. किसी से यह नही कहते थे कि मुझे साथ ले चलो, अगर कोई परिचित देख लेता तो उन्हें साथ ले लेता था. उन दिनों वे अकाउंट्स सीखने का काम करते थे पर में अच्छी तरह से जानता था कि उनका मन संसार की बातों की बजाये आध्यात्मिक बातों में ही लगता था. उनका ऐसा भोलापन देख में चिंतित भी होता था कि आज के जमाने में कैसे कोई इस तरह से इस संसार में निर्वाह कर सकता है ? तब अपनी यह चिन्ता में अपनी माँ से व्यक्त करता था कि कैसे आज के इस युग में कोई चल पायेगा जिसे संसार की बातों का जरा भी ध्यान नही है, वो कहती भगवान उनक़ी देख रेख करेगा क्योंकि वह आज के युग में भक्ति मार्ग पर चल रहे है.
उनके साथ समय व्यतीत करना मुझे अच्छा लगता था, बाद में 1998 में मेरी नौकरी शहडोल जिले की धनपुरी में एक कंपनी में लग गई ओर में वहां चला गया, इस दौरान कटनी आने पर उनसे मुलाकात होती थी. इस तरह समय बीतता गया बाद में एक दिन ऐसा आया जब पता चला कि वो माधवनगर के विश्व विख्यात बाबा माधव शाह बाबा नारायण शाह जी की गद्दी पर विराजमान हो चुके है. यह हमारे कुलगुरु थे तब मुझे बहुत खुशी मिली थी क्योंकि वह इसके हक़दार थे लेकिन इसके लिए उन्होंने कुर्बानी दी सिर्फ़ इसलिए कि लोगो का भला किया सके जिसकी चाहत शुरू से उनके अन्दर थी.
अब बाबा ईश्वर शाह के रुप में सतगुरु का उदय हो चुका था जो आये हुए भक्तों को भक्ति का मार्ग बतला रहे है, मनुष्य के व्याव्हारिक जीवन में सुधार लाने के प्रयास कर रहे है जिससे लोगो को इस भौतिक जगत में सुंदर ढंग से रहना आ जाये. आज वह हमे सत्संग, सुमिरन, सेवा का महत्व समझा रहे है क्योंकि इनके बिना भक्ति सार्थक नही समझी जाती है. इनका जीवन कोई साधारण जीवन नही बल्कि संसार में रहते हुए भी संसार में लिप्त नहीं रहने जैसा था. आज जब उनकी रहमत भरी नजर मुझ पर पढ़ जाती है तो जैसे रोम रोम खिल उठता है.
आज सतगुरु बाबा ईश्वर शाह जी पूर्ण सत्य से पर्दा उठाकर भक्तों को धन्य कर रहे है. हमे यह भी समझना होगा कि यह सतगुरु शरीर नही बल्कि वह चेतन सत्ता है जो इन्हे क्रियाशील बनाती है, सत्य का वह ज्ञान है जो उस शरीर के माध्यम से प्रवाहित होता है. आईये हम सभी उनके आये हुए आदेशों का अक्षरश पालन करे जिससे अच्छा वातावरण स्थापित हो सके, भाईचारा बढ़े और हमारे माधवनगर कटनी का मान चारों ओर फैल सके.
उनकी बातों में तभी से आध्यात्म था, संतो - महापुरुषों की बातें करने में उन्हें खूब आनंद आता था दोहे पंक्तियां उन्हें बखूबी याद रहते थे. उस समय मेरी रूचि आध्यात्मिकता में थोड़ी कम थी इसलिए उनसे जितना सुन सकते थे सुन लेते थे और फिर उन्हें कहते अरे तुम तो संत आदमी हो. बस फिर क्या था ? तब उस पूरी मार्केट के लोग भी उन्हें मजाक मजाक में संत कहकर पुकारने लगे थे. उनका स्वभाव ही ऐसा था कि वह मुस्कुराने लगते थे.
मुझे याद है उनके पास कोई वाहन साइकल आदि नही थी, माधवनगर से शहर की ओर अपने ही ध्यान में पैदल ही चल देते थे. किसी से यह नही कहते थे कि मुझे साथ ले चलो, अगर कोई परिचित देख लेता तो उन्हें साथ ले लेता था. उन दिनों वे अकाउंट्स सीखने का काम करते थे पर में अच्छी तरह से जानता था कि उनका मन संसार की बातों की बजाये आध्यात्मिक बातों में ही लगता था. उनका ऐसा भोलापन देख में चिंतित भी होता था कि आज के जमाने में कैसे कोई इस तरह से इस संसार में निर्वाह कर सकता है ? तब अपनी यह चिन्ता में अपनी माँ से व्यक्त करता था कि कैसे आज के इस युग में कोई चल पायेगा जिसे संसार की बातों का जरा भी ध्यान नही है, वो कहती भगवान उनक़ी देख रेख करेगा क्योंकि वह आज के युग में भक्ति मार्ग पर चल रहे है.
उनके साथ समय व्यतीत करना मुझे अच्छा लगता था, बाद में 1998 में मेरी नौकरी शहडोल जिले की धनपुरी में एक कंपनी में लग गई ओर में वहां चला गया, इस दौरान कटनी आने पर उनसे मुलाकात होती थी. इस तरह समय बीतता गया बाद में एक दिन ऐसा आया जब पता चला कि वो माधवनगर के विश्व विख्यात बाबा माधव शाह बाबा नारायण शाह जी की गद्दी पर विराजमान हो चुके है. यह हमारे कुलगुरु थे तब मुझे बहुत खुशी मिली थी क्योंकि वह इसके हक़दार थे लेकिन इसके लिए उन्होंने कुर्बानी दी सिर्फ़ इसलिए कि लोगो का भला किया सके जिसकी चाहत शुरू से उनके अन्दर थी.
अब बाबा ईश्वर शाह के रुप में सतगुरु का उदय हो चुका था जो आये हुए भक्तों को भक्ति का मार्ग बतला रहे है, मनुष्य के व्याव्हारिक जीवन में सुधार लाने के प्रयास कर रहे है जिससे लोगो को इस भौतिक जगत में सुंदर ढंग से रहना आ जाये. आज वह हमे सत्संग, सुमिरन, सेवा का महत्व समझा रहे है क्योंकि इनके बिना भक्ति सार्थक नही समझी जाती है. इनका जीवन कोई साधारण जीवन नही बल्कि संसार में रहते हुए भी संसार में लिप्त नहीं रहने जैसा था. आज जब उनकी रहमत भरी नजर मुझ पर पढ़ जाती है तो जैसे रोम रोम खिल उठता है.
आज सतगुरु बाबा ईश्वर शाह जी पूर्ण सत्य से पर्दा उठाकर भक्तों को धन्य कर रहे है. हमे यह भी समझना होगा कि यह सतगुरु शरीर नही बल्कि वह चेतन सत्ता है जो इन्हे क्रियाशील बनाती है, सत्य का वह ज्ञान है जो उस शरीर के माध्यम से प्रवाहित होता है. आईये हम सभी उनके आये हुए आदेशों का अक्षरश पालन करे जिससे अच्छा वातावरण स्थापित हो सके, भाईचारा बढ़े और हमारे माधवनगर कटनी का मान चारों ओर फैल सके.
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