कटनी। मध्य प्रदेश का कटनी जिला भारतवर्ष के भौगोलिक केन्द्र में स्थित होने के कारण बेशकीमती खनिज सम्पदा के प्रचुर भंडारण सहित जल संपदा की दृष्टि से महत्वपूर्ण जिला है। यही वजह है कि स्टील ऑथारिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) द्वारा अपने इस्पात उद्योगों हेतु आवश्यक गुणवत्तापूर्ण कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल किये जाने वाले चूना पत्थर (लाईम स्टोन)की खदानें यहां के ग्राम कुटेश्वर में स्थापित की गई थीं। यह कोई आधी शताब्दी पूर्व के आसपास का दौर था। इससे बरसों पूर्व इसी जिले के अंतर्गत चूना पत्थर से ही सीमेंट बनाने वाली बड़ी औद्योगिक कम्पनी एसीसी यहां अपनी खदानें और उद्योग स्थापित कर चुकी थी। वहीं इसके बाद भी जिले में खनिज आधारित कई छोटे-बड़े उद्योगों की स्थापना का जारी दौर वर्तमान तक निरंतर चला आ रहा है। इसके तहत निकट भविष्य मे मार्बल, ताप बिजली घर, सीमेंट, लोहा जैसे कई उद्योग संयंत्रों के जिले में स्थापित होने की प्रक्रिया चल रही है। नतीजतन जिले में उद्योगों की स्थापना के लिए हजारों एकड़ उपजाऊ कृषि भूमि का गैरकानूनी एवं अवैध रूप से बलपूर्वक अधिग्रहण किया जा रहा है। जिससे संपूर्ण जिले में मजदूरों-किसानों के परंपरागत जीवन एवं अजीविका का संकट खड़ा हो गया है। मजदूर-किसान रोजगार-जिंदगी की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। उद्योगों की स्थापना के पूर्व मजदूर-किसान एवं क्षेत्रीय जनता के जीवन की रक्षा, पुनर्वास करना सरकार का संवैधानिक दायित्व है लेकिन संपूर्ण जिले में बिना पुनर्वास की योजना के मजदूरों-किसानों को उनके पीढ़ी दर पीढ़ी के आजीविका संसाधनों से जबरिया बेदखल कर बलपूर्वक उजाड़े जाने का दौर थमने का नाम ही नहीं ले रहा है।
स्टील ऑथारिटी ऑफ इंडिया लि. (सेल) की कुटेश्वर लाईम स्टोन माइन्स का उदाहरण ही देखें तो आज अपने आपको देश का महारत्न प्रचारित करने वाले इस उद्योग के रॉ मटेरियल डिविजन के अंतर्गत आने वाली खदानों में अपने स्थापना काल से ही केंद्रीय श्रमिक कानूनों का पालन नहीं किया जा रहा। इन खदानों की स्थापना हेतु क्षेत्रीय किसानों की अधिग्रहित भूमि का भी आज तक पर्याप्त मुआवजा, जमीन के बदले नौकरी एवं समुचित पुनर्वास आदि योजनाओं को लगभग 40 वर्षों में भी पूरा नहीं किया गया है। स्टील ऑथारिटी ऑफ इंडिया लि. में 17.01.1993 से ठेका प्रथा प्रतिबंधित किये जाने के बावजूद माइन्स में आज भी ठेका प्रथा से कार्य करवाया जा रहा है। न्यूनतम वेतन अधिनियम के तहत न्यूनतम वेतन ऑथारिटी के निर्णय 02.12.2003 के अनुसार सेल की कुटेश्वर माइन्स में निर्धारित न्यूनतम मजदूरी का भुगतान भी नहीं किया जाना अमानवीय एवं दंडनीय अपराध है। सेल भारत सरकार की सार्वजनिक क्षेत्र की भारी-भरकम लाभ प्रदान करने वाली कंपनी है। इसलिये कंपनी के कार्यरत मजदूरों को भारत सरकार के श्रम कानूनों के अनुसार लाभ प्रदान करना कंपनी का दायित्व है लेकिन कंपनी अपने संवैधानिक एवं कानूनी दायित्वों का निर्वहन करने में लगातार सोची समझी कोताही करती रही है। कंपनी में कार्यरत मजदूरों द्वारा नियमित करने तथा न्यूनतम वेतन को प्रदान करने की मांग करने पर कंपनी द्वारा बिना कारण बताओ नोटिस दिये असंवैधानिक तरीके से वर्ष 1996 से 5000 मजदूरों को बलपूर्वक नौकरी से निकाल दिया गया। मजदूरों द्वारा कंपनी के निर्णय के विरूद्ध निचली अदालत से लेकर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय तक लड़ाई लड़ी गई। न्यूनतम वेतन अथारिटी से लेकर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की डिवीजन बैन्च ने मजदूरों के पक्ष में मजदूरों को न्यनूतम वेतन का भुगतान किये जाने एवं नियमित किये जाने का आदेश दिया। इसके बावजूद सेल केंद्र सरकार एवं विधि मंत्रालय की अनुमति के बिना गैरकानूनी ढंग से वर्ष 1996 से लेकर आज 2012 तक विगत 17 वर्षों से मजदूरों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर न्यूनतम वेतन जैसी संवैधानिक अधिकार की लड़ाई को निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मजदूरों को न्याय से वंचित करने के लिए गैरकानूनी ढंग से करोड़ों रूपये वकीलों की फीस के रूप में भुगतान कर मुकदमों पर मुकदमा लगाकर उलझाये हुये है। इसी का नतीजा है कि इस दौर न्याय-रोजगार एवं जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित लगभग 1000 मजदूर अपनी जान गवां चुके हैं। इस पूरे मामले की निष्पक्ष व स्वतंत्र आयोग बनाकर उच्च स्तरीय जांच कराये जाने पर दोषियों के चेहरे बेनकाब हो सकते हैं और उन्हें दंडित कराया जा सकता है। चूंकि सेल की इन खदानों से जुड़े हजारों की संख्या में मजदूर और उनके परिवार आज भी भुखमरी-बेरोजगारी के कारण ङ्क्षजदगी और मौत से संघर्ष कर रहे हैं। इसी का एक उदाहरण गत 18 अप्रेल की दोपहर 12 बजे करीब उस समय सामने आया जबकि खन्ना बंजारी रेलवे स्टेशन की साईडिंग में सेल की कुटेश्वर माइंस से निकलकर रेलवे रैक के जरिये बाहर भेजी जाने वाली गिट्टी लोड करते 45 वर्षीय ठेका श्रमिक सीताराम पिता मगलिया कोल निवासी ग्राम करौंदी कला की बेहद असुरक्षित स्थितियों में काम करते हुए अचानक मौत हो गई। मौके पर मौजूद 884 मजदूरों ने इस मौत से आक्रोशित होकर एक बार फिर सेल प्रबंधन द्वारा ठेका मजदूरों के माध्यम से कराये जा रहे काम के दौरान श्रमिकों को आवश्यक सुरक्षा एवं सुविधा प्रदान न किये जाने को जिम्मेदार बताते हुए आवाज तो उठाई गई मगर पूर्व के कई मौके की तरह इस मौके को भी प्रबंधन ने अपने ठेकेदार एसएस एण्ड कंपनी पर सारी जिम्मेदारी डालते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया।
उल्लेखनीय है कि सेल प्रबंधन द्वारा अपनी खदानों से पत्थर निकाल कर गिट्टी बनाकर बोकारो भेजने के काम को हैदराबाद, दिल्ली आदि बड़े शहरों के ठेकेदारों को दे दिया गया कटनी शहर से 60 किलो मीटर सुदूर ग्रामीण अंचल में होने के कारण ठेकेदारों द्वारा मजदूरों का शोषण किया जाता था। मजदूर को गिट्टी का 1 चट्टा बनाने पर एक दिन की मजदूरी दी जाती थी। (वो भी सरकारी-न्यूनतम वेतन से कम) मजदूर रोज मजदूरी पर आता था परंतु उसको मजदूरी उस दिन की मिलती थी जिस दिन रेलवे साइडिंग पर रैक आ जाता था। मतलब मजदूर गर्मी, बरसात, ठंड में रोज आता था परन्तु उसको मजदूरी मात्र एक माह के दस दिन मिलती थी वो भी सरकारी रेट से कम।
उक्त अन्याय के खिलाफ मजदूर इकट्ठे होकर स्व. जय प्रकाश नारायण आंदोलन के दौरान उभरकर आई छात्र राजनीति और फिर जनता पार्टी के माध्यम से विधायक बनकर समूचे अंचल में जमीनी राजनीति की पहचान बने नेता बच्चन नायक (अब स्वर्गीय) के पास आये, उन्होंने ठेकेदारों से मजदूरों को न्यूनतम वेतन देने के लिए कहा, ठेकेदारों ने वेतन देने से मना कर दिया। बच्चन नायक द्वारा इस संबंध मे सेल प्रबंधन से बातचीत की उन्होंने कहा कि वे इस बारे में कुछ नहीं कर सकते हैं। बच्चन नायक द्वारा इस्पात खदान जनता मजदूर यूनियन बना कर जबलपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई जिसमें राहत चाही गई कि प्रिन्सिपल इम्प्लायर ही न्यूनतम मजदूरी के लिए जबावदार है।
सेल द्वारा कलकत्ता हाई कोर्ट से इस तर्क पर स्थगन प्राप्त किया गया उनका मुख्यालय कलकत्ता में है इसलिए जबलपुर कोर्ट इसकी सुनवाई नहीं कर सकता। जबलपुर हाई कोर्ट की डबल बैच ने स्टे वैकेट करते हुये व्यवस्था दी कि मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी देने के लिए प्रिन्सिपल इम्प्लायर ही जबावदार है।
सेल द्वारा इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी अपने आदेश मे कहा गया कि प्रिन्सिपल इम्प्लायर ही न्यूनतम वेतन के लिए जबावदार है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एयर इण्डिया, सेल एवं कई अन्य द्वारा पुर्ननिरीक्षण याचिका दायर की गई। पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला दिया कि प्रिन्सिपल इम्प्लायर की जबाबदारी मेरिट के आधार पर तय होगी। सुप्रीम कोर्ट के उक्त फैसले के आधार पर जबलपुर हाई कोर्ट ने फैसला दिया कि मेरिट के आधार पर सेल को ही न्यूनतम मजदूरी देनी होगी। रीजनल लेवर कमिश्नर जबलपुर ने अपने फैसले में सेल प्रबंधन को राशि मजदूरों को देने का निर्णय दिया, सेल इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट गया । हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने भी सेल को भुगतान का निर्णय दिया। सेल द्वारा जबलपुर हाई कोर्ट में फिर पुर्ननिरीक्षण याचिका लगा दी गई।
इस तरह सेल द्वारा जानबूझ कर मामला लटकाने से नाराज होकर जबलपुर हाई कोर्ट ने सेल से कहा कि तीन दिन के अंदर 1.50 करोड़ रूपये न्यायालय में जमा कराये जिससे कि मजदूरों को अंतरिम राहत दी जा सके। सेल द्वारा पैसा जमा कर दिया गया। रजिस्टार जबलपुर हाईकोर्ट द्वारा सभी मजदूरों के नाम पर चैक बनवाकर बटवा दिये गये। मगर अभी मजदूर अपना खाता बैंक में खाता खुलवा ही रहे थे कि सेल द्वारा सुप्रीम कोर्ट से स्टे प्राप्त कर लिया। जबलपुर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने भी अपने आदेश में मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी देने के साथ ही साथ सरकारी नौकरी देने का आदेश दिया। सेल उक्त आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई है और वहां उसने बड़े अधिवक्ताओं के माध्यम से अपने पक्ष में इतनी सफलता जरूर हासिल कर रखी है कि एक सुनवाई के बाद स्पेशल लीव ग्रांट कराकर मामले में निर्णय को एक लंबे अंतराल के लिए लटका दिया गया।
बरसों से चले आ रहे अपने अङ्क्षहसक संघर्ष के साथ इस तरह होते सलूक और इस दौरान अन्याय से जूझते मजदूरों की आये दिन मरते जाने से मजदूरों का धीरज जबाब देने लगा है। इसी की चेतावनी देते हुए 18 अप्रैल को आंदोलित मजदूरों ने तपती दोपहर में कुटेश्वर लाईम स्टोन माइंस प्रबंधन के समक्ष धरना प्रदर्शन देकर अपनी बात रखी तथा तत्संंबंधी ज्ञापन प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, विधिमंत्री, इस्पात मंत्री सहित स्थानीय शासन-प्रशासन की ओर भी प्रेषित किया है। जिसमें निकट भविष्य में अपनी मांगे पूरी न होने पर जेल भरो आंदोलन के साथ ही कुटेश्वर माइंस में तालेबंदी जैसे उग्र कदम उठाये जाने हेतु अपनी विवशता का उल्लेख किया है। ज्ञापन में मांग की गई है कि
- म.प्र.उच्च न्यायालय के ङ्खक्क- 10963/2009 दिनांक 06.09.2010 डिवीजन बैन्च के निर्णय के अनुसार कुटेश्वर लाईम स्टोन माइन्स, गैरतलाई, बरही, कटनी (म.प्र.) के वर्ष 1996 से निकाले गये सभी मजदूरों को पुन: काम पर लेकर नियमित किया जाये एवं केंद्र सरकार सेल प्रबंधक को सर्वोच्च न्यायालय में दायर-स्रुक्क हृ०.34218-34219/2010 को तुरंत वापस लेने का निर्देश दें।
सेल प्रबंधन की 1996 से 2012 तक 17 वर्षों में की गई असंवैधानिक-गैरकानूनी कार्यवाही के कारण मारे गये 1000 श्रमिकों एवं परिवार के आश्रितों की मृत्यु की आयोग बनाकर सीबीआई जांच की जाये एवं दोषियों को दंडित किया जाये। मृतकों के परिवारों को 500000/-(पांच लाख रूपये) प्रति परिवार के हिसाब से मुआवजा दिया जाये। न्यूनतम वेतन ऑथारिटी जबलपुर म.प्र. के दिनांक 02.12.2003 निर्णय अनुसार सेल प्रबंधन द्वारा मजदूरों के न्यूनतम वेतन 2,71,01,05,680 (दो अरब इक्खत्तर करोड़ एक लाख पांच हजार छ: सौ अस्सी) रूपये का ब्याज सहित भुगतान कियाजाये। कुटेश्वर लाईम स्टोन माइंस, बरही, कटनी म.प्र. के लिये किसानों की अधिग्रहित जमीन का पर्याप्त मुआवजा, नौकरी एवं पुनर्वास की व्यवसथा की जाये।
वर्तमान में म.प्र. शासन द्वारा खन्ना बंजारी स्टेशन, बरही, कटनी से कुटेश्वर चूना पत्थर खदान तक रेल्वे लाईन निर्माण के लिये की जा रही भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही पर तुरंत रोक लगाई जाये। कुटेश्वर लाईम स्टोन माइन्स के कारण क्षेत्र में हो रहे प्रदूषण पर तुरंत रोक लगाई जाये। माइंस ब्लास्टिंग प्रदूषण से हुई क्षति का मुआवजा दिया जाये। कुटेश्वर लाईम स्टोन माइंस के अंतर्गत दफाई मजदूरों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी बिजली, सडक़ एवं अन्य बुनियादी सुविधाओं की तत्काल व्यवस्था की जाये। कुटेश्वर लाईम स्टोन माइंस, रेलवे साइडिंग मे ठेका प्रथा पर तत्काल रोक लगाई जाये एवं वर्तमान में माइंस एवं रेलवे साइडिंग में कार्यरत ठेका मजदूरों को भी नियमित किया जाये। बाणसागर बांध परियोजना के विस्थापितों का समुचित पुर्नवास किया जाये। इस क्षेत्र में बुरी तरह जर्जर सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों में निर्धारित राशन-गेहूं-चावल, मिट्टी तेल, शक्कर का तुरंत वितरण प्रारंभ किया जाये। ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का प्रभावी रूप से क्रियान्वयन किया जाये। जिले के गरीबों-भूमिहीनों के लिये पट्टे एवं आवास बनाकर प्रदान किये जाये एवं बिजली विहीन घरों एवं गांवों में बिजली प्रदान की जाये। जिले के स्कूलों-अस्पतालों में शिक्षा-स्वास्थ्य की समुचित व्यवस्था की जाये।
इसी तरह कटनी जिले के ग्राम बुजबुजा, डोकरिया, खन्ना एवं बनगवां में निजी वेलेस्पन कंपनी के ताप बिजली घर को स्थापित करने के लिए किसानों की उपजाऊ जमीन का असंवैधानिक ढंग से बलपूर्वक अधिग्रहण कर किसानों की जिंदगी को बर्बाद किया जा रहा है। संपूर्ण कटनी जिले में विभिन्न उद्योगों के लिये किसानों की जमीनों का असंवैधानिक बल पूर्वक अधिग्रहण, वाणसागर परियोजना के विस्थापितों का पुर्नवास, सार्वजनिक वितरण प्रणाली मे भ्रष्टाचार-कालाबाजारी, ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में भ्रष्टाचार, गरीब भूमिहीनों को आवास का अधिकार, शिक्षा-स्वास्थ्य, पानी बिजली, केद्र एवं राज्य सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं की राशि की भयंकर लूट चारों ओर मची हुई है जिसका शीघ्र निराकरण किया जाना आवश्यक है। जिले के मजदूरों-किसानों एवं जनसमस्याओं के निराकरण के लिये निम्र मांगों पर शीघ्र कार्यवाही की जाये।
कटनी जिले में निजी वेलेस्पन कंपनी के ताप बिजली घर के लिये ग्राम बुजबुजा, डोकरिया, खन्ना वं वनगवां के किसानों की बलपूर्वक गैरकानूनी संपूर्ण भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को रद्द कर कंपनी को हटाया जाये। कटनी जिले में उद्योगों के लिये किये जा रहे असंवैधानिक-बलपूर्वक भूमि अधिग्रहण की समस्त कार्यवाही को निरस्त किया जाये।
उपरोक्ताशय का एक विस्तृत चेतावनी युक्त ज्ञापन राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, विधिमंत्री तथा इस्पात मंत्री की ओर प्रेषित किये जाने के साथ ही जिले के कुटेश्वर क्षेत्र में स्थित स्टील ऑथारिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड की रॉ मटेरियल डिविजन की खदानों के स्थानीय प्रबंधन को महाप्रबंधक कार्यालय के समक्ष बड़ी संख्या में मजदूरों एवं किसानों की एक रैली के साथ देर तक धरना देने के उपरांत जनता दल यू एवं हिंद मजदूर सभा तथा लोकतांत्रित समाजवादी पार्टी के नेताओं पूर्व विधायक,पूर्व प्रदेशाध्यक्ष जदयू एवं इस्पात खदान जनता मजदूर यूनियन अध्यक्ष श्रीमती सरोज बच्चन नायक, महामंत्री बुद्धूलाल सोनी,उपाध्यक्ष द्वय कोदूलाल कोल, प्रमोद पांडे मौजूदा जदयू प्रदेशाध्यक्ष गोविंद राजपूत,उपाध्यक्ष रानी शरद कुमारी देवी लोजपा नेता बिन्देश्वरी पटेल सहित पिछड़ा वर्ग संगठन के डॉ. केएल सोनी सहित इसी क्षेत्र में जबरिया भू-अधिग्रहण के जरिये किसानों की जमीन हथियाने हेतु तत्पर वेलस्पन कंपनी के विरूद्ध आंदोलनरत बुजबुजा एवं डोकरिया ग्रामों के कृषकों विशेषकर महिलाओं ने कुटेश्वर श्रमिकों के वर्षां पुराने आंदोलन के प्रति परस्पर समर्थन के आदान-प्रदान से कृषकों, श्रमिकों के एक वृहद जनांदोलन को आगे बढ़ाने हेतु प्रथम बार अपना समर्थन प्रदान करते हुये क्षेत्रीय तहसीलदार को प्रस्तुत किया गया।
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