
मेरे सतगुरु मेरे ऊपर तुम्हारी असीम कृपा है हर पल मुझे तुम्हारी ही टेक है। एक राजा को भी इतना आराम नहीं मिलता होगा जितना तुम्हारी कृपा से मुझे मिलता है । तेरी रहमत है। मेरी तरफ से में तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं कर पाया हूँ । बिलकुल थोड़ा सा ही सिमरन थोड़ा सा सत्संग और सेवा तो बिलकुल भी नहीं कर पाताहूँ । मेरे अवगुणों को न देखते हुए तुमने मुझपे रहमत की है । फिर भी मुझे अहंकार आ जाता है तो ठोंकरे मिलती है लेकिन तुम संभाललेते हो । मेरे जैसे करोडो नासमझ लोगो का ही तुम उद्धार करने ही निरंकार से साकार रूप में तुम आये हो । तुम मुझसे कभी नाराज मत होगा मेरे सतगुरु । तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा । मुरली
मुरली जी सतगुरु तो दयालु हे सब को माफ़ कर देता हे धन निरान कर जी
ReplyDeleteअमरजीत जी धन निरंकार ..
Deletemurliji apne satguru par bharosa rakho dhan nirankarji.
ReplyDeletejat pat mat mano ham sab ek hi bhagvan ke bhachhe he .pyar se kahiye dhan nirankarji.
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