जिसने अपनी अकड़ को मार दिया वह जिंदा हैं, अकड़ तो मृतक होने की निशानी है, संत निरंकारी मिशन की मासिक पत्रिका संत निरंकारी के जून माह में संपादक हरजीत निषाद ने मुक्ति, अहंकार और आसक्ति जैसे विषय पर बड़ी खूबसूरती से लिखा है
( प्रबल सृष्टि ) संसार में रहना है पर संसार में गहरी आसक्ति नहीं रखनी; जैसे नाव ने पानी में रहना है लेकिन पानी नाव में आ जाए तो नाव को डुबा देगा। इसीलिए बाबा हरदेव सिंह जी ने कहा "जितनी गहरी आसक्ति, उतना गहरा दुख।" संत निरंकारी मिशन की मासिक पत्रिका संत निरंकारी के जून माह के सम्पादकीय में महात्मा हरजीत निषाद ने मुक्ति, अहंकार और आसक्ति जैसे विषय पर बड़ी खूबसूरती से लिखा है। संपादक ने लिखा है कि सफलता का श्रेय परमात्मा परम को; कमियां रह गईं तो संभवतः मेरे प्रयास में ही कोई कमी रह गई होगी और कैसे मान गवां कर हनुमान जी सन्त शिरोमणि भक्त कहलाए। बलशाली होते हुए भी उन्होंने अपनी शक्तियों का दंभ नहीं किया यह बताता है कि अहंकार ही सभी मन के रोगों का मूल है और संसार के प्रति आसक्ति मन को एकरस नहीं रहने देती। यहां संपादकीय अक्षरशः पेश है जिसे अवश्य पढ़ा जाना चाहिए यह सभी के लिए हितकर है।
अकड़ और पकड़ से भाव, अहंकार और आसक्ति से है। जब अकड़ त्यागकर हम सत्गुरु के चरण पकड़ते हैं तो ब्रह्मज्ञान मिलता है और जीवन को इसका वास्तविक अर्थ भी। ज्ञान पाकर, ज्ञान की राह पकड़नी है। सत्संग, सेवा, सुमिरण की राह पकड़नी है, जिससे जीवन सही दिशा में आगे बढ़ेगा और मन की अकड़ भी समाप्त होगी। रामचरितमानस में एक प्रसंग आता है, जहां विभीषण श्रीराम के प्रति चिंताग्रस्त हैं - रावण रथी विरथ रघुवीरा', युद्ध के मैदान में रावण रथ पर सवार है और राम बिना रथ के हैं। फिर भी विजय श्रीराम की हुई, रावण पराजित हुआ। अहंकार के कारण। रावण जहां शक्ति, समृद्धि सब गंवा बैठा, वहीं मान गवां कर हनुमान जी सन्त शिरोमणि भक्त कहलाए। बलशाली होते हुए भी उन्होंने अपनी शक्तियों का दंभ नहीं किया बल्कि उनकी शक्तियों को तो याद दिलाना पड़ता था। फिर वह समुद्र लांघ कर लंका गए, संजीवनी बूटी पर्वत सहित उठा लाए और यही कहते रहे कि मैंने कुछ नहीं किया; जो कुछ किया, मेरे प्रभु ने किया। राम को श्रेय देने से हनुमान जी श्रीविहीन नहीं हुए बल्कि और ज्यादा पूजनीय हो गए। अभिमान से मुक्त होने पर हमारी नज़र जाती भी है तो अपनी कमियों पर ही जाती है कि काम हो गया तो सफलता का श्रेय परमात्मा परम को; कमियां रह गईं तो संभवतः मेरे प्रयास में ही कोई कमी रह गई होगी।
'माया महा ठगनी हम जानी', सारा संसार माया को पकड़ना चाहता है जबकि लोग स्वयं माया की पकड़ में हैं। प्रभु की कृपा हो, तब ही कोई माया से छूटे और प्रभु से जुड़े। जैसे बंदर हो, एक डाल को छोड़ता है और दूसरी को छलांग लगाकर पकड़ता है, ऐसे ही भक्त पूरी तरह से आश्वस्त होता है कि किसे छोड़ना है और किसे पकड़ना है। सत्गुरु जब ब्रह्मज्ञान देते हैं तब यही समझाते हैं कि नौ प्रकृतियों को पहचान कर माया को कैसे छोड़ना है और निराकार-ब्रह्म को कैसे पकड़ना है। माया के आकर्षण से बच पाना आसान नहीं है, इसमें उतार-चढ़ाव बहुत ज्यादा है। संसार के प्रति आसक्ति मन को एकरस नहीं रहने देती।
"मैं बलवान, मैं सर्वोत्तम, मैं बुद्धिमान, यही अहंकार है। कर्ता भाव अभिमान पैदा करता है जबकि कर्तव्य भाव यह एहसास कराता है कि प्रभु की कृपा से ही मैं कुछ कर पा रहा हूं वरना मेरी क्या सामर्थ्य है। संसार में रहना है पर संसार में गहरी आसक्ति नहीं रखनी; जैसे नाव ने पानी में रहना है लेकिन पानी नाव में आ जाए तो नाव को डुबा देगा। इसीलिए बाबा हरदेव सिंह जी ने कहा "जितनी गहरी आसक्ति, उतना गहरा दुख ।"
गुरमुख सत्गुरु को मन में बसाकर सदैव एकरस रहता है। कर्तव्यों का पालन करते हुए अकर्ता भाव अपनाने के कारण शांत रहता है। अपनी मर्जी की बजाय दातार की मर्जी को अहमियत देता है। जो अपनी "मैं" को हटा पाने में सक्षम होता है; वही सुख-दुःख, यश-अपयश में एकरस रह पाता है। जिसने अपनी अकड़ को मार दिया वह जिंदा हैं, अकड़ तो मृतक होने की निशानी है।
सन्तों-भक्तों ने अहंकार शून्य होकर मन को सत्गुरु के चरणों में समर्पित किया और गुरु कृपा से शबरी, मीरा, भाई कन्हैया, हनुमान जी आदि की तरह पूजनीय हो गए। दूसरी ओर जिन्होंने शक्ति और अहंकार को अपनायाः वो रावण, दुर्योधन, कंस की तरह अपमानित पराजित हुए। आज सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज यही समझा रहे हैं कि "अपने मन में अहंकार नहीं आने देना क्योंकि जो इच्छाएं हमें हानि की तरफ ले जाने वाली होती हैं; वह अहंकार से ही जन्म लेती हैं।"
जो क्षणभंगुर है, जो मिट जाने वाला है, उसके लिए अहंकार कैसा? उसके प्रति आसक्ति कैसी? पर यह संभव होगा सत्गुरु की कृपा से और अपने मनोविकारों से जब हम मुक्त होंगे। हमें सत्गुरु ने आत्म दर्शन करा दिया, आइए, आत्ममंथन करें और गुरमत के पथ पर सहजता आगे बढ़ते जाएं।
Comments
Post a Comment