ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लिया, उसके बाद क्या लक्ष्य है गुरसिख का ? इस एक का एहसास होगा, तो कभी मैं किसी का दिल नहीं दुखाऊंगा, किसी को गलत नहीं बोलूंगा, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में बहन मनीषा नागदेव जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) यहाँ भक्ति के बारे में बताया जा रहा है कि अगर यह भक्ति तेरे जीवन में है तो जीवन में रस है पर सवाल यह आता है कि भक्ति की शुरुआत कहां से होती है ? सतगुरु ने हमें समझाया कि जब हम इस परमपिता परमात्मा की पहचान करते हैं तभी भक्ति की शुरुआत होती है। सतगुरु ने तो हम सब पर अपार कृपा करके हमें इस ब्रह्मज्ञान की अमोलक दात से नवाजा है क्योंकि अगर देखा जाये तो हम हमेशा संगत में सुनते हैं कि मानुष जन्म अमोलक है होत न बारम्बार कि इस मानुष जन्म का लक्ष्य भी हमें सतगुरु ने बताया कि इस परमपिता परमात्मा की प्राप्ति करके भक्ति से जुड़ जाओ, जब तक इसको प्राप्त नहीं करेंगे तब तक भक्ति की शुरुआत ही नहीं हो सकती कि, बिन देखे मन मनदा नहीं है बिना मन के प्यार नहीं प्यार बिना नहीं भक्ति होवे ते बिन भक्ति बेड़ा पार नहीं कि जब तक देखेंगे नहीं तब तक प्रेम नहीं हो सकता। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में पवित्र हरदेववाणी के शब्द पर रविवार के सत्संग में बहन मनीषा नागदेव जी ने व्यक्त किए।
साध संगत, अगर हमारे पास कुछ गोल्ड होता है, हम उसे बहुत संभाल के अलमारी में रखते हैं, उसे हम लॉक भी करते हैं, उसकी चाबी भी संभाल के रखते हैं, कि कहीं ये गोल्ड खो न जाए। हम शहंशाह के बच्चे हैं और सतगुरु ने हमें मालों माल किया है इस ब्रह्म ज्ञान की दात से तो जब ये ब्रह्म ज्ञान की दात दे दी तो इसकी संभाल भी करनी है। बाबा अवतार सिंह जी महाराज अपने विचारों में ये बात फरमाते थे कि जब हमने ब्रह्म ज्ञान लिया तो हमें नित्य प्रतिदिन सत्संग सेवा और सिमरन करना है और जब जब मैंने गुरु के वचन को अपने जीवन में प्राथमिकता दी है, तब तब मैंने अपने जीवन में बहुत चेंज पाया है। क्योंकि सतगुरु पूरा होता है, उसका ज्ञान भी पूरा होता है, निरंकार भी पूरा है, ये साध संगत भी पूरी है पर जब ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लिया, उसके बाद क्या लक्ष्य है गुरसिख का ? अपने सतगुरू को प्राथमिकता देना, उनके हर एक आदेश का हुबहु पालन करना, चाहे सारी दुनिया आकर ये कह दे कि ये बात गलत है। अगर अपने आप की तरफ देखें तो कोई ऐसी लियाकत नहीं पर ये सतगुरु का तरस है जो इन्होंने हम पर किया है, कि हर मेरी गलती को बख्शते हुए, और मुझे ये ब्रह्मज्ञान की दात बख्श दी।
निरंकारी राजपिता जी ने अपने विचारों में बड़ी सुन्दर बात बताई, कि पहले के युग में हम देखते थे कि अगर इस परमात्मा को प्राप्त करना होता था तो जंगलों में जाते थे, तप करते थे तपस्याएं करते थे, साध संगत, आज हम अपने जीवन में देखें, कि हमारा सतगुरु इतना दयालु, कि जब हमने ज्ञान लिया तब हम क्या थे ? निरंकारी राजपिता जी ने फरमाया, कि हमने अपने हाथ में कुछ पत्थर पकड़े हुए हैं, ब्रह्मज्ञान मिलेगा पर फिर भी पत्थरों को छोड़ना नहीं चाहते, भाई मैंने बटोरे हैं, ऐसे कैसे छोड़ दूँ, तब साध संगत निरंकारी राजपिता जी कहते हैं, कि अच्छा अब तुने ये सोना हासिल कर लिया है, तो अब धीरे धीरे एक एक पत्थर करके छोड़ता जा, वो पत्थर कौन से हैं ? वो मेरे विकार, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, इस तरह के मैंने विकार पकड़ के रखे हैं, आज हम विचार करें कि क्या मैंने उन पत्थरों को छोड़ा है ? क्या मैं निन्दा नफरत से दूर हुआ हूँ ? क्या मैंने अपने सतगुरु के वचनों को अपने जीवन में अपनाया है ? कि आज भी छोटी-छोटी सी बातों में उलझ के रह जाता हूँ ? जब हर घट में परमात्मा है, तो मेरी नजर उसकी गलतियों पर क्यों जाती है ? मेरी नजर उसकी खूबियों पर क्यों नहीं जाती?
गुरमत तो यही कहती है कि हरेक से प्यार करो, ये केवल शब्द नहीं है कि आप इन शब्दों को बार-बार संगतों में दोहराओ, ये वो गुण है जो आपके जीवन में अगर आ जाएंगे तो ये धरती स्वर्ग बन जाएगी, अभी भी महात्मा बड़ी सुन्दर बात से समझा रहे थे कि इसकी रजा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता, हम आजमा के देख लें, कि अगर हम चाहेंगे भी तो मेरी प्लानिंग कभी काम नहीं करती, ये बेस्ट प्लैनर है, ये सुप्रीम पॉवर है, ये ही सारी सृष्टि का चालक है। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज अपने हर विचारों में ये बात कहते हैं, कि अगर हमको इस एक का एहसास होगा, तो कभी मैं किसी का दिल नहीं दुखाऊंगा, कभी मैं किसी को गलत नहीं बोलूंगा, कभी भी मेरे मुख से ऐसा शब्द ही नहीं निकलेगा जो किसी का दिल दुखा जाए, अगर इसका भय नहीं रहेगा, तो भक्ति तो होई नहीं सकती। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने इस बात को और गहराई से समझाया, कि भय में अगर एक बच्चा रहता है, तो पिता सामने हो, तो वो कोई गलत काम नहीं करेगा, क्योंकि उसे भय रहेगा तो चाहे पिता उसके साथ ना भी हो, वो कहीं भी चला जाए कोई गलत काम नहीं करेगा क्योंकि उसका अपने पिता से प्यार है, कि मेरे पिता समझाते हैं ये काम नहीं करना। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने गीत विचार के माध्यम से भी अपने भाव प्रकट किए इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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