भक्ति घर से शुरू होती है, यह परहेज है निंदा नहीं करना, किसी की चुगली नहीं करना, किसी से छल कपट नहीं करना, किसी का हक नहीं दबाना, चोरी नहीं करना, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में बहन साक्षी अशरा जी ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) साधसंगत रूपी मां की गोद में जब इंसान बैठ जाता है तो अनन्त सुखों का स्वामी बन जाता है, जिस प्रकार पवित्र हरदेव वाणी में बाबा जी समझा रहें है कि सतगुरु की महिमा अनन्त है और उपकार भी अनन्त है। आज 25 मई है निरंकारी मिशन का स्थापना दिवस है। 25 मई 1929 को निरंकारी मिशन की स्थापना हुई थी तब से यह ब्रह्म ज्ञान की दात यह मिशन चलाता आ रहा है और युगों युगों से यह निरंकार कायम है, यह स्वयंभू है। जिस प्रकार वो युग भी था जब पूज्य भाई काहन सिंह जी ने बाबा बूटा सिंह जी महाराज को ब्रह्म ज्ञान की दात दी। बाबा बूटा सिंह जी महाराज इस ज्ञान को पाके प्रफुल्लित हो गए रोम रोम खिल उठा और उन्होंने कहा यह दात सब तक पहुँचानी है ताकि सभी सुखी हो जाएं पर वह समय ऐसा था कि वे जो विरोधी थे वो बहुत ज्यादा परेशान करते थे कि सत्य की आवाज गली-गली तक ना पहुँचे। काफी समय गुजर गया फिर भाई काहन सिंह ने बाबा बूटा सिंह जी महाराज को आज्ञा दी कि ठीक है आप इतना प्रयत्न कर रहे हैं तो अब आप इस ज्ञान को खोलो। बाबा बूटा सिंह जी महाराज ने बहुत प्रयत्न किये और इसी बीच बाबा अवतार सिंह जी महाराज जो की गुरबाणी का पाठ करते थे तब एक महात्मा धन्ना सिंह जी कहने लगे, कि आप सिर्फ पाठ ही करते हैं, कि जो इसमें लिखा है सर्वव्यापी को जानो, आपको उसको भी जानना है, कि सिर्फ पाठ करके छोड़ देना है, तब बाबा अवतार सिंह जी को लगा कि नहीं, यह सही बोल रहें है, यह जो सर्वव्यापी निरंकार है, इसको जानना पड़ेगा और जानना चाहिए, उनके मन में जिज्ञासा उत्पन हुई। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में बहन साक्षी अशरा जी ने व्यक्त किए।
एक बार महात्मा धन्ना सिंह जी ऐसे ही बाजार में खड़े थे और उनकी साथ की दुकान अनूप सिंह जी महात्मा की थी तो अचानक बाबा बूटा सिंह जी महाराज बाजार में से निकल पड़े तो अनूप सिंह जी महात्मा ने बाबा बूटा सिंह जी महाराज से हाल चाल पूछा, तब बाबा बूटा सिंह जी महाराज ने कहा कि यदि अंदर का हाल पूछ रहे हैं तो आनंद में हूँ और बाहर मैं आपके सामने खड़ा हूँ और इसी बीच बातचीत करते करते बाबा बूटा सिंह जी महाराज बाबा अवतार सिंह जी की दुकान में चले गए, उनकी बेकरी की दुकान थी तब स्वयं उन्होंने लकड़ी की एक पट्टी लेके बैठ गए। उस दिन तो वो बातचीत होती रही, पर दूसरे दिन बाबा अवतार सिंह जी, बाबा बूटा सिंह जी महाराज के पास गए और ब्रह्मज्ञान की दात ली और कहा आज मैंने सर्वव्यापी को जान लिया। बाबा अवतार सिंह जी महाराज ने प्रचार आगे से आगे बढ़ाया, इस रूप में बढ़ता ही गया और जब बाबा अवतार सिंह जी महाराज को ऐसे लगा, कि इस शरीर से बहुत काम लिया है, जैसे कहते हैं कि शरीर तो आपका थक जाएगा और जो मूल है वो आत्मा है, तो बाबा अवतार सिंह जी महाराज ने बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज को सतगुरु रूप में प्रकट किया और स्वयं गुरसिख होके सेवा करने लगे।
बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज ने अनेक कुरूतियों को दूर किया, मसूरी कॉंफरेंस, नारी का नर के समान ही एक साथ कंधे से कंधा मिला कर सत्य का प्रचार करना और भी सादा शादियां, नशा बंदी जैसे बहुत देन दी। उन्होंने ज्ञान को इतना फैलाया कि यह ज्ञान घटघट में बैठा, और फिर बाबा हरदेव सिंह जी महाराज सतगुरु रूप में प्रकट हुए, उस समय भी संतों को लगा, कि अब हम इसका बदला ले, पर बाबा जी ने समझाया, कि खून का बदला यह है कि खून नालियों में नहीं बहे बल्कि इंसान की रगों में बहे जो आज तक कायम है। रक्तदान के शिविर लगते ही जा रहे हैं आज ये वरदान साबित हो रहा है। सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज के आदेश कि सहनशीलता और निरंकार के भाणे में रहना कि वो प्यार हमारे अंदर होना चाहिए। आज हमको कितने साल हो गए हैं क्या हमारे अंदर वो प्यार आया है यदि आया है यदि हमने ये जीवन जिया है तो भक्ति घर से शुरू होती है, अगर घर में हमने लड़ाई झगड़े किये बाहर कहा कि संतो धन निरंकार जी मुस्करा दिये, और घर में रवैया कुछ और है तो बात बढ़ने वाली नहीं।
बाबा अवतार सिंह जी महाराज ने यही कहा, यह परहेज है निंदा नहीं करना, किसी की चुगली नहीं करना, किसी से छल कपट नहीं करना, किसी का हक नहीं दबाना, चोरी नहीं करना, यह सारे गुण बाबा अवतार सिंह जी महाराज ने वरदान दे दिये। कहते भी हैं कि प्रभु परमात्मा के अनन्त नाम है, तो बाबा अवतार सिंह जी महाराज ने परम सत्य का बोध करा के भ्रम जाल से मुक्त किया, निरंकार कणकण में घटघट में है बस हमारे देखने की नजर होनी चाहिए कि हमारी नजर वो सही चल रही है जिस प्रकार हमारे चश्मे के ग्लास का कलर होगा वैसा संसार दिखेगा। अगर हमारे भाव हमेशा सुन्दर बनते जाएंगे सभी के प्रति, क्योंकि सब में यह निरंकार है, कण कण में, पत्ते पत्ते में, बच्चे बच्चे में, यह हमारा भाव जब बन जाता है कि यही करण करावण हार है तो जीवन में अनंत गुणों का समावेश हो जाता है।
परहेज करना बहुत ज़रूरी है कि किसी के लिए कुछ बोलना नहीं है, निरंकार को सब पता रहता है। हमारी नियत अगर सही है, तो जो काम अगर हमारे हित में है, तो काम होगा, अगर हमारे हित में नहीं है, तो गुरु हमें कैसे देंगे। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने गीत विचारों के माध्यम से अपने भाव प्रकट किए इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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