कटनी ( प्रबल सृष्टि ) किसी भी व्यक्ति के नामकरण की तरह, विभिन्न गाँव - शहरों के नामकरण के पीछे भी कुछ आधार होता है। उदाहरण के लिए अमृतसर शहर, जहाँ सिख बिरादरी का सबसे बड़ा तीर्थ स्वर्ण मंदिर एवं एक सरोवर स्थित हैं । किसी जलाशय या सरोवर को सर भी कहते हैं । सरोवर के साथ तीर्थ भी होने से सरोवर के जल को अमृत की संज्ञा दी गई और शहर का नाम अमृतसर पड़ गया । कुछ वर्षों पूर्व कटनी शहर में मुड़वारा नाम का एक नया स्टेशन बन जाने से यह नाम जो लुप्त प्रायः हो रहा था , फिर चर्चा में आ गया है । वस्तुतः आज का जो कटनी शहर है, इसका ही पुराना नाम मुड़वारा रहा है । सन 1865 - 70 के पूर्व तक कटनी नाम और वर्तमान शहर का कोई अस्तित्व नहीं होता था । यहाँ कटनी नदी के किनारे लगभग डेढ़ सौ घरों एवं दो हजार लोगों की एक छोटी सी बस्ती आबाद थी, जिसे मुड़वारा कहा जाता था । सन 1867 में अंग्रेजों द्वारा इलाहाबाद - जबलपुर रेल लाइन बिछाई जाकर इस मार्ग पर रेल परिवहन शुरू किया गया । इसी दौरान मुड़वारा बस्ती से कुछ दूर स्थापित किये गए स्टेशन का नामकरण नदी से मिलते जुलते नाम पर कटनी किया गया । उल्लेखनीय है कि कटनी नदी का मूल नाम कठने है । किंतु अंग्रेजों से इसका उच्चारण करते नहीं बनने के कारण इसे सरल बनाते हुए कटनी किया गया । इस तरह डेढ़ सौ वर्षों बाद मुड़वारा बस्ती आज देश भर में कटनी नाम से पहचानी जाने लगी है । बहरहाल यहाँ मुड़वारा नाम कैसे पड़ा इसकी चर्चा करते हैं ।
मुड़वारा नामकरण की एक नहीं अनेक कथाएं प्रचलित हैं । रायबहादुर हीरालाल जी द्वारा अपनी पुस्तक ' भौगोलिक नामार्थ ' में लिखा है - रियासत काल में सिपाहियों को अपना क्षत्रियत्व दिखाने ( किसी अपराधी या शत्रु का सिर काट लेने ) के बदले मूड़वार , यानि गाँव प्रदान होता था । जो यहाँ के पुराने मालगुजार को ईनाम में मिला था । अतः नामकरण मुड़वारा हो गया ।
गोंडवाना इतिहास के जानकार विद्वान राजकुमार गुप्ता ने एक जगह लिखा है , कटनी नदी के सुनसान किनारे पहाड़ी गुफा में एक कापालिक रहता था । जो वहां से आने जाने वाले राहगीरों को पकड़कर देवी को बलि चढ़ा देता था । मारे जाने वाले राहगीरों के मुण्ड यानि सिर की उसने एक माला बना रखी थी , जिसमे प्रत्येक नए शिकार का मुण्ड काटकर उस माला में गूँथ देता था । एक समय नरमुंडों की यह माला इतनी बड़ी हो गई थी कि वह देवी मंदिर के बाहर तक दिखती थी । अपने आतंकपूर्ण व्यवहार से वह कापालिक मुण्ड बाबा के नाम से कुख्यात था और लोग वहां से गुजरने से घबराते थे । ऐसी ही एक घटना में बघेलखंड के राजा वीरसिंह के कुछ रिश्तेदार बलि चढ़ा दिए गए । जिससे राजा वीर सिंह ने क्रोधित होकर आम्हण दास ( जिन्हें बाद में संग्राम शाह के नाम से जाना गया ) जो गोंडवाना राजा अर्जुनदास के पुत्र थे तथा पिता से मतभेद के चलते बघेलखंड की सेना में एक सरदार थे , उन्हें मुण्ड बाबा के उन्मूलन हेतु आज्ञा दी । मुण्ड बाबा काफी शक्तिशाली , धूर्त एवं तांत्रिक था । किन्तु आम्हण दास ने अपने शौर्य पराक्रम एवं कौशल से उसका उन्मूलन किया । मुण्ड बाबा के नाम से यह स्थान मुड़वारा कहा जाने लगा ।
कटनी नगर के वरिष्ठ संस्कृति कर्मी टीकाराम कुशवाहा जी ने अपनी संस्मरण कृति ' मेरा रंग क्षितिज ' मुड़वारा नामकरण पर लिखा है , 12 मूड़ वार यानि काट दिए जाने की घटना से मुड़वारा नामकरण हुआ । इस घटना के भी दो किस्से आपने उल्लेखित किये । एक के अनुसार मिशन चौक में ठगों द्वारा 12 बैलगाड़ी चालकों के सिर काट दिए जाना बताया गया तो दूसरी घटना में अंग्रेजों द्वारा 12 ठगों को मारकर उनके सिर कचहरी स्थित पेड़ में टांग दिए जाना बताया गया है ।
मुड़वारा - कटनी के वरिष्ठ साहित्यकार , स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. राममनोहर बिचपुरिया ' सम्राट ' जी के अनुसार कटनी स्टेशन स्थापित होने के साथ बस्ती के एक छोर में चूना उद्योग प्रारम्भ हुआ । इसमें लगे श्रमिक चूना पावडर से भरी बोरी सिर में लाद कर ढोते थे । उनके सिर के बालों में चूना पावडर घुस जाता था और तकलीफ देता था । अतः वे श्रमिक सिर मुड़वाये रखते थे । चूना के भट्ठे जबलपुर इलाहबाद मुख्य मार्ग के किनारे स्थित थे । हर आने जाने वालों को सर्वत्र सिर मुड़वाये श्रमिक दिखते थे । अतः बस्ती को मुड़वारा कहा जाने लगा ।
एक अन्य मान्यता में कहा जाता है कि भारतीय महिलाओं से दुर्व्यवहार के कारण दो गोरे सैनिकों के सिर स्थानीय लोगों द्वारा काट लिए जाने के कारण गाँव का नाम मुड़वारा पड़ गया ।
नामकरण को लेकर कुछ लोग एक कयास और लगाते हैं कि , कटनी स्टेशन से एन के जे को जाने वाला रेल मार्ग एक लंबा मोड़ लेता है । अतः पहले इसे मोड़ वाला कहा गया जो बाद में मुड़वारा हो गया ।
मूड कटाई को लेकर शहर में एक दो अन्य किस्से भी प्रचलित हैं । जिससे मुड़वारा नामकरण का यही आधार ज्यादा तर्कसंगत और प्रामाणिक जान पड़ता है ।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि कटनी जिला में वारा पूंछ वाले लगभग 50 - 60 गाँव हैं , जैसे कन्हवारा , झलवारा , पटवारा , जटवारा , नन्हवारा आदि । वारा से अर्थ बाड़ा ।
लेखक - श्री राजेन्द्र सिंह ठाकुर
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