सतगुरु देह का नाम नहीं, सतगुरु होता ज्ञान है, सतगुरु को देह समझना भूल है अज्ञान है, 13 मई - समर्पण दिवस पर संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में महात्मा बंटी कमला जी ( दिल्ली - महरौली ) ने विचार व्यक्त किए
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) हमने तो बहुत कुछ पढ़ा सुना, ऐसा है सतगुरु फिर गुरसिख वैसा क्यों नहीं ? जब सतगुरु स्वयं कह रहा है गुरसिख का रूप धर के सतगुरु प्रकट होता है। जो गुरसिख निवणा बुले उथे गुरू खलोना नहीं, कहे अवतार एहो जे सिख दे नाल गुरू होना नहीं। तो अगर आज कुछ शिक्षाओं को याद कर रहे हैं तो ये भी याद करें, ये भी एहसास करें, मैं भूलवश कह जाता हूँ कि फिर मैं याद कर रहा हूँ, यानि पहले नहीं याद किया हूँ। क्या सतगुरु कोई भूलने वाली चीज है ? ये तो कायम दायम सत्ता है, ये हर पल रहने वाली है, हर जगह समान रूप से रहने वाली है, कहीं न कहीं मैं समर्पित होना नहीं चाहता हूँ। दास अपनी बात कर रहा है, सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जो अभी इस रूप में प्रकट है। हम कह लेते हैं गुरु तो गुरु ही है यह सत्य संग है जहां जाओं वहाँ गुरू होगा, हम अरदासें भी करते हैं बाबा जी ऐसी कृपा करो मैं वैसा हो जाऊं जैसा आप चाहते हैं, तो भाई गुरु तो चाह रहा था इसलिए तो लिया है अपने चरणों में। गुरु तो चाह रहा है कि तेरे और मेरे में कोई फर्क नहीं है, फर्क तूने डाल लिया है और यह वाणी भी जो सतगुरु बाबा जी के विचारों का संग्रह है, जब साकार रूप यानि आकार में हमारे सामने प्रकट थे वही विचार हैं जो प्रत्यक्ष कही गई हैं। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में 13 मई समर्पण दिवस के अवसर पर दिल्ली - महरौली से पधारे महात्मा बंटी कमला जी ने व्यक्त किए।
दास अपनी बात करे तो महसूस करता था कि शायद भूल गया हूँ इसलिए याद करना है क्योंकि याद करने के कई तरीके हैं कि मैं याद करता हूँ क्योंकि मैं भूल गया हूँ या फिर मैं याद करता हूँ इसलिए कि मुझे अपना जीवन संवारना है, अपना कल्याण करना है, याद कर रहा हूँ इसलिए, कि मुझे गुरसिख से गुरू हो जाना है, याद कर रहा हूँ इसलिए, कि मुझे गुरू से निरंकार हो जाना है।
अनेक दफ़ा ऐसा संयोग बना कि सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज की छत्रछाया में जाने का अवसर मिला, दास तो आपको आंखों देखी बता रहा है, कि सतगुरु अपने भक्त के प्रति कितना निष्ठावान है, जबकि कहा तो यह जाता है कि निष्ठावान भक्त को होना चाहिए, पर यहां भगवान ज़्यादा निष्ठावान देखा दास ने, जब रास्ते में कहीं खाने के लिए रुकते तो बाबा जी सबसे बाद में खाते थे। जो साथ वाले महात्मा होते उन्हें पहले खाना खिलाते। हमने बहुत सुना है कि पहल हमने दूसरों को देनी है तो सतगुरु ने वो हमें सिखाया कि पहल कैसे दी जाती है। कानपुर समागम के लिए जब गाड़ियां हाइवे से बाइपास चली तो सतगुरु ने कहा कि आगे से इधर मोड़ लो, हम सोच में पड़ गए कि ऐसा क्यों ? क्योंकि सीमित सोच ने तो फिर उतना ही सोचना था। यह भूल हो जाती है कि गुरु क्या कर रहा है गुरसिख उसका अंदाजा नहीं लगा पाता इसलिए इस आस में लिखा गया जो गुरु आखे सो कार कमाओ गुरु की करनी कदे न धाओ। जो गुरु कह रहा है उसको मानो, गुरु कर क्या रहा है उस पर ध्यान मत दो भटक जाओगे। इटावा शहर के बीच से धीरे धीरे गाड़ियां निकल रही हैं, एकदम हुजूर का आदेश है कि गाड़ियां यहीं रोको। कई बार महात्मा मिलते हैं जो गुरु के दर्शन नहीं कर पाए जबकि गुरु तो साथ ही होता है और यह साकार रूप में भी दर्शन देता है अगर भावना शुद्ध है, अगर मन निर्मल है, सामने जूस की दुकान पर एक बहन और उसके जीवन साथी खड़े थे बीमार लग रहीं थीं अस्वस्थ है। जब बहुत गाड़ियां आती हैं तो सबका ध्यान जाता है तो वो बहन और उनके जीवन साथी का ध्यान भी गया, हुजूर ने कार का शीशा खोला और दरवाजा खोल दिए इतना देख वह बहन दौड़ के आने लगी उनके जीवन साथी उन्हें पकड़ रहे हैं, कहीं गिर ना जाये, बीमार है और वो हुजूर के चरणों में गिर गई। अब हम सब देख रहे हैं कि हो क्या रहा है। उस बहन को जैसे ही कानपुर समागम का पता लगा था अपनी सेवादल की वर्दी धोकर प्रेस करके रख ली थी कि मेरे को सेवा जाके करनी है, अचानक कुछ ऐसी घटना घटी की बीमार पड़ गई और रोती रहती है कि मैंने जाना था, मैंने सेवा करनी थी, मैंने समागम अटेंड करना था, मेरे से क्या गलती हो गई कि मेरी शारीरिक अवस्था ऐसी हो गई, सतगुरु ने इस बहन को दर्शन देने के लिए हाईवे छोड़ दिया प्रेम के वशीभूत हो करके।
अप्रैल में जहां बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज का जिक्र आया वहीं चाचा प्रताप सिंह जी का जिक्र भी कि उनका जीवन बड़ा महान था, तो मैं भी अपना जीवन महान बना लूँ, तो मुझे कौन रोकता है ? एक ही बात मुझे रोक लेती है कि मुझे आकार से इतना लगाव है कि मैं निराकार होना नहीं चाहता। ज्ञान लिया ज्ञान का भाव क्या है ? जब गुरु के चरर्णों में झुकते हो तो क्या बोलते हो, धन निरंकार। यानि धन निरंकार प्रत्यक्ष है वह आप देखिए किस-किस को नज़र आता है ? ज्ञान की समझ साध संगत में बैठ करके आएगी, हम वेदो शास्त्र में सुनते हैं कि आपका निज घर कौन सा है, आप कहां रहते हैं, कहां हो आप और आपके दर्शन कैसे करूँ, मैं इन आंखों से आपके दर्शन कैसे करूँ प्रभू ? तो परमात्मा कह रहा है निज घर मेरो साध संगत, जिन शिक्षाओं का हम जिक्र कर रहे हैं वो शिक्षाएं हम भूल जाते है।
सतगुरु देह का नाम नहीं, सतगुरु होता ज्ञान है, सतगुरु को देह समझना भूल है अज्ञान है, गुरु की बाणी है, गुरु कह रहा है और भी लिखा है शास्त्रों में, जिस पल ज्ञान समझ में आ गया फिर तोही वोही वोही तोही अंतर कैसा कोई अंतर नहीं, वो कबीर जी का जीवन बड़ा अच्छा था, भाई आप भी बना लो। इतने महात्माओं ने जिक्र किया, क्या प्यार कभी मर सकता है ? प्यार तब मरता है जब उसमें स्वार्थ आ जाता है, गुरु की शिक्षा क्या है ? कि देना सीखिये, अगर मैं पकड़ के बैठ जाऊं वो टीचर बड़े अच्छे थे, वो अब नहीं है, वो टीचर विद्या के रूप में आज भी है, वो हमेशा रहेंगे। सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज की शिक्षा थी कि यही वो पल है बस अगले पल का कोई पता नहीं, यह जो पल है यह बहुत कीमती है। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने गीत विचारों के माध्यम से भी अपने भाव प्रकट किए इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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