अप्रैल का महीना आता है बाबा गुरबचन सिंह जी की याद में, उनकी शिक्षाएं, उनके आदेश, उद्देश्य, उन्होंने जो भी शिक्षाएं दी, सिर्फ शब्दों में नहीं कहा बल्कि अपने जीवन को कर्म रूप में जी कर दिखाया, संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में बहन पिंकी निरंकारी जी ने विचार व्यक्त किए।
कटनी ( मुरली पृथ्यानी ) सेवा उसको मिलती जिसपर गुरू कृपा हो जाती है, बिन कृपा के कभी किसी को सेवा न मिल पाती है। पवित्र हरदेव वाणी में भी फरमान आता है सेवा के विषय में, सेवा जो गुरुवचनों पर आधारित होती है वो सेवा परवान भी होती है और सबसे उत्तम सेवा होती है। सतगुरू ने जब हम पे कृपा करके बख्शिश करके रहमों करम करके ये साक्षात्कार कराया इस आत्मा को परमात्मा की जानकारी दिलाई, यह मानुष तन किस लिए मिला है यह अमोलक है यह मानुष तन हमारी मुक्ति का आधार है, सचे पातशाह जब यह ब्रह्म ज्ञान की दात हमारी झोली में बख्शते है तब हम नित्य प्रतिदिन सेवा सत्संग सिमरन करते है तो इस सच का साक्षात्कार हो जाता है। सेवा जब गुरु का आदेश आए गुरु वचनों की मानता आए उस हिसाब से हमको सेवा करनी है। उक्त विचार संत निरंकारी सत्संग भवन माधवनगर में रविवार के सत्संग में पवित्र हरदेववाणी के शब्द पर बहन पिंकी निरंकारी जी ने उपस्थित साध संगत के समक्ष व्यक्त किए।
उन्होंने कहा हमारे मिशन में पुरातन महात्मा हुए जिनके अनेकों उदहारण हम सुनते हैं, जैसे लाभ सिंह जी उनके लिए एक वचन आया कि दूध बच जाए तो दही बना लेना तो उन्होंने उस वचन को मानते हुए बचे हुए दूध को दही के लिए यूज किया तो वो लाभ सिंह दही वाले करके फेमस हुए ऐसे ही बहुत उदहारण है, चाचा प्रताप सिंह जी जिन्होंने गुरु सेवक की क्या परिभाषा होती है, गुरु वचनों का क्या मान होता है, उन्होंने जीवन जी के दिखाया उनके लिए गुरु सेवा ही जीवन था और गुरु सेवा ही मौत थी, तो जब हम सतगुरु के चरर्णों में अपने आप को पूरी तरह से समर्पित कर देते हैं उनकी हर रजा में राजी रहते हैं और जो आदेश आता है उनके हिसाब से सेवा करते हैं तो वह सेवा परवान होती है और हमारे लिए खुशियों की खान होती है। इसी लिए जैसे भी आदेश आए, उस हिसाब से हमें सेवा करनी चाहिए।
साध संगत जी, ये जो अप्रैल माह का महीना आता है बाबा गुरबचन सिंह जी की याद में, उनकी शिक्षाएं, उनके आदेश, उद्देश्य, उन्होंने जो भी शिक्षाएं दी, सिर्फ शब्दों में नहीं कहा बल्कि अपने जीवन को कर्म रूप में जी कर दिखाया चाहे फिर वो सामाजिक हो, आध्यात्मिक हो, हर एक क्षेत्र में उन्होंने योगदान दिया उन्होंने नारी शक्ति को सम्मान दिया, अपने बराबर अपने साथ बिठाया, आज जो इस रूप में सेवाएं मिल रही हैं ये उन्ही की देन है। बालसंगत की नींव रखी जो अभी पिछले महीने एन वाई एस हुआ उनकी भी नींव बाबा गुरुवचन सिंह जी ने रखी इसीलिए एक सच्चा गुरसिख वो होता है जो नित्य प्रतिदिन सत्संग सेवा सिमरन करता है और इस सच का संदेश अपने कर्मों में अपने सांसारिक जीवन में जी के दिखाता है।
फरमान आता है सेवा ना मजबूरी कोई और न कोई बंधन है खुद को आनंद में रखने का सेवा तो एक साधन है। साध संगत जी, सेवा कोई मजबूरी नहीं होती, आप सब यहाँ पे सारे गृहस्थ जीवन वाले बैठे हैं, अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहे हैं, अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं, लेकिन जैसे कहा जाता है कि भक्ति घर से शुरू होती है, ऐसे ही गृहस्थ में जो जिम्मेदारियां होती हैं अगर उनको हम सेवा का रूप दे देते हैं तो वो सेवा होती है, फिर वो एक बोझ नहीं लगता और उन जिम्मेदारियों को जब सेवा का रूप दिया जाता है, तो उसको निभाते निभाते, हमें बड़ा आनंद और सुकून मिलता है, सेवा वही परवान होती है, जो निष्काम निरक्षित हो।
दासी जीवन शिक्षक पुस्तक पढ़ रही थी, उसमें एक महात्मा जी के विचार थे, कि एक महात्मा ने जब ज्ञान लिया, सेवा भी कर रहे थे, सत्संग भी कर रहे तो उन्होंने बाबा जी से कहा, बाबा जी मुझे दो साल हो गए ये ब्रह्म ज्ञान की दात मुझे बख्शी गई है और मैं सेवा भी करता हूँ, सत्संग भी करता हूँ, सिमरन भी करता हूँ पर ये सब वैसा ही है जैसे वही दुकान, वही मकान, कुछ आनंद और सुकून नहीं आ रहा है तो बाबा गुरबचन सिंह जी मुस्कुराने लगे और उन्होंने कहा कि ये जादू की छड़ी नहीं है। जैसे हमें एक बांस की टोकरी में कहा जाए कि पानी भर के लाओ तो वो अगर उसमें हम पानी भरेंगे तो वो पानी बह जाएगा तो हमको लगेगा कि यह व्यर्थ है, लेकिन अगर हम दिन प्रतिदिन continue हम उस बांस की टोकरी में पानी भरेंगे तो बांस की टोकरी पहले तो वो साफ हो जाएगी फिर उसमें जो गैप होगा वो भर जाएगा फिर उसमें से पानी नही बहेगा। नाला अगर पवित्र गंगा की तरफ खुलता है और अगर वो उसका संग करता है तो वो भी एक दिन गंगा में समाहित होकर वो पवित्र ही हो जाएगा। ऐसे ही एक मैला कपड़ा जब अगर वो थोड़ा सा मैला है तो उसको हम एक बार साबुन लगाएंगे तो वो साफ हो जाएगा लेकिन अगर उसमें बहुत चिकनाई है दाग धब्बे है और वो बहुत गंदगी से युक्त है तो उसको कई बार साबुन से धोना पड़ेगा। ऐसे ही यह जो हमने ज्ञान लिया है इसके लिए भक्ति के तीन सोपान बताए गए हैं सेवा, सत्संग, सिमरन, तो यह तीनों ही ज़रूरी है। हम मायावी संसार में रहते हैं गृहस्थ जीवन में रहते हैं तो माया के घेरे में आ ही जाते हैं तो इसलिए हमें सत्संग, सेवा और सिमरन भी करना है। शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी महाराज फ़रमाते हैं अपने विचारों में कि कभी भी सेवा करते वक्त कर्ता का भाव नहीं आना चाहिए कि मैं कर रहा हूँ। हमेशा जब कोई भी सेवा सतगुरु के द्वारा बख्शी जाती है तो सतगुरु से यही प्रार्थना करनी है, इनको अंग संग जानकर, इस निरंकार के एहसास में रहकर, यह प्रार्थना करनी है कि हे गरीब नवाज तू ही करता है, तू ही सेवा बख्शने वाला है और तू ही सेवा लेने वाला है देने वाला भी तू ही है लेने वाला भी तू ही है और जब ये भाव आ जाता है तो फिर एक गुरसिख सच्चा गुरसिख कहलाता है। चेतन और सजग रहकर जो सेवा करता जाता है कहे हरदेव सुखों से अपना दामन भरता जाता है।
साध संगत जी, पवित्र हरदेव वाणी में आता है कि सेवा कोई छोटी या बड़ी नहीं है सेवा सेवा होती है, ये एक गुरसिख के लिए सतगुरु दारा अमोलक उपहार है जो हमारी झोली में सतगुरु ने बख्शा है, सतगुरु ने हमारे अवगुण कुछ नहीं देखे और उन्होंने इस सेवा बख्शी ये नीली खाकी वर्दी जो हमें मिली है, निष्काम भाव से बिना किसी कर्ता भाव से हम वो सेवा बखूबी निभा पाए और सेवा करते समय भी हमें चेतन और सजग रहना है।
दासी भी सेवा दल में है व्यवस्थाओं के दौरान कभी कुछ मूँह से कोई शब्द निकल जाता है आप संगत मां हो जब एक बच्चा कोई गलती करता है तो अपनी मां के आंचल में छिप जाता है और उसकी मां उसे बड़े प्यार और दुलार से उसकी गलतियों को क्षमा कर देती है तो दासी भी आपकी बच्ची है अगर कोई ऐसा शब्द निकल गया हो तो दासी को अपनी बच्ची समझ कर माँफ कर देना। सत्संग कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने गीत विचारों के माध्यम से भी अपने भाव प्रकट किए इस अवसर पर बड़ी संख्या में साध संगत की उपस्थिति रही।
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